नयी दिल्ली 29 अगस्त (कड़वा सत्य) केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (सीएसयू) , दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा है कि दुनिया की चाहत के हिसाब से ज्ञान के क्षेत्र में बदलाव का समय आ गया है।
श्री वरखेड़ी ने गुरुवार को यहां सीएसयू मुख्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देश पर प्राच्य विद्या कौशल विकास परिषदके कार्यक्रम के अन्तर्गत आयोजित एक कार्यशाला के दौरान उन्होंने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा, “अब समय आ गया कि ज्ञान के क्षेत्र में दुनिया जो चाहे हम उसे दें , अन्यथा, वैश्विक दौर में हम पीछे छूट जाएंगे। साथ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि किसी शिक्षक की सफलता इसमें नहीं है कि वह अपने जैसे विदायर्थियों को तैयार करें ,बल्कि सच तो यह है कि विद्यार्थी जिस दिशा में जाना जाता और उसका जो लक्ष्य धर्म है, उसमें सहयोग देकर उसके लक्ष्य को सफल बनायें । यही कारण है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार संस्कृत को केन्द्र में रख कर छात्र- छात्राओं के कौशल विकास के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है।”
उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली तथा राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति ने मिल कर इसमें भाग लेकर संस्कृत क्षेत्र में कौशल विकास को लेकर जो शिक्षण प्राप्त किया है ,वे अपने- अपने विश्वविद्यालयों में जाकर इस शिक्षण तथा विधाओं की श्रृंखला को आगे बढायें। साथ ही साथ पारम्परिक विश्वविद्यालयों के साथ आधुनिक विश्वविद्यालयों के बीच भी इसका प्रचार और प्रसार करें । इसका बहुत बड़ा कारण यह भी है कि ज्ञान तो एक मार्ग है , लेकिन यह रोजगारोन्मुखी । उन्होंने यह भी कहा कि इन पाठ्यक्रमों को संस्कृत , हिन्दी , अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी पाठ्यक्रमों में लाया जाना चाहिए।
प्रो वरखेड़ी ने कहा कि आने वाले समय में एक ऐसा भी कार्यशाला का आयोजन किया जाना चाहिए जिसमें इससे जुड़े प्रशिक्षितों का भी प्रशिक्षण का अवसर मिल सके, ताकि इसके चिन्तन में समय समय पर और निखार आता रहे । उन्होंने इस बात पर भी बल देते आगे कहा कि पुराण इतिहास के पढ़ने वाले छात्र छात्राओं की संभावना कथा वाचक के साथ इंटरटेनमेंट की दुनिया में भी बहुत संभावना है ।
वहीं इस दौरान विश्वविद्यालय के डीन (शैक्षणिक) प्रो मदन मोहन झा कहा कि हमारे संस्कृत विश्वविद्यालयों के पास न ही संसाधनों और न ही विशेषज्ञों की कोई कमी है । अतः देश के संस्कृत विद्वान मिल कर इस पाठ्यक्रमों को लोकप्रिय और सार्थक बनाएंगे।
उल्लेखनीय है कि इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को पाठ्यक्रमों के निर्माण का जो उत्तरदायित्व दिया गया उनकी समीक्षा के बाद पुनः अगला कार्यशाला का दिन सुनिश्चित किया जाएगा ।
संतोष
कड़वा सत्य