Indian Knowledge System : भारतीय ज्ञान प्रणाली और विरासत संघ (IKSHA) की पहल पर , यूनाइटेड किंगडम स्थित प्रतिष्ठित प्रकाशन समूह ‘ब्रिल’ द्वारा प्रकाशित ‘जर्नल ऑफ इंडियन नॉलेज सिस्टम’ (JIKS) का औपचारिक रूप से 11 मई, 2025 को महर्षि कणाद भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जगदीश कुमार द्वारा लोकार्पण किया गया।
लोकार्पण समारोह में कई प्रतिष्ठित विद्वद्जन ने भाग लिया, जिनमें राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष प्रो. अनिल डी. सहस्रबुद्धे; आईसीएसएसआर के सदस्य सचिव प्रो. धनंजय सिंह; शिक्षा मंत्रालय के आईकेएस प्रभाग के राष्ट्रीय समन्वयक प्रो. गंटी एस. मूर्ति; आईसीएचआर के सदस्य सचिव प्रो. ओम जी उपाध्याय; आईसीपीआर के सदस्य सचिव प्रो. सच्चिदानंद मिश्रा; और दिल्ली विश्वविद्यालय, दक्षिण परिसर के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश सिंह प्रमुख थे। इस कार्यक्रम में देश भर के बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और विद्वानों की उपस्थिति रही।
अपने संबोधन में प्रो. जगदीश कुमार ने भारतीय ज्ञान प्रणालियों के क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाली अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं/जर्नल की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने मानवीय स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए भारतीय बौद्धिक परंपराओं और उनके वैचारिक ढांचे को मुख्यधारा में लाने के महत्व को रेखांकित किया।
प्रो सहस्रबुद्धे ने अपने उद्बोधन में कहा कि जर्नल ऑफ इंडियन नॉलेज सिस्टम (JIKS) भारत और उसके सभ्यतागत विकास के अध्ययन के लिए समर्पित है। यह ज्ञान उत्पादन के स्रोतों के रूप में भारतीय ग्रंथों, संदर्भ-शास्त्र और लोक परंपरा- से प्रतिपादित है। यह शोध पत्रिका भारतीय ज्ञान प्रणालियों को पोषित करने और बढ़ावा देने के लिए भारतीय ज्ञानमीमांसा के ढांचे और दृष्टि का उपयोग करती है।
IKSHA टीम में IIT (रुड़की, कानपुर, गुवाहाटी, मद्रास, हैदराबाद और दिल्ली) के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी और डोमेन विशेषज्ञ शामिल हैं, साथ ही केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय स्तर के अन्य संस्थानों के शिक्षाविद् भी शामिल हैं।
प्रो गंटी एस मूर्ति ने कहा कि यह पत्रिका भारतीय ज्ञान परंपराओं की समकालीन प्रासंगिकता पर प्रकाश डालती है। इसमें सौंदर्यशास्त्र, कला, वास्तुकला, संज्ञानात्मक और मनोवैज्ञानिक विज्ञान, आर्थिक और राजनीतिक विज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहित बौद्धिक क्षेत्रों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। इस पत्रिका में विघटनकारी चिह्न (पश्चिमी सार्वभौमिकता की जांच) और रचनात्मक मार्ग दोनों शामिल हैं जो वैकल्पिक सैद्धांतिक रूपरेखा विकसित करने पर केंद्रित है।