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पूर्व मुख्यमंत्री विनोदानंद झा ने अपनी हत्या की साजिश करने का आरोप अपने ही दल के नेताओं पर लगाया

News Desk by News Desk
May 10, 2024
in राजनीति
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पूर्व मुख्यमंत्री विनोदानंद झा ने अपनी हत्या की साजिश करने का आरोप अपने ही दल के नेताओं पर लगाया
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(  कुमार से)
पटना, 10 मई (कड़वा सत्य) बिहार के तीसरे मुख्यमंत्री विनोदानंद झा ने अपनी हत्या की साजिश करने का आरोप अपने ही दल काग्रेस के नेताओं पर लगाया था और इसकी शिकायत तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से की थी।
बिहार के तीसरे मुख्यमंत्री विनोदानंद झा खाने-पीने के बेहद शौकीन हुआ करते थे। वर्ष 1963 में एक बार उन्होंने खाने के लिये मछली मंगवाई थी। इसी बीच उन्हें कहीं से पता चला कि मछली में जहर है। श्री झा ने इसकी शिकायत तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से कर दी, कहा ,मेरी हत्या की साजिश की गयी थी, दुश्मनों ने मुझे मारने के लिए हथियार के तौर पर मछली भेजी थी। वह तो समय रहते खुफिया महकमे के लोगों को खबर लग गई, और मैं बच गया, लेकिन कब तक…ख़ुफ़िया विभाग से जांच करवाई और एक मोटी सी फाइल बनाकर प्रधानमंत्री नेहरु के दफ्तर भेज दी गई। के.बी सहाय (कृष्ण बल्लभ सहाय) के करीबी माने जाने वाले  लखन सिंह यादव को इस षड्यंत्र का मुख्य आरोपी बनाया गया। मछली कांड सियासी गलियारों में कांग्रेस के लिए शर्मिंदगी की वजह बन रहा था। इसी दौरान ‘कामराज प्लान’ सुर्खियों में आया। कामराज प्लान तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके के. कामराज के दिमाग की उपज था। प्लान था कि जो कांग्रेसी नेता 10 साल से सत्ता में हैं, उन्हें सत्ता छोड़कर संगठन की तरफ लौटना चाहिये। मुख्यमंत्रियों के तख्ते उलटे जाने लगे। अख़बार के छापखानों में नया शब्द छपने लगा, ‘कामराज्ड’। विनोदानंद झा भी कामराज्ड हो गये। मछली कांड की वजह से दो अक्टूबर 1963 को गांधी जयंती के दिन उनका कार्यकाल खत्म हुआ।
वर्ष 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस के विनोदानंद झा ने भारतीय जनसंघ के सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ को पराजित किया और पहली बार सांसद बने लेकिन कुछ ही महीने बाद एक अगस्त 1971 को घुटने के इलाज के लिए वेल्लौर जाते समय रास्ते में उनका निधन हो गया। पंडित विनोदनंद झा ने स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था। स्वतंत्रता आंदोलन के क्रम में वर्ष 1922, 1930, 1940 और 1942 में लंबी अवधि के लिए जेल गये। एक बार की जेल यात्रा के दौरान संताल परगना के अंग्रेज कमिश्नर ने उन्हें जान से मार डालने का भी प्रयास किया। तब वे दुमका जेल में बंद थे। जेल में उन्हें ग्रेनाइट की चट्टानों को तोड़ कर गिट्टी बनाने का काम दिया गया, जिस पर उन्होंने आंखों पर लगाने के लिए एक खास तरह के गोगल्स मांगे। तब जेल में तहलका मच गया कि कैदी गोगल्स लगाकर पत्थर तोड़ेंगे। उन्होंने प्रमाण जुटा कर आरचर साहब के सामने रखा और कहा कि अफ्रीका के असभ्य क्षेत्रों में भी जहां यूरोपियन लोगों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर है, वहां के मूल निवासियों को यदि जेल में पत्थर तोड़ने के लिए कहा जाता है, तो उन्हें गोगल्स अवश्य दिये जाते हैं। अंग्रेज अधिकारी आरचर इस मांग पर झल्ला उठा। उसने क्रोध में यह निश्चय किया कि विनोदानंद झा को दुमका जेल से स्थानांतरित करके देवघर जेल भेज देना चाहिए। विनोदा बाबू को हथकड़ियां पहना दी गयीं और जेल की सीखचों वाली गाड़ी के भीतर बैठा दिया गया। जेल के हवलदार चौबे जी चार सिपाहियों के साथ उनके आसपास बैठे। ठीक उसी समय गाड़ी से आरचर उतरा। आंखें शराब के नशे में लाल थीं, हाथ में पिस्तौल थी। आरचर दांत पीसता खड़ा हो गया और विनोदानंद झा को नीचे उतारने को कहा। उस समय डयूटी पर तैनात चौबे जी ने आरचर को कहा-‘हुजूर’ मुझे यह जिम्मेदारी दी गयी है कि गाड़ी में बैठे हुए कैदी को जीवित अवस्था में देवघर जेल को सौंप दूं। इस कार्य में बाधा आएगी, तो उसे सरकारी कार्य में बाधा माना जाएगा। इस समय सारे अधिकार हवलदार के पास यानी मेरे पास हैं। इस कार्य में बाधा डालने वालों को कुचल कर रख देंगे। चौबे और उनके सिपाहियों ने बंदूकें तान लीं। आरचर दांत पीसता हुआ और गाली बकता हुआ गाड़ी घुमा कर दुमका वापस चला गया। इस प्रकार विनोदानंद झा एक प्रकार से मौत के द्वार पर दस्तक देकर बाहर आ गये।
बिहार के मिथिलांचल में कहा जाता है पग-पग पोखर माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान, विद्या, वैभव शांति प्रतीक, इथीक मिथिल की पहचान.’ मिथिला की पहचान पोखर (तालाब), मछली, पान और मखाना से जुड़ी हुई है। मिथिलांचल के मखाना की दीवानगी न केवल देश में बल्कि विदेशों से भी जुड़ी हुई है। वैज्ञानिक मखाना को लेकर नए-नए शोध कर नई प्रजाति विकसित कर रहे हैं। दरभंगा जिला मिथिला संस्कृति का केंद्र है।  ायण काल से ही यह राजा जनक और उत्तरवर्ती हिंदू राजाओं का शासन प्रदेश रहा है।दरभंगा 16वीं शताब्दी में स्थापित दरभंगा राज की राजधानी था।बिहार की दरभंगा लोकसभा सीट की पहचान इसके गौरवशाली अतीत और समृद्ध बौद्धिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं से रही है। दरभंगा राज परिवार की शौन-शौकत, दानशीलता और कला एवं शिक्षा को लेकर उनकी ललक को आज भी शिद्दत से याद किया जाता है।आजादी के बाद ललित नारायण मिश्र ने दरभंगा को देशभर में पहचान दिलाई।
मिथिलांचल की सांस्कृतिक राजधानी दरभंगा कई कारणों से हाई प्रोफाइल सीट रही है। यह इलाका दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह की वजह से विख्यात रहा। उन्हें एक समय देश का सबसे बड़ा जमींदार कहा जाता था। उन्होंने जनकल्याण में कई कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, तिरहुत रेलवे, अशोक पेपर मिल आदि की स्थापना कराई। दरभंगा मिथिलांचल का केंद्र है, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। दरभंगा दो शब्दों से बना है, द्वार-बंग। संस्कृत में द्वार का मतलब दरवाजा, यानी बंगाल का दरवाजा। फारसी में इसे दर-ए-बंग कहते थे। यह भी माना जाता है कि इस शहर को मुगल काल में दरभंगी खान ने बसाया था।
वर्ष 1952 में पहले आम चुनाव में कांग्रेस के नारायण दास ने दरभंगा सेंट्रल सीट, कांग्रेस के अनिरुद्ध सिन्हा ने दरभंगा पूर्व सीट, कांग्रेस के श्याम नंदन मिश्रा, दरभंगा उत्तर सीट और ललित नारायण मिश्रा ने कांग्रेस के टिकट पर दरभंगा भागलपुर सीट से जीत हासिल की थी। दरभंगा लोकसभा के लिए वर्ष 1957 में पहली बार चुनाव हुआ और यहां से कांग्रेस के नारायण दास और  ेश्वर साहू चुनाव जीतकर सांसद बने। 1962 में भी इस सीट पर कांग्रेस के नारायण दास ने ही कब्जा जमाया। दरभंगा जिले के केउटी गांव के एक युवक नारायण दास ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का शंखनाद करते हुए अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़ दी।बाद में बिहार विद्यापीठ से मैट्रिक की परीक्षा की।उन्हें असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई बार जेल जाना पड़ा।1940 में उन्होंने केवटी में  जुलुम उच्च विद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह विद्यालय आजादी पूर्व और आजादी बाद ग् ीण क्षेत्र के छात्रों की शिक्षा के लिए वरदान साबित हुआ।
वर्ष 1967 में कांग्रेस प्रत्याशी सत्यनारायण सिन्हा ने जीत हासिल की। समस्तीपुर जिले के संभूपट्टी में जन्में सत्य नारायण सिन्हा ने इससे पूर्व 1952 में समस्तीपुर पूर्व ,वर्ष 1957 और 1962 में समस्तीपुर से जीत हासिल की थी। वह जवाहर लाल नेहरू ,लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे।उन्हें 1971 में मध्य प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। वर्ष 1971 के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस के विनोदानंद झा ने जीत हासिल की। पूर्व मुख्यमंत्री विनोदानंद झा के निधन के बाद वर्ष 1972 में हुये चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता ललित नारायण मिश्रा ने जीत हासिल की।तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें फरवरी 1973 में रेल मंत्रालय की अहम जिम्मेवारी दी।
आपाताकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में दरभंगा सीट पर भारतीय लोक दल ने कब्जा जमाया और मैथिली साहित्य के महान साहित्यकार सुरेंद्र झा सुमन सांसद बने। इससे पूर्व उन्होंने दरभंगा विधानसभा सीट से वर्ष 1972 में भारतीय जनसंघ के टिकट पर जीत हासिल की थी।श्री सुमन को प्रकाशक, संपादक, पत्रकार, सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारक और मिथिला संस्कृति के प्रवर्तक के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने मैथिली में लगभग चालीस पुस्तकें लिखीं और मैथिली, संस्कृत और हिंदी में विभिन्न प्रकाशनों और पुस्तकों के संपादक भी रहे। एक लेखक के रूप में, गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में, उनकी कई भाषाओं पर शानदार पकड़ थी और इस योग्यता के कारण उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार,विद्यापति पुरस्कार समेत कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया।उन्हें मैथिल में पहला दैनिक स्वदेश निकालने का श्रेय प्राप्त है।
1980 में हुए चुनाव में इंदिरा कांग्रेस के हरि नाथ मिश्र चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे। उन्होंने जनता पाटी (सेक्यूलर) के हुक्मदेव नारायण यादव को पराजित किया। उन्होंने बिहार विधान सभा के अध्यक्ष का पद भी संभाला। वह बिहार सरकार में मंत्री भी रहे।श्री मिश्रा इंदिरा गांधी की सरकार में 1983-84 के दौरान केन्द्रीय मंत्री भी रहे थे।वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर में भी ललित नारायण मिश्र के पुत्र विजय कुमार मिश्र ने लोकदल के प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के हरिनाथ मिश्रा को पराजित किया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ताराकांत झा तीसरे नंबर पर रहे। विजय कुमार मिश्रा बिहार से एकमात्र राजनेता है, जिन्होंने लोकदल के टिकट पर जीत हासिल की है। वर्ष 1980 में जनता पार्टी में हुयी टूट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह पार्टी से अलग हो गये और उन्होंने लोकदल बनायी। बिहार में 1984 के चुनाव में लोकदल के टिकट पर 28 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे ,हालांकि उसे जीत एक सिर्फ सीट दरभंगा से मिली।वर्ष 1984 में लोकदल के टिकट पर पूरे देश में 171 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे लेकिन उसे केवल तीन सीट पर जीत मिली। दरभंगा सीट से विजय कुमार मिश्रा,बागपत से चौधरी चरण सिंह और एटा से मोहम्मद महफूज अली खान ने जीत हासिल की।
वर्ष 1989 के चुनाव में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति पद से इस्तीफा देकर शकीलुर्र रहमान ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और शिक्षा मंत्री रहे कांग्रेस प्रत्याशी नागेंद्र झा को पराजित किया। श्री रहमान ने पटना विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी ऑनर्स के साथ बीए, प्रथम श्रेणी ऑनर्स के साथ एमए और डी.लिट की उपाधि प्राप्त की। नवंबर 1990 में वे उन 64 सांसदों में से एक थे जिन्होंने जनता दल छोड़कर चन्द्रशेखर सरकार बनाई थी। जनवरी 1991 में, लोकसभा अध्यक्ष रबी रे ने भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत सात अन्य सांसदों के साथ उन्हें लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया। उन्होंने नवंबर 1990 से फरवरी 1991 तक चंद्र शेखर की सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया था। शकीलुर रहमान ने सौंदर्यशास्त्र पर किताबें लिखी थीं और उन्हें बेबे-जमालियत के नाम से जाना जाता था और उन्होंने मंच, टीवी और रेडियो के लिए 50 से अधिक नाटक लिखे थे। उर्दू साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें भारत से ग़ालिब पुरस्कार, उर्दू अकादमी पुरस्कार, और पाकिस्तान से अहमद नदीम कासमी पुरस्कार मिला था।
वर्ष 1991 में जनता दल के अली अशरफ फातमी ने कांग्रेस के नागेन्द्र झा को पराजित किया। भाजपा के धीरेन्द्र कुमार झा तीसरे और जनता पार्टी के हुक्मदेव नारायण यादव चौथे नंबर पर रहे। अली अशरफ फातमी पेशे से एक इंजीनियर थे। देश से बाहर पैसा कमाने गए थे पर वो वहां से लौट आए, क्योंकि वो अपने क्षेत्र के लिए कुछ करना चाहते थे। फातमी का करियर शुरू से राजनीतिक रहा है। वह छात्र जीवन से ही राजनीति में हिस्सा ले चुके थे। छात्र जीवन में ही उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जनरल सेक्रेटरी बनाया गया। बाद में वह सऊदी चले गए पर यहां के लोगों के लिए कुछ करने का जज्बा तब भी उनके मन में था जिसने उन्हें 1989 में भारत आने पर विवश किया।
वर्ष 1996 में एक बार फिर जनता दल के श्री फातमी ने बाजी अपने नाम की। श्री फातमी ने भाजपा के धीरेन्द्र कुमार झा को पराजित किया। कांग्रेस के नागेन्द्र झा तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1998 में राष्ट्रीय जनता दल के श्री फातमी ने भाजपा के ताराकांत झा को पराजित किया। जनता दल के गुलाम सरवर तीसरे नंबर पर रहे। इसके साथ ही श्री फातमी ने दरभंगा सीट पर जीत की हैट्रिक लगायी। अपनी बगावती पत्रकारिता के कारण गुलाम सरवर को कई बार जेल जाना पड़ा.कहते हैं कि उनके संपादकीय नेतृत्व में निकलने वाला उर्दू रोजनामा ‘संगम’ को पढ़े बगैर लोग सुबह की चाय नहीं पीते थे।उर्दू को बिहार में द्वितीय भाषा का दर्जा दिलाने में गुलाम सरवर की अहम भूमिका रही। वह बिहार सरकार में मंत्री भी रहे।गुलाम सरवर ने बिहार में मदरसा एवं संस्कृत बोर्ड का गठन किया। गुलाम सरवर बुनियादी शिक्षा पर बहुत जोर देते थे।शिक्षा मंत्री की हैसियत से उन्होंने संस्कृत स्कूल एवं मदरसा दोनों को सरकारी ग्रांट दिलाने की कानूनी व्यवस्था की।गुलाम सरवर 1977 में सीवान विधानसभा सीट से पहली बार निर्वाचित हुए।शिक्षा मंत्री के साथ वकाफ और खेलकूद के भी मंत्री बनाए गए। वह दरभंगा के केवटी से तीन बार 1990,1995 और 2000 में विधायक रहे। वह बिहार विधानसभा के स्पीकर भी बनें।
वर्ष 1999 में दिग्गज कांग्रेसी नेता पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के पुत्र कीर्ति आजाद ने राजद के श्री फातमी को मात देकर पहली बार भाजपा का झंडा बुलंद किया। 1983 विश्व कप की विजेता भारतीय टीम के सदस्य रहे कीर्ति आजाद का यहां ससुराल है। ऐसे में कह सकते हैं कि इस सीट पर पहली बार दामाद को आशीर्वाद यहां की जनता ने दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दरभंगा के राज मैदान में चुनावी सभा को संबोधित किया था। इसके बाद महज एक बार 2004 में राजद ने दरभंगा सीट को झटका, लेकिन उसके बाद से लगातार दरभंगा लोकसभा सीट पर भाजपा का ही कब्जा है।
वर्ष 2004 के चुनाव में राजद के श्री फातमी ने भाजपा के कीर्ति आजाद को मात दे दी। वर्ष 2009 में भाजपा के कीर्ति झा आजाद ने फिर वापसी की और राजद के श्री फातमी को मात दे दी। वर्ष 2014 में भी भाजपा उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद ने राजद के श्री फातमी को फिर पराजित किया। जनता दल यूनाईटेड के   कुमार झा तीसरे नंबर पर रहे।
दरभंगा सीट पर सबसे ज्यादा चार बार सांसद रहने का रिकॉर्ड पूर्व केन्द्रीय मंत्री मोहम्मद अली अशरफ फातमी के नाम है। कीर्ति झा आजाद यहां से तीन बार सांसद रहे हैं। इसलिए जब भी दरभंगा लोकसभा सीट के सियासी चर्चा होती हो तो मोहम्मद अली अशरफ फातमी और क्रिकेटर से नेता बने कीर्ति झा आजाद का नाम जरूर आता है।दरभंगा ने करीब डेढ़ दशक तक अली अशरफ फातमी और कीर्ति झा आजाद के बीच चुनावी जंग हुयी।कीर्ति आजाद और फातमी का अपने-अपने दलों से मतभेद हो गया। कीर्ति झा आजाद ने दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट बोर्ड में घोटाले के आरोप लगाते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इसके बाद भाजपा ने उन्हें वर्ष 2015 में निलंबित कर दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया।वहीं श्री फातमी ने वर्ष 2019 आम चुनाव के पूर्व राजद से इस्तीफा देकर जदयू में शामिल हो गये थे।कीर्ति झा आजाद अभी तृणामूल कांग्रेस तो फातमी वापस राजद में आ गये हैं।
वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने पूर्व विधायक डॉ. गोपाल जी ठाकुर को उतारा, जिन्होंने राजद प्रत्याशी अब्दुल बारी सिद्दीकी को हराया। इस बार के चुनाव में भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद गोपाल जी ठाकुर पर भरोसा जताते हुये उन्हें उम्मीदवार बनाया है, वहीं राजद ने दरभंगा ग् ीण के विधायक और पूर्व मंत्री ललित यादव को भाजपा के श्री ठाकुर के विरुद्ध सियासी अखाड़ा में उतारा है। ललित यादव ने छह बार विधानसभा का चुनाव जीता है। उन्होंने वर्ष 1995, 2000 और अक्टूबर 2005 में मनिगाछी विधानसभा जबकि 2010, 2015 और 2020 में दरभंगा ग् ीण से विजय हासिल की हैं। हालांकि वह पहली बार लोकसभा के रण में उतरे हैं।एक ओर गोपालजी ठाकुर दूसरी बार जीत हासिल करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। दूसरी ओर ललित यादव संसद में पहली बार पहुंचने के लिए जोर-आजमाइश कर रहे हैं। 1989 के बाद पहली बार राजद सुप्रीमों ने मुस्लिम की जगह यादव वर्ग से उम्मीदवार को मैदान में उतारकर चुनाव को रोचक बना दिया है।
आजादी के बाद से दरभंगा सीट पर कांग्रेस का दबदबा था लेकिन आपातकाल के बाद वर्चस्व खत्म होने लगा। कई बार घटक दलों में तालमेल के तहत दरभंगा सीट उसके एलायंस पार्टी को मिल गयी और कांग्रेस यहां अपना प्रत्याशी नहीं उतार पायी। दरभंगा संसदीय सीट पर अबतक हुये चुनाव में कांग्रेस ने चार बार, भाजपा ने चार बार, जनता दल ने तीन बार, राष्ट्रीय जनता दल ने दो बार, इंदिरा कांग्रेस, भारतीय लोक दल और लोकदल ने एक-एक बार जीता का स्वाद चखा है। दरभंगा लोकसभा के लिये राजद का मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण कोई मायने नहीं रखता, लेकिन अब केवल एमवाई समीकरण से ही जीत हासिल नहीं हो सकती। यह बात पिछले कुछ लोकसभा चुनाव में दिखा कि पचपोनिया (55 छोटी छोटी जातियों का समूह) को साध कर भाजपा के रणनीतिकार 2009 लोकसभा चुनाव से लगातार जीत रहे हैं। वर्ष 2009 और 2014 में कीर्ति आजाद ने परचम लहराया तो वर्ष 2019 में गोपाल जी ठाकुर ने। ब्राह्मणों के दवदवा वाले इस सीट पर भाजपा ने फिर ब्राह्मण उम्मीदवार गोपाल जी ठाकुर को दूसरी बार मौका दिया है।ऐसा नहीं कि दरभंगा लोकसभा के लिए राजद का एमवाई समीकरण कोई मायने नहीं रखते, लेकिन अब केवल एमवाई समीकरण से ही जीत हासिल नहीं हो सकती। यह बात पिछले कुछ लोकसभा चुनाव में दिखा कि पचपोनिया (55 छोटी छोटी जातियों का समूह) को साध कर भाजपा के रणनीतिकार 2009 लोकसभा चुनाव से लगातार जीत रहे हैं। वर्ष 2009 और 2014 में कीर्ति आजाद ने परचम लहराया तो वर्ष 2019 में गोपाल जी ठाकुर ने। ब्राह्मणों के दवदवा वाले इस सीट पर भाजपा ने फिर ब्राह्मण उम्मीदवार गोपाल जी ठाकुर को दूसरी बार मौका दिया है।इस बार भी राजग मिथिलांचल में अपने परंपरागत समर्थकों के साथ पचपनिया को साधने में जुटा है। 40 प्रतिशत से अधिक इन जातियों के मतदाता आम तौर पर चुनाव के दौरान मौन साधकर रहते हैं। दबंग कही जाने वाली कुछ जातियां अलग-अलग नेताओं व दलों के समर्थन में खुलकर सामने आती हैं।दरभंगा सीट पर ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव तो है, पर शांत मिजाज वाले पचपनिया मतदाताओं को बिना साधे कोई भी दल या गठबंधन नहीं जीत सकता।
दरभंगा संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की छह सीटें आती हैं, जिनमें गौरा बौरम, बेनीपुर, अलीनगर, दरभंगा ग् ीण, दरभंगा और बहादुरपुर विधानसभा सीटें शामिल हैं। गौराबौ , अलीनगर और दरभंगा में भाजपा, बहादुरपुर और बेनीपुर में जदयू जबकि दरभंगा ग् ीण में राजद का कब्जा है।
दरभंगा संसदीय सीट से भाजपा,राजद, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समेत 08 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। हालांकि माना जा रहा है कि दरभंगा सीट पर गोपालजी ठाकुर और ललित यादव के बीच सीधी लड़ाई है।दरभंगा लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 17 लाख 74 हजार 656 हैं। इनमें 09 लाख 33 हजार 122 पुरूष, आठ लाख 41 हजार 499 महिला,35 अन्य और सर्विस वोटर 1488 हैं, जो चौथे चरण में 13 मई को होने वाले मतदान में इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे। मिथिला नगरी दरभंगा में किसकी किस्मत खुलेगी,यह तो 04 जून को नतीजे के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा।
   
कड़वा सत्य

Tags: allegationsBiharcomplain about it. The thenhis own murder conspiracyhis own party Congress leadersPatnathird Chief Minister Vinodanand Jhaअपनी हत्या साजिशअपने ही दल काग्रेस नेताओंआरोपइसकी शिकायत. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरूतीसरे मुख्यमंत्री विनोदानंद झापटनाबिहार
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June 3, 2025
बिहार में दलित बच्ची की मौत: कानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं की विफलता

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June 3, 2025
Operation Sindoor Shaurya Yatra:दिल्ली की सड़कों पर गूंजा “भारत माता की जय”, ऑपरेशन सिंदूर को समर्पित शौर्य यात्रा में उमड़ा जनसैलाब!

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June 2, 2025
Shaurya Abhinandan Yatra: “ऑपरेशन सिंदूर” के वीरों को सलाम! दिल्ली में निकली शौर्य अभिनंदन यात्रा, गूंजा भारत माता की जय का नारा

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June 2, 2025

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