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Home संपादकीय

लेह गोलीकांड, वांगचुक पर आरोप और लोकतंत्र का सवाल

News Desk by News Desk
September 30, 2025
in संपादकीय
लेह गोलीकांड, वांगचुक पर आरोप और लोकतंत्र का सवाल
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अमित पांडे: संपादक

लेह में 24 सितंबर को हुई हिंसा और चार निर्दोष नागरिकों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह केवल एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि लोकतंत्र के उस चरित्र पर गहरी चोट है जो असहमति और अधिकारों के सम्मान पर टिका है। जलवायु कार्यकर्ता और शिक्षाविद सोनम वांगचुक, जिन्होंने अपना जीवन शिक्षा सुधार और पर्यावरण संरक्षण को समर्पित किया है, उन पर ‘राष्ट्रविरोधी’ होने का ठप्पा लगाना न केवल विचित्र है, बल्कि एक बड़े राजनीतिक संकट का संकेत है।


वांगचुक की पत्नी गितांजलि ज अंग्मो का तर्क बिल्कुल स्पष्ट है कि जो व्यक्ति भारतीय सेना के लिए थर्मल शेल्टर बनाता है, जो सौर ऊर्जा से जवानों को कठिन परिस्थितियों में राहत पहुँचाता है, उसे ‘राष्ट्रविरोधी’ कहना तथ्य और तर्क दोनों के खिलाफ है। उन्होंने सही सवाल उठाया कि जिस व्यक्ति को सेना के शीर्ष अधिकारियों का सम्मान प्राप्त है, वह कैसे देश विरोधी हो सकता है। यह आरोप न केवल उनकी छवि को धूमिल करने की कोशिश है बल्कि लद्दाख की जनता के आंदोलन को कमजोर करने की रणनीति भी लगती है।


विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस पूरे प्रकरण को लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया। उन्होंने पीड़ित परिवारों की पीड़ा को साझा करते हुए कहा कि यह वही परिवार हैं जिनकी देशभक्ति पीढ़ियों से जानी जाती है। एक पूर्व सैनिक का बेटा यदि गोली से मार दिया जाए तो यह केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि उन मूल्यों का अपमान है जिनके लिए भारत खड़ा है। राहुल गांधी की यह मांग कि इस घटना की न्यायिक जांच हो और दोषियों को कठोर सजा मिले, लोकतांत्रिक नैतिकता की कसौटी है।


महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आखिर शांतिपूर्ण आंदोलन अचानक हिंसक कैसे हो गया? अंग्मो का आरोप है कि यदि सुरक्षा बलों ने आंसू गैस का प्रयोग न किया होता, तो स्थिति इतनी न बिगड़ती। पिछले वर्षों के वांगचुक के आंदोलनों पर नजर डालें तो वे पूरी तरह गांधीवादी अहिंसा की परंपरा में हुए हैं। उपवास और मार्च उनकी पहचान रहे हैं, हिंसा कभी नहीं। ऐसे में यह दावा कि उन्होंने हिंसा भड़काई, गंभीर संदेह उत्पन्न करता है। यह कहीं न कहीं सरकार की उस प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है जिसमें आंदोलनों को कुचलने के लिए उन्हें “राष्ट्रविरोध” से जोड़ दिया जाता है।


वांगचुक पर लगाए गए आरोपों में उनकी पाकिस्तान में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भागीदारी को भी संदिग्ध बताया गया। परंतु यह तर्क बेहद सतही है। भारत और पाकिस्तान क्रिकेट और व्यापारिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, लेकिन यदि कोई भारतीय कार्यकर्ता जलवायु सम्मेलन में भाग ले तो उसे संदेह की नजर से देखना, राष्ट्रवाद को राजनीतिक हथियार बनाने की कोशिश है। यही वजह है कि अंग्मो ने इसे “चयनात्मक राष्ट्रवाद” कहा।


लद्दाख की जनता लंबे समय से छठी अनुसूची की मांग कर रही है। यह मांग पूरी तरह संविधान सम्मत है, जिसका उद्देश्य उनकी संस्कृति, भूमि और संसाधनों की रक्षा करना है। इसे “राष्ट्रविरोध” कहना लद्दाख की जनता की आवाज को दबाने का प्रयास है। यदि लोकतंत्र में वैध मांगों को हिंसा और आरोपों से कुचलने की प्रवृत्ति बढ़ेगी तो यह नागरिकों में असुरक्षा और अविश्वास पैदा करेगा।
गोलीकांड में मारे गए चारों युवकों की पहचान भी इस घटना की गंभीरता को रेखांकित करती है। एक पूर्व सैनिक का बेटा, अन्य तीन युवा—यह सब उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से आवाज उठा रही थी। पुलिस का दावा कि भीड़ हिंसक थी और आत्मरक्षा में गोली चलाई गई, केवल एकतरफा तर्क है। जब तक स्वतंत्र न्यायिक जांच नहीं होगी, सच्चाई सामने आना असंभव है।


यह घटना केवल लद्दाख का संकट नहीं, बल्कि पूरे भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रतिबिंब है। असहमति को ‘देशद्रोह’ से जोड़ने की प्रवृत्ति, और एनएसए जैसे कठोर कानूनों का इस्तेमाल, लोकतंत्र की आत्मा को कमजोर करता है। यदि प्रत्येक असहमत आवाज को ‘राष्ट्रविरोधी’ कहकर जेल में डाला जाएगा, तो यह संदेश जाएगा कि लोकतांत्रिक अधिकार केवल कागज पर हैं, व्यवहार में नहीं।


सोनम वांगचुक पर लगे आरोप और उनकी गिरफ्तारी से यही प्रतीत होता है कि सरकार लोकतांत्रिक आंदोलनों को दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। यही कारण है कि राहुल गांधी और विपक्ष की यह मांग कि न्यायिक जांच हो, न केवल उचित है बल्कि लोकतंत्र को बचाने की दिशा में अनिवार्य कदम भी है।


अंततः यह केवल लद्दाख की जनता का मामला नहीं है, यह पूरे भारत का सवाल है। लोकतंत्र तब तक मजबूत नहीं हो सकता जब तक सरकार जनता की आवाज सुनने के बजाय उसे कुचलने की कोशिश करेगी। संवाद ही समाधान का रास्ता है, हिंसा और आरोप नहीं। यदि सरकार वास्तव में राष्ट्रहित में काम करना चाहती है, तो उसे लद्दाख की जनता से संवाद करना होगा और उनकी मांगों पर संवेदनशीलता से विचार करना होगा। अन्यथा लोकतंत्र की नींव कमजोर होगी और यह डर बैठ जाएगा कि सरकार से सवाल पूछना ही “देशद्रोह” माना जाएगा।

Tags: Indian Democracy CrisisLadakh ProtestLeh ShootingLeh ViolenceNSA UseRahul Gandhi StatementSedition DebateSonam Wangchuk Arrest
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