अमित पांडे
जब स्वामी रामदेव ने उत्तराखंड की भूमि पर अपने साम्राज्य की नींव रखी, तब पहाड़ी जनता ने इसे एक अवसर माना—एक उम्मीद कि शायद अब उनके जीवन की कठिनाइयाँ, आर्थिक संकट और स्वास्थ्य की समस्याएँ दूर होंगी। “पतंजलि” के उदय को उन्होंने अपनी आँखों से देखा, अपने विश्वास से सींचा। कांग्रेस शासन में यह सपना कठिन था, लेकिन रामदेव ने राष्ट्रवाद की चादर ओढ़ी और दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया। उसके बाद क्या हुआ, यह देश जानता है।
बीजेपी के सत्ता में आने के बाद रामदेव को विशेषाधिकार मिले। योग से व्यापार, व्यापार से शिक्षा, और शिक्षा से विश्वविद्यालय तक उनका विस्तार हुआ। लेकिन शैक्षणिक प्रस्तावों को जनता ने नकार दिया। फिर भी, राष्ट्रवाद के नाम पर हर गतिविधि को वैधता मिलती रही। यही शब्द—राष्ट्रवाद—भारतीय जनमानस की सबसे बड़ी कमजोरी बन गया।
रामदेव ने अपने ब्रांड को कॉर्पोरेट शैली में ढाल दिया—लेकिन यह केवल कॉर्पोरेट नहीं था, यह “राष्ट्रवादी कॉर्पोरेट” था। पतंजलि सिम, ऑर्गेनिक कपड़े, आयुर्वेदिक दवाएँ—हर क्षेत्र में उन्होंने प्रवेश किया। लेकिन कई बार उनकी दवाओं पर सवाल उठे। कोर्ट ने समन भेजा, इंडियन मेडिकल काउंसिल ने आपत्ति जताई। फिर भी बाबा रुके नहीं। उन्होंने पर्यटन को भी राष्ट्रवाद से जोड़ दिया—“राष्ट्रवादी पर्यटन” के नाम पर।
मसूरी की पहाड़ियों पर सौदेबाज़ी: जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट का मामला
सितंबर 2025 में उत्तराखंड कांग्रेस ने एक बड़ा आरोप लगाया—142 एकड़ की विरासत भूमि, जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट, जिसकी कीमत ₹30,000 करोड़ से अधिक आंकी गई, उसे रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण से जुड़ी कंपनी को मात्र ₹1 करोड़ वार्षिक किराए पर 15 वर्षों के लिए दे दिया गया। यह वही भूमि थी जिसे सरकार ने एशियन डेवलपमेंट बैंक से ₹23.5 करोड़ का ऋण लेकर पर्यटन के लिए विकसित किया था।
कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने इसे “राज्य का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला” बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि दिसंबर 2022 में उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड द्वारा जारी निविदा में तीनों बोलीदाता कंपनियाँ—राजस एयरोस्पोर्ट्स, भरुवा एग्री साइंस, और प्रकृति ऑर्गेनिक्स—आचार्य बालकृष्ण के नियंत्रण में थीं। यह कंपनी कानून की धारा 122 और एंटी-कोल्यूजन नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने भी सीबीआई जांच की माँग की। उन्होंने कहा, “सरकार ने जनता के पैसे से भूमि को सजाया, फिर उसे निजी कंपनी को सौंप दिया। यह किस प्रकार का विकास मॉडल है?”
बीजेपी सरकार ने इस प्रक्रिया को “कानूनी और पारदर्शी” बताया। उनका दावा है कि जनता की आवाजाही बाधित नहीं हुई। लेकिन सवाल यह है कि क्या जनता को इस भूमि पर अधिकार है, या यह अब कॉर्पोरेट की संपत्ति बन चुकी है?
सेवा पखवाड़ा और आपदा में अवसर: सरकार की विफलता पर पर्दा
जब उत्तराखंड के पहाड़—गढ़वाल और कुमाऊँ—बाढ़, भूस्खलन और हिमस्खलन से जूझ रहे हैं, तब सरकार “सेवा पखवाड़ा” और “तीन साल की सफलता” का विज्ञापन कर रही है। करोड़ों रुपये खर्च कर यह दिखाया जा रहा है कि “डबल इंजन सरकार” ने आपदा को कैसे संभाला। लेकिन सच्चाई यह है कि नदियाँ उफान पर हैं, पुल बह चुके हैं, और लोग विस्थापित हो रहे हैं।
इस लोकतंत्र में जहाँ नेता “राजनीतिक संन्यासी” कहलाते हैं, वहीं वे जनता के टैक्स के पैसे से सुविधाएँ भोग रहे हैं। पर्यटन विकास के नाम पर स्थानीय जैव विविधता और जलवायु को कुचला जा रहा है। निर्माण कार्यों से पहाड़ों की आंतरिक संरचना प्रभावित हो रही है—जो केवल वैज्ञानिक उपकरणों से ही देखी जा सकती है। NGT ने स्थायी निर्माण पर रोक लगाई थी, लेकिन वह केवल आम जनता पर लागू हुई। सरकार ने अपने करीबी लोगों को निर्माण की अनुमति दी।
रामदेव ने एक बार कहा था, “हम भारत को आत्मनिर्भर बनाएँगे।” लेकिन आत्मनिर्भरता की परिभाषा क्या है? क्या यह कॉर्पोरेट साम्राज्य खड़ा करना है, जहाँ जनता केवल उपभोक्ता बन जाए?
उत्तराखंड की सुंदरता, शुद्ध जल और वायु अब एक दुःस्वप्न बन चुकी है। दुर्घटनाएँ हो रही हैं, जानें जा रही हैं, लेकिन नियंत्रण का कोई तंत्र नहीं है। पर्यटन विकास अब केवल एक बहाना है—वास्तविक उद्देश्य है भूमि का हस्तांतरण, कॉर्पोरेट लाभ और राजनीतिक प्रचार।
आचार्य बालकृष्ण की तीन कंपनियाँ—जिनमें अधिकांश शेयर उन्हीं के पास हैं—निविदा में शामिल थीं। एक को चुना गया, बाकी को खारिज किया गया। यह स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है। लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह लूट है, और यह लूट राष्ट्रवाद के नाम पर वैध बना दी गई है।
उत्तराखंड अब एक प्रयोगशाला नहीं, एक शिकारगाह बन चुका है। जहाँ सरकारें अपने विफलताओं को छिपाने के लिए करोड़ों खर्च करती हैं, वहीं जनता आपदा में जीती है। रामदेव और उनके सहयोगियों ने राष्ट्रवाद को एक ब्रांड बना दिया है—जिसके नीचे पहाड़ों की आत्मा दब रही है।
यदि यही विकास है, तो यह विनाश है। और यदि यही राष्ट्रवाद है, तो यह जनता के साथ धोखा है।