इस्लामाबाद, 24 जून (कड़वा सत्य) पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने तोशाखाना मामले में उन्हें अयोग्य ठहराने के पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) के फैसले के खिलाफ अपनी चुनौती पर शीघ्र सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
यह जानकारी एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने सोमवार को दी।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष की सक्रिय भूमिका फिर से शुरू करने के इच्छुक श्री खान ने अपनी याचिका में कहा कि कानूनी चुनौतियों ने उन्हें एक तरह से राजनीतिक निर्वासन में पहुंचा दिया है और उन्हें अशक्त बना दिया है।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीटीआई के संस्थापक इमरान की ओर से पैरवी कर रहे वकील अली जफर ने शीर्ष अदालत से पूर्व प्रधानमंत्री को चुनावी निगरानी संस्था द्वारा संपत्ति और देनदारियों में तोशाखाना उपहार घोषित नहीं करने के खिलाफ अपील पर जल्द सुनवाई का अनुरोध किया।
पाकिस्तान की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के नेता खान अयोग्य ठहराए जाने के बाद से अपनी पार्टी प्रमुख की भूमिका को लेकर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
पीटीआई प्रमुख की याचिका में कहा गया कि ईसीपी के फैसलों को चुनौती देने वाले मामले इस्लामाबाद और लाहौर उच्च न्यायालयों में लंबित हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट से संबंधित एक मामले के चलते कार्यवाही रूकी हुई है।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि लंबित अपील के कारण उत्पन्न हुई कानूनी चुनौतियां पीटीआई का अध्यक्ष, विधानसभा सदस्य बनने और उपचुनाव में हिस्सा लेने की उनकी क्षमता में बाधा डालती हैं।
श्री खान ने दिसंबर 2023 में ईसीपी को अयोग्य ठहराए जाने के फैसले को लाहौर उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने कहा कि याचिका में श्री खान ने अदालत से एनए-45 कुर्रम-1 से उन्हें उम्मीदवार के रूप में चुनाव आयोग द्वारा पांच साल से अयोग्य ठहराए जाने और अधिसूचना रद्द करने के फैसले को पलटने तथा याचिका के अंतिम निपटारे तक अधिसूचना को निलंबित रखने का अनुरोध किया है।
उन्होंने ईसीपी पर आरोप लगाया कि वह निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करने की बजाय आठ फरवरी के आम चुनावों से उन्हें बाहर रखने की जल्दबाजी और गैरकानूनी रूप से काम कर रही है।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया कि पांच अगस्त, 2023 को 30 मिनट की कार्यवाही में,श्री इमरान खान को तीन वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई और 100,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया, जिसे बाद में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने इसे निलंबित कर दिया था।
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