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वैश्विक अविश्वास को दूर करने में भारत की भूमिका नेतृत्वकारी हो : डेनिस फ्रांसिस

News Desk by News Desk
January 24, 2024
in देश
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वैश्विक अविश्वास को दूर करने में भारत की भूमिका नेतृत्वकारी हो : डेनिस फ्रांसिस
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नयी दिल्ली 24 जनवरी (कड़वा सत्य) संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते हुए आज कहा कि शांतिदूत महात्मा गांधी का देश होने के नाते भारत संयुक्त राष्ट्र में मौजूदा अविश्वास को दूर करने में और दुनिया में शांति, समृद्धि, प्रगति एवं स्थायित्व स्थापित करने में नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकता है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर के निमंत्रण पर भारत की पांच दिन की यात्रा पर आये त्रिनिदाद एवं टुबैगो के पूर्व राजनयिक श्री फ्रांसिस ने यहां संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय में संवाददाताओं से बातचीत में यह कहा। उन्होंने साफ शब्दों में यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को मौजूदा भूराजनीतिक वास्तविकताओं को परिलक्षित नहीं करता है। संयुक्त राष्ट्र सुधारों की पुरज़ोर वकालत करते हुए कहा कि बड़े देश वीटो के माध्यम से भू राजनीतिक गतिशीलता को बाधित करके इसे सही निर्णय लेने में असमर्थ बना रहे हैं। उन्होंने भारत के ग्लाेबल साउथ (वैश्विक दक्षिण) की आवाज़ उठाने और अफ्रीका के साथ सहयोग की भी सराहना की।
श्री फ्रांसिस ने कहा कि भारत का बीते दिनों में परावर्तन हुआ है और वैश्विक दक्षिण को लेकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक मानक स्थापित किया है। संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता को लेकर अविश्वास का वातावरण बना है। भारत विश्वास की इस कमी को दूर करने के प्रयासों का नेतृत्व कर सकता है क्योंकि यह महात्मा गांधी की धरती है। उन्होंने कहा कि यह याद रखने की जरूरत है कि संयुक्त राष्ट्र किसी देश या सरकारों का नहीं विश्व के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और इसीलिए मीडिया को समाज में संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता को लेकर जागरूकता फैलानी चाहिए। अपनी जयपुर यात्रा का उल्लेख करते हुए भारत की सांस्कृतिक विविधता की प्रशंसा की। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष ने विदेश मंत्री डाॅ. जयशंकर से भी मुलाकात की। श्री फ्रांसिस कल मुंबई जाएंगे।
उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के रूप में अपनी पहली यात्रा पर भारत आकर मुझे खुशी हो रही है…मैं आपके काम और आपकी निरंतर रुचि के लिए ईमानदारी से धन्यवाद देता हूं। मैं विदेश मंत्री के निमंत्रण पर यहां भारत आया हूं। मेरी यात्रा का प्राथमिक फोकस संयुक्त राष्ट्र महासभा में शांति, समृद्धि, प्रगति और स्थिरता के प्रति मेरी अध्यक्षता की प्राथमिकताओं के लिए भारत का निरंतर समर्थन प्राप्त करना है। नई दिल्ली में मेरा पहला कार्यक्रम महात्मा गांधी के प्रति सम्मान व्यक्त करना था… उनके ये शब्द कि शांति के अलावा कोई रास्ता नहीं है, शांति ही रास्ता है, मेरा मानना ​​है कि इस कठिन समय में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है।”
सुरक्षा परिषद के सुधारों के बारे में श्री फ्रांसिस ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद जिस रूप में वर्तमान में अस्तित्व में है वह विश्व इतिहास के उस काल की याद दिलाती है जो अब अस्तित्व में नहीं है। इसका गठन 1945 के तुरंत बाद के युग में किया गया था। तब से, दुनिया मौलिक रूप से बदल गई है। आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताएँ परिषद में प्रतिबिंबित नहीं होती हैं। सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से तीन एक ही क्षेत्र से आते हैं। और ऐसे लोग भी हैं जो दावा करते हैं कि परिषद को लोकतंत्रीकरण की तत्काल आवश्यकता है। यह वास्तविकता है कि परिषद, हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत करने में सहायता और समर्थन करने के लिए आवश्यक निर्णय लेने में उत्तरोत्तर असमर्थ रही है। मुख्यतः भू-राजनीतिक कारणों से हमेशा एक या दूसरे पक्ष द्वारा वीटो का उपयोग किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप भू-राजनीति, भू-राजनीति की वैश्विक गतिशीलता को परिषद में बाधित किया जाता है। इससे बड़ी हताशा होती है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र में इसके परे भी बहुत सारी चीज़ें हैं।”
उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधार आवश्यक हैं। इससे कोई भी सदस्य इन्कार नहीं कर सकता है। पर संयुक्त राष्ट्र के सुधार एक प्रक्रिया है और यह ऐसे नहीं होते कि एक सुबह हम सो कर उठें तो पायें कि सुधार हो गये। उन्होंने कहा कि विशेषाधिकार पाये देश इतनी आसानी से अपने विशेषाधिकार नहीं छोड़ेंगे। इसके लिए कोई फॉर्मूले पर पहुंचना होगा। इस समय करीब पांच फॉर्मूलों पर विचार मंथन हो रहा है। अभी कोई सर्वसम्मति नहीं बनी है।
वैश्विक सुरक्षा निकाय में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे के बारे में उन्होंने कहा कि भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र का एक मजबूत, सक्रिय, भरोसेमंद एवं सम्मानित साझीदार रहा है। शांतिरक्षा अभियानों में भारत का योगदान सर्वाधिक है। वह इस विषय में भारत की सफलता की कामना करते हैं।
आतंकवाद को लेकर एक सवाल पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष ने कहा, “आतंकवाद एक वैश्विक घटना है। कट्टरवाद हर जगह फैल रहा है जो समाज को नष्ट कर रहा है। भारत भी आतंकवाद का शिकार रहा है। दुनिया भर के कई देशों में है। संयुक्त राष्ट्र के पास आतंकवाद विरोधी कार्रवाई का एक कार्यक्रम विचाराधीन है। यह सभी देशों का दायित्व है कि उनको इस बुराई को नियंत्रित करने के लिए आगे आना चाहिए।”
भारत के अफ्रीका महाद्वीप एवं वैश्विक दक्षिण के साथ संबंधों के बारे में एक सवाल के जवाब में श्री फ्रांसिस ने कहा, ‘किसी के मन में कोई संदेह नहीं है कि भारत की अफ्रीका तक पहुंच, विशेष रूप से जी20 में अफ्रीकी संघ की सदस्यता को सुविधाजनक बनाने के संबंध में, अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भारत के नेतृत्व को प्रदर्शित करती है। लेकिन इससे भी अधिक यह तीसरी दुनिया, वैश्विक दक्षिण में विकास में सहायता और सुविधा प्रदान करने की इसकी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अफ़्रीका एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी क्षमता का अभी भी पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सका है। डिजिटलीकरण की दुनिया में यह उससे कहीं नीचे है जिसे संतोषजनक माना जा सकता है। इसलिए भारत के पास अन्य विकासशील देशों के साथ साझा करने के लिए बहुत कुछ है, इसकी अधिकांश सफलता और इसकी शक्ति पिछले दस से 15 वर्षों में हासिल हुई है।”
उन्होंने कहा, “हम डिजिटलीकरण के बारे में बात कर रहे हैं। आपको डिजिटलीकरण में भारत की सफलताओं के बारे में बात करनी होगी। अतीत में अन्य देश उस तरह से आउटरीच में शामिल नहीं हुए जैसे कि भारत अब कर रहा है। हां, उनके बीच संबंध हैं, लेकिन उन संबंधों का इस तरह से शोषण किया गया जिससे अफ्रीकियों को लाभ पहुंचाने के बजाय उन देशों को लाभ हुआ। भारत वैश्विक नीति-निर्माण में अफ़्रीका की भागीदारी और उसकी आवाज़ को साझा करने और उसमें शामिल होने और उसे सुविधाजनक बनाने का इच्छुक है क्योंकि यह उनके आर्थिक विकास से संबंधित है।”
गाज़ा में हमास एवं इज़रायल के बीच संघर्ष के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भारत ने द्विराष्ट्र सिद्धांत के आधार पर समाधान खोजे जाने की बात कह कर अत्यधिक जिम्मेदार देश होने का परिचय दिया है। पर गाज़ा में जो हो रहा है, वह बहुत ही चिंताजनक है, पर उसे जनसंहार कहना अभी उचित नहीं है। जब तक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय द्वारा गठित जांच पूरी नहीं हो जाती है और इस बात के कोई प्रमाण नहीं आते, तब तक इसे जनसंहार नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस समस्या का कोई सैन्य समाधान नहीं थोपा जा सकता है। बातचीत से और सहमति से ही समाधान निकाला जा सकता है।
सचिन

Tags: नयी दिल्ली संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन New Delhi United Nations General Assembly President Dennis Francis supports India
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