नयी दिल्ली, 29 जुलाई ( कड़वा सत्य) राजधानी स्थित इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) में ‘प्रो. नामवर सिंह स्मारक व्याख्यान’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का विषय था, ‘नामवर का होना और न होना’।
इस दौरान, नामवर सिंह कृत पुस्तक ‘हिन्दी कविता की परम्परा’ का भी लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व सम कुलपति प्रो. सुधीश पचौरी थे और इसकी अध्यक्षता आईजीएनसीए के अध्यक्ष बहादुर राय ने की। डीन (प्रशासन) व कला निधि के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौड़, आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी सहित अन्य अतिथिगण उपस्थित थे।
प्रो. सुधीश पचौरी ने नामवर सिंह पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “विचार को लेकर हम लोग अटके रहते थे, लेकिन नामवर सिंह अटकते नहीं थे। वे सुलझाकर, रास्ते बनाकर चलते थे। वह अपनी बुनियादी जमीन नहीं छोड़ते थे।”
उन्होंने कहा कि नामवर आलोचना को साहित्य की मुख्यधारा में लेकर आए, उनके पहले हिन्दी साहित्य में केवल दो विधाएं थीं, कविता और कहानी! नामवर का न होना हम सब के लिए नुकसान है। वह हिन्दी के अंतिम आलोचक थे।
श्री राय ने कहा, “नामवर सिंह ने आलोचना को समालोचना में बदला। समालोचना का मतलब है सम्यक आलोचना। वह आहार, व्यवहार और विचार में सम्यक थे। वह बातों-बातों में ऊंची बात समझा देते थे, ऐसी सामर्थ्य उनमें थी।”
सैनी
कड़वा सत्य