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क्या पर्यावरण की आवाज़ देशद्रोह है? सोनम वांगचुक पर लगे आरोपों की सियासी परछाई

News Desk by News Desk
September 28, 2025
in संपादकीय
क्या पर्यावरण की आवाज़ देशद्रोह है? सोनम वांगचुक पर लगे आरोपों की सियासी परछाई
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अमित पांडे: संपादक

लद्दाख की शांत वादियों में जब जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज़ उठी, तो वह केवल हिमालय की रक्षा नहीं थी—वह एक सांस्कृतिक चेतना थी, एक नागरिक आग्रह था कि विकास की दौड़ में प्रकृति को कुचलना बंद किया जाए। इसी चेतना के सबसे मुखर और प्रतिष्ठित स्वर सोनम वांगचुक हैं, जिन्होंने वर्षों से लद्दाख की पारिस्थितिकी, शिक्षा और स्वायत्तता के लिए संघर्ष किया है। लेकिन अब, जब उन्होंने राज्य की पहचान और संविधान के छठे अनुसूची की मांग को लेकर जन आंदोलन का नेतृत्व किया, तो उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। और अब लद्दाख के पुलिस महानिदेशक एस.डी. सिंह जमवाल का दावा है कि वांगचुक एक पाकिस्तानी PIO के संपर्क में थे, जो उनकी बातचीत की जानकारी इस्लामाबाद भेज रहा था।


यह आरोप जितना गंभीर है, उतना ही सवालों से घिरा हुआ भी है। क्या एक पर्यावरण कार्यकर्ता, जिसने शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार किया, जिसने जल संरक्षण के लिए ‘आइस स्तूप’ जैसी तकनीक विकसित की, वह अचानक देशद्रोही हो गया? क्या यह संभव है कि एक व्यक्ति जो वर्षों से भारत की सीमाओं पर काम कर रहा है, वह विदेशी साजिश का हिस्सा हो? या यह एक राजनीतिक रणनीति है, जो हर जन आंदोलन को विदेशी षड्यंत्र से जोड़कर उसकी वैधता को खत्म करना चाहती है?


पुलिस का दावा है कि वांगचुक ने पाकिस्तान के एक कार्यक्रम में भाग लिया, बांग्लादेश की यात्रा की, और एक PIO से संपर्क में थे। लेकिन क्या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भाग लेना, या पड़ोसी देशों में जाना, किसी को देशद्रोही बना देता है? क्या यह वही पैटर्न नहीं है जो हमने किसान आंदोलन, JNU छात्र आंदोलन, दिल्ली दंगों और मणिपुर की हिंसा में देखा—जहाँ विरोध के नेताओं को खालिस्तानी, विदेशी एजेंट या राष्ट्रविरोधी करार दिया गया?
वांगचुक पर हिंसा भड़काने का भी आरोप है। पुलिस का कहना है कि उन्होंने लोगों को उकसाया, जिससे 24 सितंबर को लद्दाख में हिंसा हुई, जिसमें चार लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। कुछ नेपाली नागरिकों के घायल होने की बात भी सामने आई है, लेकिन पुलिस ने यह स्पष्ट किया है कि यदि वे निर्दोष हैं तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। यह बयान अपने आप में दर्शाता है कि जांच अभी प्रारंभिक अवस्था में है, और निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी होगी।


इस पूरे घटनाक्रम में एक और चिंताजनक पहलू है—विरोध को नियंत्रित करने के लिए CRPF की तैनाती और कर्फ्यू लगाना। पुलिस का कहना है कि यदि CRPF नहीं होती तो पूरा शहर आग की चपेट में आ जाता। लेकिन सवाल यह है कि क्या विरोध प्रदर्शन को केवल कानून-व्यवस्था की समस्या मानना सही है? क्या यह आंदोलन केवल हिंसा था, या यह एक गहरी असंतोष की अभिव्यक्ति थी, जो लद्दाख की राजनीतिक पहचान, संसाधनों की रक्षा और सांस्कृतिक स्वायत्तता से जुड़ी थी?
वांगचुक की गिरफ्तारी और उन पर लगे आरोप केवल एक व्यक्ति पर नहीं हैं—वे उस पूरे जन आंदोलन पर हैं जो लद्दाख की जनता ने अपने भविष्य के लिए शुरू किया है। यह वही जनता है जिसने अनुच्छेद 370 के हटने के बाद राज्य का दर्जा खो दिया, और अब छठे अनुसूची की मांग कर रही है ताकि उनकी संस्कृति, भूमि और संसाधनों की रक्षा हो सके। इस मांग को विदेशी साजिश से जोड़ना न केवल आंदोलन की गरिमा को ठेस पहुँचाता है, बल्कि लोकतांत्रिक विरोध की आत्मा को भी कमजोर करता है।


आज जब सरकारें जन आंदोलनों को विदेशी षड्यंत्र बताकर दबाने की कोशिश करती हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। विरोध करना, सवाल पूछना, और अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना किसी भी नागरिक का संवैधानिक अधिकार है। सोनम वांगचुक की आवाज़ उस हिमालय की गूंज है, जो जलवायु संकट से जूझ रहा है, और वह गूंज किसी देश की सीमाओं से नहीं बंधी होती। उसे देशद्रोह कहना, उस चेतना को अपराध कहना है जो भारत को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है।
अब यह समय है कि जांच निष्पक्ष हो, आरोपों का सत्यापन हो, और यदि कोई दोष सिद्ध होता है तो कानून अपना काम करे। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक एक पर्यावरण कार्यकर्ता को राष्ट्रविरोधी बताना, न केवल न्याय का अपमान है, बल्कि उस लोकतंत्र का भी, जिसकी नींव सवाल पूछने की आज़ादी पर टिकी है। लद्दाख की मिट्टी में जो आवाज़ उठी है, वह केवल विरोध नहीं है—वह एक भविष्य की माँग है, जिसे सुनना और समझना सत्ता की ज़िम्मेदारी है, न कि उसे कुचलना।

Tags: Climate Change LadakhDemocracy and DissentEnvironmental Activist IndiaLadakh AutonomyLadakh ProtestNSA ArrestSixth Schedule DemandSonam Wangchuk
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