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एक्सपीओसैट मिशन के साथ इसरो ने नए साल का किया शानदार आगाज

News Desk by News Desk
January 2, 2024
in राजनीति
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श्रीहरिकोट 01 जनवरी (कड़वा सत्य) वर्ष 2023 में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान को उतार कर इतिहास रचने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ) ने एक्सपीओसैट मिशन के साथ नए साल 2024 का आगाज शानदार तरीके से किया है।
इसरो ने सोमवार सुबह नौ बजकर 10 मिनट पर एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट (एक्सपीओसैट) का 10 अन्य पेलोड के साथ प्रक्षेपण किया। इसरो के मुताबिक एक्सपीओसैट और 10 अन्य वैज्ञानिक पेलोड ले जाने वाले ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-डीएल (पीएसएलवी-डीएल) के प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे की उलटी गिनती रविवार सुबह 8.10 बजे शुरू हुई और सुचारु रूप से चली। सुबह 9.10 बजे खगोल विज्ञान के सबसे बड़े रहस्यों में से एक ब्लैक होल के बारे में जानकारी जुटाने के लिए पीएसएलवी-सी58 कोड वाला भारतीय रॉकेट पीएसएलवी-डीएल संस्करण (44.4 मीटर लंबा और 260 टन वजनी) न् आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) के पहले लॉन्च पैड से एक्सपीओसैट के साथ उड़ान भरी। यह उड़ान के लगभग 21 मिनट बाद, रॉकेट लगभग 650 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक्स)पोसैट की परिक्रमा करेगा।
इसके बाद ऑर्बिटल प्लेटफ़ॉर्म (ओपी) प्रयोगों के लिए 3-अक्ष स्थिर मोड में बनाए रखने के लिए कक्षा को 350 किमी गोलाकार कक्षा में कम करने के लिए रॉकेट के चौथे चरण को दो बार फिर से शुरू किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्रियों, राज्यों के राज्यपालों एवं मुख्यमंत्रियों, केंद्रशासित प्रदेश के उपराज्यपालों व प्रशासकों समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने सोमवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट (एक्सपीओसैट) उपग्रह के सफल प्रक्षेपण पर प्रसन्नता व्यक्त की और वैज्ञानिकों की शुभकामनाएं दी।
प्रधानमंत्री ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, “वर्ष 2024 की शानदार शुरुआत के लिए हमारे वैज्ञानिकों को धन्यवाद। यह प्रक्षेपण अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए अद्भुत खबर है और इस क्षेत्र में भारत के कौशल को बढ़ाएगा। भारत को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए इसरो के हमारे वैज्ञानिकों और पूरी अंतरिक्ष समुदाय को शुभकामनाएं।”
श्री शाह ने एक्स पर कहा,“हमारी आकाशगंगा में ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों का अध्ययन करने के लिए विशेष खगोल विज्ञान वेधशाला उपग्रह एक्सपीओसैट के ऐतिहासिक प्रक्षेपण पर हमारे इसरो वैज्ञानिकों को बधाई। 2024 के पहले दिन ज्ञान की खोज में ब्रह्मांड को रोशन करते हुए, आपने एक बार फिर साबित किया है आपकी ताकत हमारा गौरव है।”
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रक्षेपण को इसरो की 2024 की शैली में शुरुआत कहा।
श्री सिंह ने एक्स पर कहा,“ऐसे समय में अंतरिक्ष विभाग के साथ जुड़ने पर गर्व है जब टीम इसरो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत हस्तक्षेप और संरक्षण के साथ एक के बाद एक सफलता हासिल कर रही है।”
इस उपग्रह के माध्यम से, भारत अमेरिका के बाद हमारी आकाशगंगा में ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों का अध्ययन करने के लिए एक विशेष खगोल विज्ञान वेधशाला भेजने वाला दुनिया का दूसरा देश बन जाएगा।
इस बीच आंध्र प्रदेश के राज्यपाल एस अब्दुल नजीर और मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने पीएसएलवी-सी58 रैकेट के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
उन्होंने कहा, “इसरो ने ‘एक्सपीओएसएटी’ मिशन के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत का झंडा ऊंचा रखा है। अमेरिका के बाद भारत ब्लैक होल का अध्ययन करने के लिए वेधशाला उपग्रह रखने वाला दूसरा देश बन गया है। इस मिशन के सफल प्रक्षेपण ने इसरो के लिए एक और उपलब्धि जोड़ दी है।”
इस सफल मिशन के बाद वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने कहा,“पीएसएलवी-सी58/एक्सपीओसैट मिशन पूरा हो गया।”
उन्होंने कहा,“सभी को नए साल की शुभकामनाएं। एक और पीएसएलवी मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया गया और 650 किमी की कक्षा में स्थापित किया गया।” उन्होंने कहा,“कक्षा में पहुंचने में कुछ और समय (लगभग 4,000 सेकंड) लगेगा। वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए पीओईएम-3 का दो बार प्रयोग करके प्रक्षेपण यान के चौथे चरण में पीएस4 इंजन को बंद करके और फिर चालू करके 350 किमी तक कम किया जाएगा।” उन्होंने कहा, “हम वास्तव में खुश हैं और हमारा आने वाला समय रोमांचक होने वाला है।”
भारत का पीएसएलवी इस सैटेलाइट को 650 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करेगा। सैटेलाइट को पांच साल तक काम करने के हिसाब से डिजाइन किया गया है। ये एक्स-रे के अहम डेटा जुटाएगा और इससे हमें ब्रह्मांड को बेहतर तरीके समझने में मदद मिलेगी। ये वेधशाला की तरह काम करने वाले दुनिया का दूसरा सैटेलाइट होगा।
इससे पहले नासा और इटली की अंतरिक्ष एजेंसी मिल कर 2021 में आईएक्सपीई नाम का सैटेलाइट छोड़ चुके हैं जो वेधशाला का काम करता है।
सामान्य ऑप्टिकल टेलीस्कोप से पता चलता है कि कोई खगोलीय चीज कैसी दिखती है? लेकिन इससे ये पता नहीं चल पाता कि ये कैसे बनी हैं और इनका व्यवहार कैसा है? इसीलिए वैज्ञानिक इन वस्तुओं से आने वाली तरंगों के अन्य रूपों जैसे एक्स-रे, गामा-रे, ब्र्ह्मांड या रेडियो तरंगों से डेटा इकट्ठा करते हैं। एक्स-रे उन जगहों से आते हैं जहां पदार्थ चरम स्थिति में होते हैं। ये जबरदस्त टकराव, बड़े विस्फोट, तेज घूर्णन और मजबूत चुंबकीय क्षेत्र वाली जगह होते हैं।
इनमें ब्लैक होल्स भी होते हैं जो खत्म होते तारे के अपने ही वजन के दबाव से अंदर आकर गिरने के दौरान बनते हैं। ब्लैकहोल में इतना गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि इसमें से प्रकाश भी नहीं निकल पाता. इसलिए हम इसे देख भी नहीं पाते. चूंकि वो दिखते नहीं हैं इसलिए उनके अध्ययन के लिए खास चीजों की जरूरत होती है। एक्सरे टेलीस्कोप ब्लैकहोल्स के साथ कुआसार्स, सुपरनोवा और न्यूट्रॉन तारों जैसी दूसरी एक्सरे छोड़ने वाली चीजों के अध्ययन में मदद करता है। ब्रह्र्मांड और इसके कामकाज के रहस्यों को समझने के लिए इन चीजों का अध्ययन जरूरी है।
धरती का वातावरण इनमें से ज्यादा विकिरणों को रोक देता है। लिहाजा धरती में रहे वाले प्राणियों का इनके हानिकारक प्रभाव से बचाव हो जाता है लेकिन इसका मतलब ये है कि हम बगैर बाधा के इन किरणों को नहीं देख सकते. इसलिए इस तरह के पर्यवेक्षण मिशन अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं। ऐसा ही एक मिशन चंद्र एक्स-रे मिशन था, जिसे नासा ने भेजा था। इसका नाम प्रसिद्ध भारतीय अमेरिकी वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चंद्रशेखर पर रखा गया था। भारत ने ऑप्टिकल, पराबैंगनी, कम और उच्च ऊर्जा एक्स-रे में ब्रह्मांड का निरीक्षण करने के लिए 2015 में एक मिशन एस्ट्रोसैट भेजा था। लेकिन एक्सपोसैट केवल एक्स-रे के स्रोतों के पर्यवेक्षण से आगे जाकर अवलोकन करने से आगे बढ़ेगा। साथ ही उनके लंबे समय के व्यवहार को समझने के लिए एक्स-रे के पोलेराइजेशन के अवलोकन पर ध्यान केंद्रित करेगा।
पोलराइज्ड सन-ग्लास से जब रोशनी गुजरती है तो ये सूरज की रोशनी से अलग दिखती है। ये क्यों होता है? क्योंकि प्रकाश की तरंगें एक रस्सी की तरह काम करती हैं जो अपनी सफर की दिशा की ओर चारों ओर घूमती हैं लेकिन जब वे खास फिल्टर से गुजारे जाते हैं या वायुमंडल में गैसों की ओर छितराए जाते हैं तो वो पोलराइज्ड हो जाते हैं और उनका दोलन एक पंक्ति में आ जाता है। एक्स-रे भी इसी तरह व्यवहार करते हैं और वे उसी दिशा में घूमते हैं जिधर पोलराइजेशन होता है। एक पोलेरिमीटर इस दिशा की पड़ताल में मदद करता है और उन एक्स-रे उत्सर्जित करने वाली चीजों की स्थिति के बारे में काफी अहम जानकारी देते हैं। एक्सपोसैट में एक ऐसा पोलेरिमीटर जुड़ा होगा।
एक्सपोसैट अंतरिक्ष यान में दो वैज्ञानिक पेलोड या उपकरण लैस हैं। पोलिक्स : रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) की ओर से विकसित ये प्राथमिक पेलोड है। इसे यूआर राव सेंटर के सहयोग से बनाया गया है। यह खगोलीय स्रोतों से उत्पन्न होने वाले पोलराइजेशन की डिग्री और कोण को मापेगा। एक्सएसपैक्ट : इसरो के मुताबिक़ एक्सएसपैक्ट पेलोड स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी मुहैया कराएगा. ये पेलोड एक्सोएसपैक्ट को एक साथ ‘एक्स-रे स्रोतों के अस्थायी, वर्णक्रमीय और ध्रुवीकरण विशेषताओं के अध्ययन में सक्षम बनाते हैं।’
श्रद्धा

Tags: After creating historyEXIndian Space Research Organization (ISRO)Landing the spacecraftmoonSouth PoleSriharikotayear 2023आगाज शानदार तरीकेइतिहास रचने बादएक्सपीओसैट मिशनचांददक्षिणी ध्रुवनए साल 2024भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)यान उतार करवर्ष 2023श्रीहरिकोटा
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