पटना, 16 मई (कड़वा सत्य) कलम के जादूगर वृक्ष बेनपुरी ने मुजफ्फरपुर के कटरा नार्थ विधानसभा सीट से वर्ष 1957 में चुनाव जीता था।
महान विचारक, चिंतक, क्रांतिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक, हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं महान स्वतंत्रता सेनानी वृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर 1899 को मुजफ्फरपुर के बेनीपुर गांव में हुआ था। बेनीपुरी जी ने उपन्यास, नाटक, कहानी, स्मरण, निबंध और रेखा चित्र आदि सभी गद्य विधाओं में अपनी कलम उठाई है। पतितों के देश में, रेखा चित्र- माटी की मूरत, लाल तारा, कहानी चिता के फूल , नाटक अंब पाली ,निबंध गेहूं और गुलाब, मशाल, वंदे वाणी विनाय को,संस्मरण जंजीरें और दीवारें ,यात्रा वर्णन पैरों में पंख बांधकर समेत कई कृति उन्होंने लिखी है।
वर्ष 1957 में वृक्ष बेनीपुरी ने कटरा नार्थ विधानसभा सीट से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में वृक्ष बेनीपुरी ने कांग्रेस उम्मीदवार बाबू सिन्हा को 2646 मतों के अंतर से पराजित किया था। उन्होंने इस चुनाव में प्रचार के लिए बैलगाड़ी,साइकिल और हाथी का सहारा लिया था। कलम के जादूगर ने अपने संकलन ‘डायरी के पन्ने’ में चुनावी अनुभव को साझा किया था,उन्होंने लिखा था,चुनाव के चक्रव्यूह में हूं। बिगुल बज गया है। फौज ने कूच कर दी। अब आगे-पीछे देखने का मौका कहां, जो होना होगा, होगा। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बराती की तरह लोग उनके पीछे चलते थे। बेदौल के विजय राय ने प्रचार के लिए अपना हाथी दिया था। बेनीपुरी चुनाव प्रचार के बारे में लिखा था,हाथी पर बैठे-बैठे बदन अकड़ जाता था। यह कमबख्त जानवर चलता है तो सारा बदन झकझोर देता है।बेनीपुरी जी ने अपने लिए बैलगाड़ी एव कार्यकर्ताओं के लिए साइकिल की व्यवस्था की थी। गांव में भी मित्र से छह-सात सौ रुपये लेकर 30 साइकिल की मरम्मत करवा दी थी। जब चुनाव का परिणाम आया तो बेनीपुरी ने जीत हासिल की थी। जीत की खुशी का जिक्र करते हुए बेनीपुरी जी ने लिखा था कि परिणाम के बाद होली का पर्व था। ऐसी होली जिंदगी में कभी नहीं खेली थी। सारा गांव उल्लास में नाच रहा था।
इससे पूर्व वृक्ष बेनीपुरी ने पहले आम चुनाव में भी कटरा नार्थ सीट से अपनी किस्मत आजमायी थी लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनावी समर में उतरे वृक्ष शर्मा ( वृक्ष बेनीपुरी) को कांग्रेस के मथुरा प्रसाद सिंह ने मात दी थी। इस बारे में उन्होंने लिखा था,पिछले चुनाव में अपने क्षेत्र में बहुत कम समय दे सका। पार्टी के अन्य उम्मीदवार के लिए अधिक समय दिया। अपने क्षेत्र में जो समय भी दिया, इसमें संगठन का पक्ष का बहुत कमजोर रहा। पटना से जब आता, दो चार दिनों के लिए इधर – उधर दौड़ लेता, लोगों में उत्साह भरता और चल देता। उत्साह में कमी नहीं थी, बल्कि उसकी मात्रा इतना अधिक थी कि मैंने मान लिया था कि इस बार चुनाव जीत गया। लेकिन, मैं हार गया और बुरी तरह हार गया ।
कड़वा सत्य