नयी दिल्ली, 30 जनवरी (कड़वा सत्य) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर से कहा कि वह प्रदेश में इंटरनेट सेवा बहाल करने के संबंध में ‘समीक्षा आदेश’ प्रकाशित करे।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने अपना आदेश पारित करते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन से कहा कि समीक्षा आदेश ‘अलमारी में बंद कर के रखने के लिए नहीं है, उन्हें प्रकाशित करें।’ पीठ ने जम्मू कश्मीर की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज की यह गुहार को स्वीकार कर ली कि उन्हें मामले में निर्देश लेने और इस अदालत को अवगत कराने के लिए दो सप्ताह का समय दिया जाए।
शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान शुरुआत में कानून अधिकारी ने जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट प्रतिबंधों से संबंधित समीक्षा आदेशों के संबंध में विचार-विमर्श पर जानकारी प्रकाशित करने के लिए याचिकाकर्ता की याचिका पर सवाल उठाया।
इस पर पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा, ‘विचार-विमर्श के बारे में भूल जाइये, आप आदेश प्रकाशित करें…क्या आप यह बयान दे रहे हैं कि समीक्षा आदेश प्रकाशित किये जायेंगे?’
इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “उन्हें इस मामले में निर्देश प्राप्त करने की जरूरत है।” इसके बाद पीठ ने उन्हें निर्देश प्राप्त करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “विचार-विमर्श को प्रकाशित करना आवश्यक नहीं हो सकता है, हालांकि समीक्षा पारित करने वाले आदेशों को प्रकाशित करना आवश्यक होगा।”
एनजीओ ‘फाउंडेशन ऑफ मीडिया प्रोफेशनल्स’ ने समीक्षा आदेशों के प्रकाशन के लिए निर्देश देने की गुहार लगाई थी।
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वकील शादान फरासत ने कहा कि समीक्षा आदेश कानून के तहत पारित होने वाली चीज हैं, इसलिए उन्हें प्रकाशित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा कारण हो सकते हैं, लेकिन समीक्षा आदेश एक वैधानिक आदेश है और शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मुख्य आदेश और समीक्षा प्रकाशित की जानी चाहिए।”
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नटराज ने कहा कि ये सभी मुद्दे प्रतिबंधों के दौरान (अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद) उठे थे और उन सभी प्रार्थनाओं का अनुपालन किया गया और यहां तक कि अवमानना को भी खारिज कर दिया गया है।
उन्होंने दलील दी कि अब याचिकाकर्ता एक नई प्रार्थना (अदालत द्वारा पारित किए जाने वाले निर्देश के संबंध में) लेकर आ रहा है।
शीर्ष अदालत द्वारा ‘अनुराधा भसीन’ मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, समीक्षा आदेशों को अलमारी में बंद करके नहीं रखा जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि वकील फरासत ने दलील दी कि शीर्ष अदालत ने अनुराधा भसीन मामले में फैसले में कहा है कि समीक्षा आदेशों को प्रकाशित करने की भी आवश्यकता है और जम्मू-कश्मीर में ऐसा नहीं किया जा रहा है।
बीरेंद्र, यामिनी