अमित पांडेय
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने वैश्विक निवेशकों और आर्थिक एजेंसियों का ध्यान फिर से दक्षिण एशिया की स्थिरता पर केंद्रित कर दिया है। इसी पृष्ठभूमि में, अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज (Moody’s Investors Service) ने भारत की आर्थिक विकास दर (GDP Growth Rate) का अनुमान घटा दिया है, जिससे घरेलू नीति निर्माताओं के सामने नई चिंताएँ उभर आई हैं।
मूडीज ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में भारत की 2025 की आर्थिक विकास दर को 6.8% से घटाकर 6.4% कर दिया है। इसके पीछे मुख्य कारणों के रूप में उन्होंने क्षेत्रीय तनाव, वैश्विक अनिश्चितता, और उपभोक्ता मांग में सुस्ती को जिम्मेदार ठहराया है। यह कटौती ऐसे समय पर आई है जब भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा था।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की GDP ग्रोथ 7.6% रही थी, जो वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय प्रदर्शन था। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह गति बनाए रखना अब चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर तब जब सीमा पर तनाव और वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ रही हो।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने एक रिपोर्ट में कहा, “हालांकि घरेलू मांग स्थिर है और इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश में तेजी है, लेकिन बाहरी जोखिम जैसे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और क्षेत्रीय संघर्ष निवेशकों के विश्वास को प्रभावित कर सकते हैं।”
भारत-पाकिस्तान के बीच जारी कूटनीतिक और सामरिक तनाव, विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे और सीमा पर लगातार बढ़ती सैन्य गतिविधियों के चलते, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ भारत की आर्थिक संभावनाओं को लेकर सतर्क हो गई हैं। मूडीज की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि यदि यह तनाव लंबा खिंचता है, तो यह व्यापारिक धाराओं, निवेश के रुझानों और मुद्रा विनिमय दरों को प्रभावित कर सकता है।
इसके अलावा, महंगाई दर को लेकर भी चिंताएँ बनी हुई हैं। अप्रैल 2025 में थोक महंगाई दर 5.2% तक पहुंच गई, जो खाद्य वस्तुओं और कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) इस स्थिति से निपटने के लिए अपनी मौद्रिक नीति को संतुलित रखने का प्रयास कर रहा है। लेकिन अगर महंगाई और तनाव दोनों ही अनियंत्रित रहे, तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की धारणा भी इस प्रकार के भू-राजनीतिक तनावों से प्रभावित होती है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में अप्रैल और मई 2025 के दौरान लगभग ₹18,000 करोड़ की निकासी दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह रुझान तब तक जारी रह सकता है जब तक कि भारत सरकार कोई स्पष्ट, शांतिपूर्ण और स्थिर नीति दिशा नहीं देती।
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा, “हमें केवल आर्थिक संकेतकों को ही नहीं देखना चाहिए, बल्कि उन कारकों को भी समझना चाहिए जो बाजार की धारणा को प्रभावित करते हैं। क्षेत्रीय तनाव से घरेलू सुधार प्रयासों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।”
सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है कि मूडीज की इस रिपोर्ट को किस प्रकार देखा जा रहा है। लेकिन वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने संकेत दिया है कि सरकार अगले कुछ महीनों में निजी निवेश को बढ़ावा देने, MSME सेक्टर को राहत देने और ग्रामीण मांग को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ नीतिगत घोषणाएं कर सकती है।
भारत की आर्थिक मजबूती का आधार अभी भी मजबूत है — जैसे मजबूत बैंकिंग प्रणाली, युवाओं की आबादी, और तकनीकी नवाचार में नेतृत्व। लेकिन ये संभावनाएं तभी साकार हो सकती हैं जब राजनीतिक स्थिरता और क्षेत्रीय शांति सुनिश्चित हो। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, “असली अर्थशास्त्र वह है जो मानवता को भलाई की ओर ले जाए।” यदि आर्थिक विकास का मार्ग संघर्ष और तनाव से होकर गुजरता है, तो उसकी स्थिरता और समावेशिता संदिग्ध हो जाती है।
भारत को इस समय दोहरी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है — एक ओर कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान के साथ तनाव को नियंत्रित करना, और दूसरी ओर घरेलू आर्थिक एजेंडा को सामाजिक न्याय, रोजगार सृजन और पर्यावरणीय संतुलन के साथ आगे बढ़ाना। तभी भारत वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की अपनी आकांक्षा को सही मायनों में साकार कर सकेगा।