नयी दिल्ली, 05 अक्टूबर (कड़वा सत्य) गैर सरकारी संगठन प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन (प्रदान) का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से भारत में चक्रवात और वर्षा के स्वरूप में परिवर्तन होने से विशेष रूप से कृषि और ग् ीण रोजगार पर असर बढ़ रहा है और इससे निपटने के लिये जलवायु-पहल में सामूहिक भागीदारी तथा ग् ीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत है।
प्रदान ने इसी सप्ताह एक्सिस बैंक फाउंडेशन के साथ मिलकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में परिचर्चा का आयोजन किया जिसमें विशेषों की ओर से बल दिया गया कि अब जलवायु परिवर्तन के ज्वलंत मुद्दों पर अविलंब ठोस कदम उठाना अत्यावश्यक हो गया है। सम्मेलन ‘जलवायु परिवर्तन- वर्तमान प्रबंधन, भविष्य की तैयारी’ पर ध्यान केंद्रित था और इसका आयोजन पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, मिशन लाइफ और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की भागीदारी में किया गया था।
प्रदान ने इस परिचर्चा के आधार पर जारी एक विज्ञप्ति में संगठन के कार्यकारी निदेशक सरोज कुमार महापात्रा के हवाले से कहा है, “ आज जरूरत है कि जलवायु की दृष्टि से स्वस्थ दिशा में बदलाव की कमान पूरे समुदाय के हाथ में हो । ….लोगों की सोच बदलना बहुत जरूरी है। पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिये सभी सामूहिक प्रयासों को एकजुट करना होगा और एक मजबूत भागीदारी बनानी होगी। ”
प्रदान का कहना है कि ग् पंचायत विकास योजना ( जीपीडीपी) जैसे प्रयासों के माध्यम से लगभग 10 करोड़ महिलाओं, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और ग् संगठनों को इस मुहिम से जोड़ा जा चुका है। सरकार के दीनदयाल अंत्योदय योजना (डीएवाई) और राष्ट्रीय ग् ीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) जैसे अग्रणी अभियान की इस संबंध में भूमिकाएं अहम हैं जिन्हें अधिक कारगर बनाया जा सकता है।
श्री महापात्रा ने कहा, “ आज कई स्थानों पर सामुदायिक कार्य के विकेंद्रीकरण के साथ पंचायतों के सहयोग से हो रहे कार्य बहुत उत्साहवर्धक हैं और कई सीएसओ पहले से ही असाधारण काम कर रहे हैं। जलवायु में सुधार और गांवों में रोजगार बढ़ाने में इस तरह की भागीदारी जरूरी है क्योंकि इसमें कई भागीदार एकजुट हो कर काम करते हैं। ’’
एक्सिस बैंक फाउंडेशन की कार्यकारी ट्रस्टी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी ध्रुवी शाह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियां जटिल हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कार्य करने से स्वस्थ परिवर्तन का रास्ता निकल सकता है। उन्होंने कहा, “ भारत के ग् ीण क्षेत्रों में सीजनल आमदनी सुनिश्चित करना सबसे जरूरी है। साथ ही, लंबी अवधि की भागीदारी करने से उस भूभाग की सुदृढ़ता बढ़ेगी जिससे पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं में निरंतरता बनी रहेगी। ऐसे में यह अत्यावश्यक है कि देश के नागरिक, नागरिक समाज संगठन (सीएसओ), सरकार और निजी क्षेत्र सार्थक संवाद करें और मिल कर काम करें।’’
विज्ञप्ति के अनुसार यह सम्मेलन मुख्य रूप से पानी की किल्लत, चक्रवात, भूस्खलन, अति वर्षा और खेती में बाधा जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहा क्यों की ये समस्यायें भारत में काफी बढ़ रही हैं। चर्चा में कहा गया कि अब तक चक्रवात की चपेट में सिर्फ भारत के पूर्वी तट रहे हैं, पर देश का पश्चिमी हिस्सा काफी प्रभावित होता दिख रहा है। इसी रफ्तार से चक्रवात आते रहे तो अगले दशक तक पश्चिमी भारत भी पूर्व के बराबर चक्रवात झेल रहा होगा। यह भी देखा गया है कि मानसून देर से आता और देर से वापस जाता है, जिससे देश का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है। राजस्थान और गुजरात जैसे स्थानों में पिछले कुछ वर्षों में वर्षा में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
श्रवण.
कड़वा सत्य