हरेन्द्र प्रताप की खोजी रपट
नई दिल्ली, 2 नवंबर। केंद्र सरकार के अनेक मंत्रालयों में कुछ न कुछ अनोखा घट रहा होता है ! अनेक राज्यों से इस मामले में केंद्र आगे निकल रहा है ! ताज़ा मामला शिक्षा विभाग का है ! केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त शासी संगठन है – केंद्रीय हिंदी संस्थान। आगरा स्थित इसके मुख्यालय की वेबसाइट पर दिलचस्प सूचना अंकित है ! मंत्री जी के साथ – साथ निदेशक ने स्वयं को भी इसमें माननीय बताया है ! जाहिर है कि यदि इस पर तत्काल रोक नहीं लगाई गई तो हर सरकारी विभाग के निदेशक खुद को माननीय लिखने लगेंगे और असली माननीय की स्थिति निदेशक की हो जाएगी ! आगरा के इस बहुचर्चित निदेशक का नाम है सुनील बाबूराव कुलकर्णी !
सुनील बाबू केवल माननीय लिखने की वजह से चर्चा में नहीं हैं। वे सही मायने में केंद्रीय हिंदी संस्थान में अपनी नियुक्ति और योग्यता प्रमाण पत्रों को लेकर पिछले कुछ सालों से विशेष चर्चा में हैं !
प्रधानमंत्री को भेजी गई एक शिकायत का विषय रखा गया है,- ” शिक्षा मंत्रालय , भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के निदेशक पद पर की गयी नियुक्ति के संबंध में खोजबीन-सह-चयन समिति द्वारा की गयी अनियमितताओं व कूटरचित तारीखों से की गयी नियुक्ति की उच्च स्तरीय जांच कराये जाने के विषय में ! जाहिर है कि यह विषय ही इस बारे में बहुत कुछ बयां कर दे रहा है !

बाकी बातें जो इस छोटी सी शिकायत में की गई है उसमें अंतर्निहित भ्रष्टाचार का फलक बहुत बड़ा है जो सम्पूर्ण वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है !
शिकायत में प्रधानमंत्री को लिखा गया है, – “महोदय,निवेदन है कि केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में डायरेक्टर के पद पर की गयी नियुक्ति में शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा अव्वल दर्जे की धांधली व भ्रष्टाचार की शिकायत अधोहस्ताक्षरी द्वारा पीएम पोर्टल पर दिनांक 14.12.2023 को शिकायत सं.-PMOPG/E/2023/0262757 द्वारा दर्ज कराई गयी थी। पोर्टल पर जांच अधिकारी श्री बी. के.सिंह को नियुक्त किया गया था। श्री बी. के. सिंह ने, जिस व्यक्ति की अवैध नियुक्ति की शिकायत साक्ष्य सहित की गयी, बिना किसी जांच के उसी डॉ० सुनील बाबूराव कुलकर्णी से जवाब मांग कर इस गंभीर शिकायत का समाधान उसी सुनील बाबूराव कुलकर्णी के पत्र दिनांक 23.01.2024 द्वारा ही मुझे जबाव भेजकर कराया है। मैं जांच अधिकारी के इस कृत्य से पूर्णतया असंतुष्ट हूं। उन्होंने अपने दायित्व का निर्वाह न करते हुए मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की है। कृपया इसकी पुनः जांच कराने की कृपा करें जिससे भ्रष्टाचार का खुलासा हो सके”। यह शिकायत डॉ० अरुण कुमार दीक्षित ने की है।







