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बिहार में 1984 के चुनाव में खिलने से पहले ही मुरझा गया था भाजपा का ‘कमल’

News Desk by News Desk
April 7, 2024
in राजनीति
बिहार में 1984 के चुनाव में खिलने से पहले ही मुरझा गया था भाजपा का ‘कमल’
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पटना, 07 अप्रैल (कड़वा सत्य) वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वर्ष 1984 में हुये लोकसभा चुनाव में बिहार के सियासी रणभूमि में ‘कमल’ खिलने के पहले ही मुरझा गया था।
भाजपा के 06 अप्रैल 1980 को गठन के बाद वर्ष 1980 में हुये बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 246 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे, जिनमें से 21 सीट पर पार्टी का ‘केसरिया’ लहराया। इस चुनावो में कांग्रेस (इंदिरा) को 311 में से 169 सीटें मिली थीं और कांग्रेस (यू) को 185 में से 14 सीटें मिली थीं।जनता पार्टी (एससी) को 254 में से 42 सीटें मिली थीं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने 135 में 23 सीटें हासिल की थीं। कांग्रेस के दिग्गज जगन्नाथ मिश्र ने मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया और तीन साल 67 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद चंद्रशेखर बिहार के मुख्यमंत्री बने।
वर्ष 1984 में बिहार में हुये लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर में बिहार में कांग्रेस के 54 में से 48 प्रत्याशी निर्वाचित हुये। बिहार में भाजपा ने 32 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन किसी भी भी सीट पर उसका ‘कमल’ नहीं खिला। वहीं, पूरे देश में भाजपा के दो ही राजनेता ने जीत हासिल की। गुजरात के मेहसाणा से अशोक पटेल और आंध्र प्रदेश से जंगा रेड्डी ने चुनाव जीता। श्री अटल बिहार वाजपेयी को ग्वालियर सीट पर कांगेस उम्मीदवार माधवराव सिंधिया से हार का सामना करना पड़ा। भाजपा में निराशा छा गयी। श्री वाजपेयी ने तब कहा था, “हम चुनाव हारे हैं लड़ाई नहीं, हम दुगुनी ताकत से पूरे देश में कमल खिलाएंगे।” उस समय भाजपा ने जो पौधा रोपा तब शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि कुछ सालों बाद यह इतना बड़ा पेड़ बनेगा।
वर्ष 1985 में 324 सीट पर बिहार में हुये विधाननसभा चुनाव के समय राज्य में सामाजिक एवं जातीय गोलबंदी का एक नया दौर शुरू हो गया था। भाजपा ने 234 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन 16 सीट पर ही उसका ‘केसरिया’ लहराया।कांग्रेस ने 323 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे और 196 प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे। इस चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लोकदल को 46 और जनता पार्टी को 13 सीट पर जीत मिली। निर्दलीय प्रत्याशी ने भी बाजी अपने नाम की उसे 29 सीट पर जीत मिली। लोकदल सबसे बड़े विपक्ष के रूप में सामने आया था। बिहार में बिंदेश्वरी दुबे के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। इस चुनाव के बाद बिहार में एक ही कार्यकाल में चार मुख्यमंत्री बने थे।1985 से 1988 तक बिंदेश्वरी दुबे बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद लगभग एक साल भागवत झा  , फिर कुछ महीनों के लिए सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री बने थे।
वर्ष 1989 में हुये लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 24 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 08 सीटों पर जीत हासिल हुयी। पहली बार बिहार की सियासी रणभूमि में भाजपा का ‘भगवा ’ लहराया। मोतिहारी से राधा मोहन सिंह, सीवान से जर्नादन तिवारी, गोड्डा से जर्नादन यादव, पटना से शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव,कोडरमा से रीतलाल प्रसाद वर्मा, गिरीडीह से  नाथ सिंह,हजारीबाग से यदुनाथ पांडे, खूंटी(सु) से करिया मुंडा ने जीत हासिल की। इस चुनाव में जनता दल ने सर्वाधिक 32 सीट जीती।
वर्ष 1990 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 324 में से 122 सीटें लाकर जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरा। 324 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को सिर्फ 71 सीटें मिलीं। इस चुनाव में भाजपा ने 237 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये जिसमें 39 ने बिहार की सियासी रणभूमि में पार्टी का ‘भगवा’ लहराया।भाकपा को इस चुनाव में 23 सीट और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को 19 सीट मिली।इस चुनाव में 30 विधानसभा सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए थे।बहुमत के लिए कम से कम 163 विधायकों के समर्थन की जरूरत थी। जनता दल को बहुमत के लिए और सीटों की जरूरत थी।केंद्र की विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी.सिंह) की सरकार की तर्ज पर भाजपा ने बिहार में भी जनता दल सरकार को समर्थन दिया। जनता दल में चली रस्साकस्सी के बीच पार्टी के अंदर हुई वोटिंग में पूर्व मुख्यमंत्री   सुंदर दास को हराकर लालू प्रसाद यादव नेता चुने गये। लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बनाये गये। इसी के साथ लालू प्रसाद यादव ने बिहार में कांग्रेस पार्टी के शासन का अंत कर दिया।हालांकि, लालू प्रसाद यादव के साथ भाजपा का साथ लंबा नहीं चल सका। जल्द ही कांग्रेस विरोध की ये दोस्ती मंडल बनाम कमंडल की राजनीति का शिकार हो गई। सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकले भाजपा कद्वार नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को लालू प्रसाद यादव ने 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में रुकवा दिया और आडवाणी को गिरफ्तार करा दिया।लालू के इस कदम के बाद भाजपा ने केंद्र की वी.पी. सिंह सरकार और बिहार के लालू यादव की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।
भाजपा के इस कदम से केंद्र की वी.पी. सिंह की सरकार तो गिर गई, लेकिन बिहार में लालू प्रसाद यादव अपना किला बचाने के लिए बड़ा दांव खेल गये।. उन दिनों प्रदेश भाजपा के इंदर सिंह नामधारी ,लालू प्रसाद यादव के समर्थन में आ गए और भाजपा में टूट हो गई। इंदर सिंह नामधारी का गुट लालू प्रसाद यादव के समर्थन में आया और इस तरह लालू प्रसाद यादव ने अपनी कुर्सी बचा ली।
1991के हुये आम चुनाव का चुनाव भाजपा ने 51 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल पांच सीटों पर भाजपा का ‘कमल’ खिला।धनबाद से रीता वर्मा, रांची से   टहल चौधरी, खूंटी से करिया मुंडा, लोहरदगा से ललित उरांव और पलामू (सु) से  देव   ने ‘केसरिया’ लहराया। जनता दल ने सर्वाधिक 31 सीट जीती और उसके बाद झामुमो ने 06 सीट पर जीत हासिल की। कांग्रेस इस चुनाव में केवल एक सीट हासिल कर सकी थी। कांग्रेस की दिग्गज कृष्णा साही बेगूसराय सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार ललिता सिंह को पराजित किया।एक निर्दलीय प्रत्याशी को भी सफलता मिली। पप्पू यादव ने वर्ष 1991 में पूर्णिया संसदीय सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की।
1995 का विधानसभा चुनाव कई मायनों यादगार था। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में लड़ा गया यह आखिरी चुनाव था, जिसके बाद राबड़ी देवी की ताजपोशी हो गई और आगे के चुनाव में वह मुख्यमंत्री की कैंडिडेट रहीं। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में जनता दल ने 264 सीटों पर चुनाव लड़ा और वह 167 सीटें जीतने में सफल हुई।भाजपा ने 315 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए लेकिन सिर्फ़ 41 सीटो पर ‘कमल’ खिल पायी। कांग्रेस 320 सीटों पर चुनाव लड़कर 29 सीटें ही जीत पाई। नीतीश कुमार की पार्टी समता पार्टी को 310 में से सात सीटें मिली थीं।इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के साथ लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने।लेकिन, साल 1997 में चारा घोटाले में फंसने के कारण लालू यादव को बिहार के मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया।
1995 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार को लगा कि वह बिहार में लालू यादव से अकेले नहीं लड़ सकते हैं। 1996 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन कर लिया।1996 का लोकसभा चुनाव भाजपा ने नीतीश कुमार पार्टी समता पार्टी के साथ मिलकर लड़ा। इस चुनाव में भाजपा ने 32 सीट पर अपने उम्मीदवार खड़े किये जिसमें उसे 18 पर विजय मिली। वहीं समता पार्टी ने 20 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे जिसमें उसे 06 सीट पर जीत हासिल हुयी। जनता दल को 22 और कांग्रेस को केवल दो सीट पर जीत मिली। वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा के साथ नीतीश की पार्टी समता पार्टी थी। भाजपा ने 32 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे जिसमें उसे 20 सीट मिली। वहीं समता पार्टी ने 21 सीट पर अपने प्रत्याशी खड़े किये जिसमें उसे 10 सीटें मिली। राष्ट्रीय जनता दल को 17 और कांग्रेस को पांच सीट पर जीत हासिल हुयी।
वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड (जदयू) थी। भाजपा ने 29 सीट अपने प्रत्याशी खड़े किये जिसमें उसे 23 सीट पर जीत हासिल हुयी। जदयू के टिकट पर 23 उम्मीवार उतरे जिसमें उसे 18 पर जीत हासिल हुयी। इस चुनाव में भाजपा और जदयू के साथ आनंद मोहन की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी भी शामिल थी। बिहार पीपुल्स पार्टी के बैनर तले दो सीट पर चुनाव लड़ा गया। शिवहर से आनंद मोहन और वैशाली से उनकी पत्नी लवली आनंद ने चुनाव लड़ा लेकिन दोनों को जीत हासिल नहीं हुयी। इस चुनाव में राजद को सात और कांग्रेस को चार सीट पर जीत मिली। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) प्रत्याशी सुबोध राय ने भागलपुर से जीत हासिल की। इसके बाद अबतक बिहार में हुये लोकसभा चुनाव में वामदल का कोई भी उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर सका है। इस बार एक निर्दलीय प्रत्याशी के सर जीत का सेहरा सजा। पूर्णिया से निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव ने जीत हासिल की।
वर्ष 2000 में हुये बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 124 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में भाजपा ने बिहार में अपना असली दम दिखाया। यह वो वक्त था जब भाजपा केंद्र की सत्ता में थी। केंद्र का असर बिहार में दिखाई दिया और भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। भाजपा को 168 में से 67 सीटें हासिल हुई थीं।भाजपा को बिहार विधानसभा के अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा 67 सीटों पर सफलता मिली थी।इसके अलावा समता पार्टी को 120 में से 34 और कांग्रेस को 324 में से 23 सीटें हासिल हुई थीं। 324 विधानसभा सीटों वाले बिहार में सरकार बनाने के लिए 163 सीटें ज़रूरी थीं। किसी भी दल को सरकार बबनाने का जनादेश नहीं मिला।केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग की सरकार थी और बिहार में विनोद चन्द्र पांडे वाजपेयी सरकार द्वारा मनोनीत राज्यपाल थे। राजग ने समता पार्टी के नेता नीतीश कुमार को अपना नेता चुन लिया था। राजद इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।विनोद चंद्र पांडे ने राजद की जगह नीतीश कुमार को सरकार बनाने का आमंत्रण दे दिया। समीकरण ऐसे बने कि भाजपा के समर्थन से महज 34 सीटें जीतने वाले समता पार्टी के नीतीश कुमार पहली बार तीन मार्च 2000 को मुख्यमंत्री बने।हालांकि, उनकी यह सरकार सात दिनों तक ही चल पायी। बहुमत का जुगाड़ नहीं हो पाने के कारण उन्होंने 10 मार्च, 2000 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
राजद ने कांग्रेस के (23), भाकपा के (5),मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के (2) और अन्य दलों, का सहयोग मिला पर उसे अभी तक 163 विधायक का सर्मथन प्राप्त नहीं हुआ था। इस चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के 12 विधायक चुने गए थे। लालू प्रसाद यादव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन से सरकार बनाने में मदद मांगी और उन्हें झामुमो का समर्थन मिल गया। सरकार बनाने के लिये लालू प्रसाद यादव को झुकना पड़ा। कभी लालू प्रसाद यादव कहते थे कि झारखंड एक पृथक राज्य उनकी मृत शरीर पर ही बनेगा और अब वह बिहार के विभाजन पर वे सहमत हो गए थे। झामुमो के समर्थन के बाद राबड़ी देवी के नेतृत्व में सरकार बनीं। झारखंड भी अलग राज्य बन गया। बिहार में 40 सीटे रह गयी।
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बैनर तले भाजपा और जदयू ने चुनाव लड़ा। भाजपा ने 16 और जदयू ने 24 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे। जदयू को 06 जबकि भाजपा को पांच सीट पर जीत मिली। वहीं राजग के विरूद्ध (राजद),कांग्रेस, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) शामिल थी।राजद को 22, लोजपा को 04 और कांग्रेस को तीन सीट पर जीत मिली। राकांपा और माकपा के प्रत्याशी को किसी सीट पर जीत हासिल नहीं हुयी।
वर्ष 2005 में दो विधानसभा चुनाव हुये।पहला फरवरी 2005 में और दूसरा अक्टूबर 2005 में।फरवरी 2005 के चुनाव में जदयू ने 55 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा 37 सीट पर चुनाव जीता।राजद 75 सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। फरवरी 2005 के विधानसभा के चुनाव में जब किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और कोई भी दल सरकार बनाने में सफल नहीं रहा तब नवम्बर 2005 में फिर से विधानसभा का चुनाव कराया गया।अक्टूबर के चुनाव में जदयू केा 88 सीट पर उसे जीत मिली। वहीं भाजपा को 55 पर जीत हासिल हुयी। राजद को मात्र 54 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। बिहार से तब राजद के 15 वर्षों के शासन काल की विदाई हो गई थी। नीतीश कुमार दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। वहीं भाजपा के दिग्गज नेता सुशील कुमार मोदी पहली बार उप मुख्यमंत्री बनें।2005 में सत्ता में भागीदारी के बाद भाजपा का बिहार में ग्राफ बढ़ता चला गया।
वर्ष 2009 में हुये लोकासभा चुनाव में में राजग गठबंधन में शामिल भाजपा-जदयू ने 32 सीट अपने नाम कर ली। चौथे मोर्चे में शामिल राजद को 04 ,लोजपा को शून्य, पर जीत हासिल की। कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस को दो सीट मिली।इस चुनाव में दो निर्दलीय उम्मीदवार के सिर जीत का सेहरा सजा। बांका से दिग्विजय सिंह और सीवान से ओमप्रकाश यादव ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की।
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में राजग में शामिल जदयू को 115 और भाजपा को 91 सीटे मिली थीं। राजद और लोजपा एक साथ चुनाव मैदान में उतरे थे।राजद के खाते में 22 तो लोजपा के खाते में सिर्फ तीन सीटें गईं। कांग्रेस अकेले इस चुनाव में मैदान में उतरी थी। कांग्रेस को मात्र चार सीटें ही मिलीं। नीतीश कुमार ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेवारी संभाली। सुशील मोदी दूसरी बार उप मुख्यमंत्री बने।वर्ष 2013 में भाजपा और जदयू दोस्ती में दरार आ गयी। नीतीश कुमार ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश किये जाने की कोशिशों के विरोध में भाजपा से 17 साल पुराना अपना नाता तोड़ लिया।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जदयू के बगैर भी अपाना वजूद दिखाया।जदयू ने राजग से अलग होकर अकेले लड़ा था। इस चुनाव में जदयू ने 40 में से 38 सीट पर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में जदयू के योद्धाओं का निशाना सियासी रणभूमि में चूक गया। जदयू के योद्धा केवल दो सीट पर अपनी ‘तीर’ से निशाना लगाने में सफल रहे। इनमें एक सीट नीतीश कुमार के गढ़ नालंदा की थी और दूसरी पूर्णिया थी। वहीं, इस चुनाव में जदयू की सहयोगी रही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने दो सीट बांका और बेगूसराय से चुनाव लड़ा और उसे भी हार मिली। वहीं, राजग के घटकों में भारतीय जनता पाार्टी (भाजपा), लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) शामिल थी। भाजपा ने 30 सीट पर चुनाव लड़ा, जिनमें से उसे 22 सीट पर शानदार जीत मिली। लोजपा ने 07 में से 06 सीट और रालोसपा ने तीनों सीट जीत कर शत-प्रतिशत सफलता पायी थी। राजग को इस चुनाव में 31 सीट मिली। विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ा था। राजद ने 27,कांग्रेस ने 12,और राकांपा ने एक सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। राजद ने 04,कांग्रेस ने 02 सीट, राऔर राकांपा ने एक सीट पर सफलता हासिल की थी।
वर्ष 2014 में लोकसभा में हुयी करारी हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और अपने भरोसेमंद महादलित नेता जीतन   मांझी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन इसके बाद नीतीश कुमार को लगने लगा कि उन्होंने श्री मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर एक बड़ी राजनीतिक भूल कर दी है। जीतन   मांझी के इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने चौथी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला।
वर्ष 2015 के चुनाव में भाजपा और जदयू अलग थे। जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। राजग में भाजपा, लोजपा और रालोसपा शामिल थी।राजद को 80, जदयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीट पर जीत मिली। राजग को 58 सीट मिली,जिसमें भाजपा की 53, लोजपा की दो ,रालोसपा की 2 और हम की एक सीट शामिल है।नीतीश कुमार पांचवी बार मुख्यमंत्री बने। वहीं राजद के तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री बने।इस बार श्री कुमार की सरकार करीब 20 महीने ही चल पायी। उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ते हुए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया। इसके बाद तुरंत भाजपा ने नीतीश कुमार को समर्थन देने की घोषणा कर दी और नीतीश कुमार ने छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली । सुशील कुमार मोदी फिर से उप मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुये।इसके साथ ही फिर से बिहार में राजग सरकार की वापसी हो गयी।
वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव जदयू ने राजग गठबंधन के बैनर तले लड़ा। राजग गठबंधन में भाजपा,जदयू और लोजपा शामिल थी। भाजपा ने 17, जदयू ने 16 और लोजपा ने 06 सीट पर जीत हासिल की।वहीं महागठबंधन के घटक दल में राजद, कांग्रेस, रालोसपा वीआईपी और हम शामिल थी।कांग्रेस को एक मात्र सीट किशनगंज मिली। कांग्रेस के अलावा महागठबंधन का कोई भी घटक दल सीट नहीं जीत पाया।
वर्ष 2020 में बिहार में हुये विधानसभा चुनाव में (राजग) के घटक दल में भाजपा, (जदयू), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी शामिल थी। महागठबंधन में (राजद) ,कांग्रेस भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) थी।लोजपा ने अपने दम पर 135 सीटों पर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा को 74, जदयू को 43,(हम) और (वीआईपी) को चार-चार सीटें मिली। राजग ने 125 सीटें हासिल की। (राजद) ने 75 सीट,कांग्रेस ने 19 ,(भाकपा-माले) ने 12 ,(भाकपा) और (माकपा) दो-दो सीट पर जीत हासिल की। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने एक सीट मटिहानी से जीत हासिल की। निर्दलीय उम्मीदवार ने भी एक-सीट पर जीत हासिल की।बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की सरकार बनीं। नीतीश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री बने।
करीब दो साल तक जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार चलायी। अचानक नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद श्री कुमार ने राजद के सहयोग से सरकार बनायी।राजद के साथ 18 महीने सरकार चलाने के बाद नीतीश कांग्रेस के रवैया और लालू प्रसाद यादव के कांग्रेस के प्रति   से झुग्ध होकर राजद ने नाता तोड़ लिया और वापस राजग में चले गये। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतत्व में भाजपा में भारी जीत दर्ज की है। उन राज्यों में भी भाजपा ने सरकार बना ली है जहां पार्टी का अस्तित्व नहीं था। बिहार शायद एकमात्र राज्य है जहां बहुत मजबूत स्थिति में होने के बावजूद आज तक पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में जदयू एक बार फिर से राजग के साथ है। राजग की ओर से (भाजपा) 17, जदयू 16, चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा- विलास) 05 , उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा और जीतन  मांझी की पार्टी हम एक-एक सीट पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। भाजपा पश्चिम चम्पारण,पूर्वी चम्पारण, मधुबनी, अररिया, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, महाराजगंज, सारण, उजियारपुर, बेगूसराय, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर, सासा  (सु), औरंगाबाद और नवादा से चुनावी रणभूमि में उतरेगी। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के चुनाव में भाजपा कितनी सीट पर पार्टी का ‘कमल’ खिला पाती है।
   
कड़वा सत्य

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