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टैरिफ केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक संकेत है

News Desk by News Desk
August 7, 2025
in संपादकीय
टैरिफ केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक संकेत है
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लेखक: अमित पांडे

भारत पर अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त 25% टैरिफ की घोषणा न केवल आर्थिक दबाव का संकेत है, बल्कि यह वैश्विक भू-राजनीतिक संतुलन को पुनः परिभाषित करने की कोशिश भी है। ट्रंप द्वारा यह कार्यकारी आदेश भारत के रूस से तेल खरीदने के जवाब में लिया गया है, जिससे कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया है। यह कदम स्पष्ट रूप से अमेरिका की उस नीति का हिस्सा है जिसमें वह अपने रणनीतिक हितों को आर्थिक हथियारों के माध्यम से साधने की कोशिश करता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह के दबाव से कोई देश अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को बदलने पर मजबूर हो सकता है?

भारत जैसे देश, जो ऊर्जा सुरक्षा के लिए विविध स्रोतों पर निर्भर हैं, रूस से तेल खरीद को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से देखते हैं। भारत को सस्ता तेल मिल रहा है, जिससे घरेलू बाजार में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिल रही है। अमेरिका का यह तर्क कि रूस से तेल खरीदना यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष समर्थन देना है, भारत की तटस्थ नीति और रणनीतिक स्वायत्तता को नजरअंदाज करता है। भारत ने बार-बार कहा है कि वह शांति और संवाद का पक्षधर है, और उसकी नीति किसी एक ध्रुव की तरफ झुकाव नहीं रखती।

अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाना एकतरफा आर्थिक दंड की तरह है, जो विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सिद्धांतों के खिलाफ है। WTO के अनुसार, टैरिफ का उपयोग केवल व्यापार असंतुलन या घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए किया जाना चाहिए, न कि किसी देश की विदेश नीति को प्रभावित करने के लिए। यह कदम अमेरिका की उस प्रवृत्ति को दर्शाता है जिसमें वह अपने भू-राजनीतिक विरोधियों को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश करता है, जैसा कि उसने चीन के साथ भी किया है। लेकिन भारत कोई छोटा देश नहीं है जिसे इस तरह के दबाव में लाया जा सके।

इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी देश ने अपनी संप्रभुता और नीति पर अडिग रहने का साहस दिखाया है, वह दबावों के बावजूद आगे बढ़ा है। भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लंबा संघर्ष किया और आज़ादी हासिल की। अगर केवल आर्थिक ताकत से देश झुकाए जा सकते, तो आज एशिया पर पश्चिम का ही कब्जा होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एशियाई देशों ने अपनी नीतियों, संस्कृति और आर्थिक विकास के बल पर वैश्विक मंच पर अपनी जगह बनाई है।

भारत की विदेश नीति बहुध्रुवीय दुनिया की ओर संकेत करती है, जहां कोई एक देश वैश्विक दिशा तय नहीं करता। भारत अमेरिका, रूस, यूरोप, और एशिया के अन्य देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की कोशिश करता है। यह नीति न केवल भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि आधुनिक विश्व में कोई भी देश केवल दबाव के आधार पर अपनी नीति नहीं बदलता।

अमेरिका का यह कदम भारत-अमेरिका संबंधों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह स्थायी नहीं होगा। दोनों देशों के बीच व्यापार, रक्षा, तकनीक और शिक्षा के क्षेत्र में गहरे संबंध हैं। टैरिफ जैसे कदम इन संबंधों को अस्थायी रूप से झटका दे सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक हितों के चलते दोनों देशों को संवाद और सहयोग की राह पर लौटना ही होगा।

इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि आधुनिक युग में जहां दुनिया एक वैश्विक गांव बन चुकी है, वहां दबाव की राजनीति सीमित प्रभाव रखती है। आर्थिक ताकत, सैन्य शक्ति या कूटनीतिक दबाव से किसी देश की नीति को बदलना अब उतना आसान नहीं जितना पहले था। भारत जैसे देश, जो लोकतांत्रिक मूल्यों, रणनीतिक सोच और वैश्विक जिम्मेदारियों को समझते हैं, ऐसे दबावों का सामना करने में सक्षम हैं। यह घटना केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए एक सबक है जो अपनी नीति को स्वतंत्र रखना चाहते हैं।

अंततः, यह टैरिफ केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक संकेत है। लेकिन भारत की प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर करेगी कि वह अपने दीर्घकालिक हितों को कैसे परिभाषित करता है। और अब समय आ गया है कि वैश्विक शक्तियां यह समझें कि सहयोग और संवाद ही स्थायी समाधान हैं, न कि दबाव और दंड।

Tags: economic impact of tariffsGlobal Trade Newsgovernment tariffsinternational trade newstariff effects on economytariff warstariffs explainedtrump tarifftrump trade policiesus trade negotiationsus trade policyus trade tensionsus-china trade war
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