लेखक: अमित पांडेय
पाकिस्तान वर्तमान समय में गंभीर आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है, लेकिन हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा प्रदान की गई नई वित्तीय सहायता ने उसे एक अस्थायी राहत अवश्य दी है। 9 मई 2025 को IMF ने पाकिस्तान के लिए दो अहम निर्णय लिए—पहला, $7 अरब के विस्तारित फंड सुविधा (EFF) कार्यक्रम की पहली समीक्षा को मंजूरी देना, जिसके तहत पाकिस्तान को $1 अरब की किश्त तुरंत जारी की गई। दूसरा, जलवायु लचीलापन और स्थिरता सुविधा (RSF) के अंतर्गत $1.4 अरब का नया ऋण कार्यक्रम पास करना। कुल मिलाकर पाकिस्तान को $2.4 अरब की नई सहायता प्राप्त हुई है, जो उसके विदेशी मुद्रा भंडार और वित्तीय स्थिरता के लिए कुछ समय तक राहत प्रदान कर सकती है।
हालांकि, यह राहत स्थायी समाधान नहीं है। पाकिस्तान का कुल बाह्य ऋण 2025 में लगभग $131 अरब तक पहुँच चुका है, जिसमें से एक बड़ी राशि चीन, सऊदी अरब और अन्य द्विपक्षीय स्रोतों से ली गई है। इसके साथ ही पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार अप्रैल 2025 के अंत तक केवल $14.8 अरब रह गया था, जो मुश्किल से तीन महीनों के आयात खर्च को कवर कर सकता है। निर्यात घटते जा रहे हैं, जबकि आयातित ऊर्जा और खाद्य सामग्री पर निर्भरता बढ़ी है। डॉलर की तुलना में पाकिस्तानी रुपया लगातार कमजोर हो रहा है, जिससे देश में महंगाई दर 28% के करीब पहुँच गई है।
पाकिस्तान की आर्थिक कमजोरी का एक बड़ा कारण उसकी राजनीतिक अस्थिरता भी है। पिछले एक दशक से बार-बार सरकारों का बदलना, न्यायपालिका और सेना के बीच संघर्ष, तथा आतंकवाद से संबंधित गतिविधियाँ घरेलू निवेश और विदेशी पूंजी दोनों को डरा चुकी हैं। IMF की शर्तों को लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी बार-बार सामने आई है। जैसे-जैसे सब्सिडी घटाई जाती है, और कर ढांचा कड़ा किया जाता है, आम नागरिकों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है, जिससे जन असंतोष और अधिक फैलता है।
हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर पहुँच गया है। 7 मई 2025 को भारतीय सेना द्वारा संचालित “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते लगभग टूट चुके हैं। भारत ने पाकिस्तान पर सीमा पार से आतंकवाद को प्रायोजित करने का आरोप लगाते हुए न केवल सिंधु जल संधि को एकतरफा स्थगित किया, बल्कि वीज़ा और व्यापार संबंधों पर भी रोक लगा दी। सिंधु नदी के जलप्रवाह पर भारत का नियंत्रण पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बन गया है, क्योंकि लगभग 37% पाकिस्तानी कार्यबल कृषि पर निर्भर है और यह क्षेत्र देश की GDP में लगभग एक चौथाई योगदान देता है।
इस स्थिति में IMF और अन्य बहुपक्षीय संस्थानों से सहायता प्राप्त करना पाकिस्तान के लिए जटिल होता जा रहा है। भारत ने IMF बोर्ड की बैठक में पाकिस्तान को सहायता दिए जाने पर विरोध जताया और वोटिंग से परहेज़ किया, यह कहते हुए कि पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि का पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। भारत के इस कदम का राजनीतिक असर तो है ही, लेकिन इसका आर्थिक असर यह हो सकता है कि भविष्य में पाकिस्तान के लिए IMF से आगे की किश्तें प्राप्त करना और कठिन हो जाए, खासकर यदि वह आवश्यक सुधारों को समय पर लागू न कर सके।
पाकिस्तान की स्थिति अब एक मोड़ पर आ खड़ी हुई है जहाँ उसे यह तय करना होगा कि वह सैन्य और वैचारिक टकरावों में अपनी ऊर्जा नष्ट करेगा या एक समावेशी और सुधारोन्मुख आर्थिक नीति को अपनाएगा। देश को आंतरिक रूप से कर ढांचे में पारदर्शिता लाने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। साथ ही, निर्यात-आधारित उद्योगों, विशेष रूप से वस्त्र और कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र को पुनर्जीवित करना भी समय की मांग है।
भविष्य के लिए पाकिस्तान को यह समझना होगा कि बाहरी सहायता कोई स्थायी समाधान नहीं है। IMF की हर किश्त एक नई शर्त और एक नई ज़िम्मेदारी के साथ आती है। देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में सोचने और राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं। भारत के साथ युद्ध या तनाव से न तो पाकिस्तान को राजनयिक लाभ मिलेगा और न ही आर्थिक। बल्कि यह उसकी पहले से जर्जर हो चुकी अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ बन जाएगा।
जैसा कि एक उर्दू शेर में कहा गया है—
“कर्ज की पीर में डूबा मुल्क, जंग की राह क्यों चुने,
जब खुद की सांसें उधार की हों, तो आग से खेलना क्यों बने।”
आज पाकिस्तान के नीति-निर्माताओं को आत्ममंथन करना होगा। यह समय युद्ध या कटुता को नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण और शांति को प्राथमिकता देने का है। आने वाले वर्षों में यह निर्णय ही तय करेगा कि पाकिस्तान संकट से बाहर निकलेगा या और गहराई में डूब जाएगा।