जयपुर 18 अगस्त (कड़वा सत्य) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राजनीतिक हित के लिए राष्ट्रहित को तिलांजलि देना ठीक नहीं बताते हुए कहा है कि भारतीयता हमारी पहचान है एवं इसमें हमारा अटूट विश्वास है तथा राष्ट्र हमारे लिए सर्वोपरि है और जिनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि नहीं है, राजनीतिक हित एवं व्यक्तिगत स्वार्थ को ऊपर रखते हैं, उन्हें समझाने की जरुरत हैं।
श्री धनखड़ रविवार को यहां बिरला सभागार में देहदानियों के परिजनों का सम्मान समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि राजनीतिक मतांतर लोकतंत्र की खूबी है। अलग-अलग विचार रखना लोकतंत्र के गुलदस्ते की महक है, पर यह तब तक ही है जब राष्ट्रहित को तिलांजलि नही दी जाए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित को सर्वोपरि नहीं रखेंगे तो जो यह राजनीतिक मतांतर है, यह राष्ट्रविरोधी बन जाता है। देखने मे अक्सर आता है कि व्यक्ति के हित को, राजनीतिक स्वार्थ को राष्ट्रीय हित से ऊपर रखा जाता है और जिन लोगों ने अच्छे पद ग्रहण किए हैं, बड़े पद ग्रहण किए हैं वो विचारधारा ऐसी पेश करते हैं जैसे कि इस देश में कुछ भी हो सकता है।
श्री धनखड़ ने कहा कि हमारा संकल्प होना चाहिए किसी भी हालत में राष्ट्रहित को तिलांजलि नहीं दे सकते। जिनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि नहीं है, राजनीतिक हित को ऊपर रखते हैं, व्यक्तिगत स्वार्थ को ऊपर रखते हैं, उनको हमें समझाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर ऐसे लोग इस पर कायम है तो यह राष्ट्र के विकास के लिए हानिकारिक और वह सभी से इन ताकतों को बेअसर करने का आग्रह करते है। क्योंकि जो भारत में हो रहा है जो भारत में विकास यात्रा की गति है। हमने कभी सपना नहीं देखा था। जो कुछ हो रहा है वह अकल्पनीय है। आज कि पीढ़ी को अंदाज़ा नहीं है, इसीलिए वह आह्वान करना चाहते है कि आज की पीढ़ी को संविधान दिवस के ऊपर देखना चाहिए कि संविधान पर खतरा कब आया था। कुछ लोग कहते हैं कि आपातकाल का काला अध्याय चुनाव से खत्म हो गया, नहीं।
उन्होंने युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के पिछले खतरों के बारे में शिक्षित करने की जरुरत बताते हुए कहा कि आज़ादी को हम भूल नहीं सकते क्योंकि लोगों ने बहुत बड़ी कुर्बानियां दी है और आपातकाल के जो अत्याचार हैं और इसीलिए जो भारत सरकार ने पहल की है- ‘संविधान हत्या दिवस’ , वह हमारी नव-पीढ़ी को आगाह करने के लिए है कि उनको पता लगना चाहिए कि एक ऐसा कालखंड था जिसमें आपके कोई मौलिक अधिकार नहीं थे, उच्चत्तम न्यायालय ने भी हाथ खड़े कर दिए। कार्यपालिका का तानाशाही रवैय्या ऐसा रहा, इस शिखर पर पहुंच गया कि इतिहास में इसका कोई उदाहरण नहीं मिलेगा। उन्होंने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की याद दिलाते हुए सभी से आग्रह किया कि वे हमारे शास्त्रों और वेदों में निहित ज्ञान पर विचार करें, जो ज्ञान और मार्गदर्शन का विशाल भंडार हैं।
इस अवसर पर उन्होंने अंगदान की गहन महत्वपूर्णता को उजागर करते हुए इसे “एक आध्यात्मिक गतिविधि और मानव स्वभाव की सर्वोच्च नैतिक अभिव्यक्ति” के रूप में वर्णित किया। उन्होंने कहा कि अंगदान केवल शारीरिक उदारता से परे जाता है और करुणा और निःस्वार्थता के गहरे गुणों को दर्शाता है।
जैन सोशल ग्रुप्स सेंट्रल संथान और दधीचि देहदान समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में श्री धनखड़ने अंगदाता परिवारों को सम्मानित किया और नागरिकों से अंगदान की दिशा में सचेत प्रयास करने का आह्वान किया। उन्होंने इसे मानवता की सेवा की महान परंपरा से जोड़ते हुए एक मिशन बनाने की बात कही।
जोरा
कड़वा सत्य