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Delhi High Court on One Stop Centres: दिल्ली हाई कोर्ट का फटकार भरा आदेश! सखी केंद्रों की बदहाली पर सरकार-पुलिस को दिए कड़े निर्देश

News Desk by News Desk
July 24, 2025
in देश
Delhi High Court on One Stop Centres: दिल्ली हाई कोर्ट का फटकार भरा आदेश! सखी केंद्रों की बदहाली पर सरकार-पुलिस को दिए कड़े निर्देश
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Delhi High Court on One Stop Centres: हाई कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा, वन स्टॉप सेंटरों को कारगर बनाने की दिशा में दिल्ली सरकार व दिल्ली पुलिस के कदम नाकाफी जन जागरूकता के प्रसार, अखबारों में इश्तिहार, खाली पदों को भरने व बाल विवाह व किशोर गर्भावस्था के मामलों को देखने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया तय करने के निर्देश ये वन स्टॉप सेंटर या सखी केंद्र हिंसा की शिकार महिलाओं व बच्चों को कानूनी व चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए बनाए गए थे सखी केंद्रों की बदहाली के खिलाफ बचपन बचाओ आंदोलन जिसे एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन के नाम से जानते हैं, ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी

राजधानी में वन स्टॉप सेंटरों (सखी केंद्रों) की बदहाल स्थिति को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने राज्य सरकार और दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि वे यौन शोषण और गर्भवती किशोरियों की सहासता के लिए बने इन सेंटरों को प्रभावी, उपयोगी, सबकी जानकारी में लाने और सबको सुलभ बनाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करें। इस मामले में बचपन बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने इन केंद्रों को लेकर जन जागरूकता के प्रसार, सभी बड़े अखबारों में हिंदी और अंग्रेजी में विज्ञापन देने और सभी रिक्त पदों को शीघ्र भरने जैसे कई निर्देश दिए। बचपन बचाओ आंदोलन जिसे एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन के नाम से भी जाना जाता है, देश के 418 जिलों में बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम कर रहे 250 से भी ज्यादा नागरिक संगठनों के सबसे बड़े नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन का सहयोगी संगठन है।

इन सखी केंद्रों की स्थापना हिंसा के शिकार बच्चों व महिलाओं की सहायता के लिए की गई थी। इसका उद्देश्य था कि पीड़ितों को एक ही जगह शिकायत दर्ज करने, कानूनी और चिकित्सकीय सहायता प्रदान की जा सके।

हाई कोर्ट ने कहा कि इन सखी केंद्रों के बारे में सभी हितधारकों जैसे पुलिस, पीड़ित, उनके माता-पिता, गैरसरकारी संगठनों और आम जनता के बीच जागरूकता के प्रसार के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। साथ ही, यह भी आदेश दिया कि स्कूलों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों, बाजारों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे साइनबोर्ड लगाए जाएं, जिनमें इन केंद्रों में उपलब्ध सुविधाओं और हेल्पलाइन नंबर की जानकारी स्पष्ट रूप से दी गई हो।

खंडपीठ ने इस बात को रेखांकित किया कि किस तरह बाल विवाह और नाबालिग गर्भावस्था जैसे मामलों के निपटारे की मौजूदा प्रणाली, पीड़ितों को और मानसिक चोट पहुंचाती है। उन्होंने कहा, “हम निर्देश देते हैं कि बाल विवाह और नाबालिग गर्भावस्था से जुड़े मामलों के निपटारे के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) सभी को भेजी जाए, जो पुलिसकर्मियों, इन केंद्रों के चलाने वाले कर्मचारियों पर लागू हो। इस संदर्भ में एक उपयुक्त परिपत्र भी जारी किया जाए ताकि इन प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित हो सके।”

इसके साथ ही, हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि एक वरिष्ठ स्तर का नोडल अफसर नियुक्त किया जाए जो सभी संबंधित पक्षों के साथ समन्वय और इस मामले में पारित सभी निर्देशों व भविष्य में दिए जाने वाले निर्देशों पर अमल के लिए जिम्मेदार हो। यह नोडल अफसर सभी सुनवाइयों के दौरान अदालत में मौजूद रहेगा। साथ ही, उसने निर्देश दिया कि जीएनसीटीडी इन केंद्रों के कर्मचारियों को समय पर वेतन सुनिश्चित करे और बुनियादी ढांचे में कमियों को दूर किया जाए।

वन स्टॉप सेंटरों के बाबत हाई कोर्ट के दिशानिर्देशों का स्वागत करते हुए हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन की विधिक सलाहकार रचना त्यागी ने कहा, “वन स्टॉप सेंटरों पर हाई कोर्ट का निर्णय इस बात की सशक्त पुष्टि है कि न्याय न केवल सुलभ होना चाहिए, बल्कि वह सम्मानजनक और पूर्ण भी होना चाहिए। यह फैसला पीड़ित-केंद्रित सहायता तंत्र की अहमियत को रेखांकित करने के अलावा एक बार फिर पुष्टि करता है कि यौन शोषण और बाल विवाह की शिकार बच्चियों को केवल न्यायिक राहत नहीं, बल्कि समय पर समन्वित सहायता की आवश्यकता होती है। उन्हें दो बार पीड़ित नहीं बनाया जाना चाहिए- पहले अपराधियों द्वारा और फिर एक टूटी हुई व्यवस्था द्वारा। न्याय की तलाश में किसी भी हालत में पीड़ितों को दोबारा उसी पीड़ा से नहीं गुजरना चाहिए।”

हाई कोर्ट ने इन सखी केंद्रों में परामर्शकों की गैरमौजूदगी पर भी गहरी नाराजगी जताते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग को निर्देश दिया कि सभी रिक्त पदों को तत्काल भरा जाए, सभी कर्मचारियों को समय पर वेतन मिले और इन केंद्रों में बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जाए। कोर्ट ने मई में दायर दिल्ली सरकार के हलफनामे का संज्ञान लेते हुए कहा कि वह इन उपायों से संतुष्ट नहीं है और दिल्ली पुलिस व सरकार को जो जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए थे, वे नहीं उठाए गए।

हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह हलफनामा दायर कर इस फैसले पर अमल सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2015 से सितंबर 2023 के बीच दिल्ली में कुल 11 केंद्रों सहित पूरे देश में 802 वन स्टॉप सेंटर चल रहे थे।

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