Nitish Model: 1990 के दशक में बिहार में चारों तरफ डर का माहौल था। फिरौती के लिए अपहरण, जातीय संघर्ष और खुलेआम अपराध आम हो गए थे। स्कूल के बच्चे, डॉक्टर, व्यापारी—कोई सुरक्षित नहीं था। लोग सरकार से निराश हो चुके थे और बदलाव की तलाश में थे।
नीतीश कुमार की एंट्री और ‘स्पीडी ट्रायल मॉडल’ की शुरुआत
नवंबर 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने। आते ही उन्होंने संगठित अपराधियों के खिलाफ ‘स्पीडी ट्रायल’ की शुरुआत की। इस कानून के तहत अपराधियों को जल्द से जल्द सजा दिलाई गई।
- 2005 में हत्या के 3,423 मामले थे, जो 2007 तक घटकर 2,963 रह गए।
2011 में यह संख्या सिर्फ 501 रह गई।
70 हजार से ज्यादा अपराधियों को सजा, हजारों ने गंवाई सरकारी नौकरी की पात्रता
2006 से 2012 तक 70,426 अपराधियों को कोर्ट ने सजा सुनाई। इनमें 47,000 से ज्यादा को 2 साल से ज्यादा की सजा मिली, जिससे वे सरकारी नौकरी और चुनाव लड़ने के हकदार नहीं रहे।
पुलिस व्यवस्था को हाईटेक और मजबूत किया गया
नीतीश सरकार ने पुलिस की ताकत को बढ़ाने पर जोर दिया:
- थानों की संख्या: 817 → अब 1380
- पुलिस वाहन: 4008 → अब 12,084
- हथियार: 75,602 → अब 1,55,857
- महिला पुलिस आरक्षण: 35%
- 2018 में बिहार पुलिस अकादमी की स्थापना
डायल 100 से डायल 112 तक, इमरजेंसी सेवा में बड़ा बदलाव
अब पूरे बिहार में 112 नंबर पर कॉल करके पुलिस, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और ट्रैफिक जैसी मदद ली जा सकती है। पटना समेत प्रमुख शहरों में इमरजेंसी हेल्प बॉक्स लगाए गए हैं जिससे सीधे कंट्रोल रूम से संपर्क होता है।
साइबर क्राइम पर सख्ती और महिला सुरक्षा पर फोकस
बढ़ते साइबर क्राइम को देखते हुए 44 नए साइबर थानों की स्थापना की गई। महिलाओं की सुरक्षा के लिए हर थाने में महिला पुलिस और जरूरी सुविधाएं सुनिश्चित की गई हैं।
बिहार में अब 28,000 से ज्यादा महिला पुलिसकर्मी हैं। यह देश में सबसे ज्यादा है।
लॉ एंड ऑर्डर और अनुसंधान को अलग किया गया
अब पुलिस के दो अलग विभाग हैं—एक कानून व्यवस्था संभालेगा, दूसरा केसों की जांच करेगा। इससे अपराध अनुसंधान में तेजी आई है और कानून व्यवस्था भी बेहतर हुई है।
नीतीश मॉडल बना पूरे देश के लिए मिसाल
स्पीडी ट्रायल से लेकर साइबर थानों तक और महिला सशक्तिकरण से लेकर हाईटेक इमरजेंसी सिस्टम तक, नीतीश कुमार का मॉडल आज बिहार की पहचान बन चुका है। यह बदलाव किसी एक योजना का नहीं, बल्कि एक सोच, नीति और सख्त प्रशासनिक इच्छाशक्ति का नतीजा है।