नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 12 साल की बच्ची से रेप के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने भारतीय दंड संहिता (IPC) और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत दोषी ठहराए गए दो आरोपियों की उम्रकैद की सजा बहाल कर दी। यह मामला बिहार से जुड़ा है, जहां पटना हाई कोर्ट ने सितंबर 2024 में दोनों को प्रक्रियागत खामियों के आधार पर बरी कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की बेंच—न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि मामूली विसंगतियों और प्रक्रियागत कमियों के कारण पीड़िता की गवाही और मेडिकल साक्ष्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अदालत ने साफ कहा कि “किसी भी अपराधी को सिर्फ तकनीकी खामियों का फायदा देकर छोड़ देना आपराधिक न्याय व्यवस्था पर धब्बा है।”
पीड़िता के पिता की याचिका पर आया फैसला
यह मामला तब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जब पीड़िता के पिता ने पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। हाई कोर्ट ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा था कि अभियोजन पक्ष की गवाही में कुछ विरोधाभास और प्रक्रियागत खामियां हैं।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि “अक्सर देखा गया है कि ‘संदेह से परे प्रमाण’ के सिद्धांत का गलत इस्तेमाल होता है। अभियोजन पक्ष की मामूली चूक या विरोधाभास को बढ़ाकर असली अपराधियों को छोड़ दिया जाता है। यह न केवल पीड़ित के साथ अन्याय है, बल्कि पूरे समाज के लिए खतरनाक है।”
क्या कहा कोर्ट ने?
फैसले के दौरान बेंच ने बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। कोर्ट ने कहा “जब कोई असली अपराधी प्रक्रियागत खामियों का फायदा उठाकर छूट जाता है, तो यह पूरी व्यवस्था की विफलता होती है।” “संदेह से परे सिद्धांत का मतलब यह नहीं है कि हर छोटी-सी विसंगति को आरोपी के पक्ष में कर दिया जाए।” “अगर निर्दोष को सजा देना अन्याय है, तो असली अपराधी को बरी करना भी उतना ही बड़ा अन्याय है।”
अपराधियों की सजा फिर से बहाल
निचली अदालत ने दोनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन हाई कोर्ट ने सितंबर 2024 में उन्हें बरी कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर निचली अदालत का निर्णय कायम रखा। इसका मतलब है कि दोनों दोषियों को उम्रकैद की सजा भुगतनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर भी जोर दिया कि यौन अपराधों, खासकर नाबालिगों से जुड़े मामलों में अदालतों को बेहद संवेदनशील होना चाहिए। कोर्ट ने कहा— “ऐसे अपराध न केवल पीड़िता के जीवन को प्रभावित करते हैं, बल्कि पूरे समाज में असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं। न्यायालयों की जिम्मेदारी है कि वे पीड़ितों को न्याय दें और यह संदेश दें कि अपराधी चाहे कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के शिकंजे से बच नहीं सकता।”
भारत में अक्सर देखा गया है कि रेप जैसे गंभीर मामलों में भी आरोपी तकनीकी खामियों का फायदा उठाकर छूट जाते हैं। कई बार गवाहों के बयानों में मामूली अंतर या पुलिस की प्रक्रियागत लापरवाही के कारण अदालतें कठोर फैसला देने से हिचकिचाती हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश साफ संकेत देता है कि तकनीकी खामियों के आधार पर जघन्य अपराधों के दोषियों को बचाया नहीं जा सकता। यह फैसला उन हजारों पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण है, जो सालों से न्याय का इंतजार कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ 12 साल की बच्ची और उसके परिवार के लिए न्याय की जीत है, बल्कि यह पूरे देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था के लिए एक अहम संदेश भी है। अदालत ने साफ किया है कि न्याय केवल तकनीकी खामियों पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज की वास्तविकता और पीड़ितों की पीड़ा को ध्यान में रखकर होना चाहिए।