मंजरी का विशेष लेख
केंद्र में मोदी सरकार के आगमन के बाद से अनेक युगांतरकारी परिवर्तन हुए हैं। नौकरशाही भी इस परिवर्तन से अछूती नहीं है। संयोगवश इस बार भी वेतन आयोग का अस्तित्व सामने आ गया है। जी हां, आठवां पे कमिशन अब एक सच्चाई है। अन्यथा अनेक लोग इसे लेकर भी भ्रम फैला रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के ऐतिहासिक फैसले की फेहरिस्त लंबी है ! इसी में से एक है भारतीय नौकरशाही में आई ई डी एस यानि भारतीय उद्यम विकास सेवा का गठन। लेकिन इस सेवा के गठन के लगभग दस वर्ष बीत जाने के बावजूद इंडियन इंटरप्राइज डवलपमेंट सर्विस न सिर्फ अभी तक देश की बहुत बड़ी आबादी के लिए अज्ञात है बल्कि उस सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम यानि एम एस एम ई सेक्टर तक के लिए यह अभी भी नेपथ्य में है, जिसके तीव्र विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इसका गठन किया गया है !
फिलहाल भारत सरकार का एम एस एम ई मंत्रालय कैडर की वजह से कम, दो ऐतिहासिक घटनाओं की वजह से अधिक चर्चा में है। ये दो ऐतिहासिक घटनाएं हैं – आई ए एस अधिकारी डॉ. रजनीश के नेतृत्व में भारतीय आर्थिक सेवा के दो अधिकारियों अश्विनी लाल और गौरव कटियार के द्वारा एम एस एम ई पत्रिका में की गई अविस्मरणीय चूक जिसमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की छवि खराब की गई ! और, एम एस एम ई मंत्रालय के विकास आयुक्त कार्यालय से मान्यता प्राप्त ऑल इंडिया एम एस एम ई डी ओ टेक्निकल आफिसर्स एसोसिएशन के चार उपाध्यक्षों में से सबसे कनिष्ठ उपाध्यक्ष जी. वेलादुर्रई द्वारा खुद को कार्यवाहक अध्यक्ष घोषित कर देना। इससे न सिर्फ एसोसिएशन बल्कि पूरे आई ई डी एस कैडर की छवि खराब हो गई है !
ए आई एम एस एम ई डी ओ टेक्निकल आफिसर्स एसोसिएशन का संविधान आज की तारीख में अप्रभावी बन चुका है। इसका एक बड़ा कारण है कि बदलते समय के अनुरूप इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। ताज़ा विवाद उसी का परिणाम है। वर्तमान संविधान में वर्णित तथ्यों को यदि गौर से देखा जाए तो कोई भी आई ई डी एस अधिकारी इस संविधान के अनुसार उसके एसोसिएशन का सदस्य हो ही नहीं सकता है ! इसमें व्यापक तथ्यात्मक सुधार की आवश्यकता है। इस संविधान के वर्तमान स्वरूप के अनुसार सिर्फ इनवेस्टिगेटर से लेकर एडिशनल इंडस्ट्रियल एडवाइजर ही इसके सदस्य हो सकते हैं। तथ्य यह है कि आई ई डी एस कैडर में ये दोनों पद नहीं हैं। इसका मतलब है कि यह एसोसिएशन आई ई डी एस कैडर के लिए नहीं है और कैडर के सर्वोच्च पद ए डी सी यानि अपर विकास आयुक्त के लिए तो बिल्कुल नहीं है। दिलचस्प तथ्य यह है कि संविधान का उल्लंघन कर एसोसिएशन में चार उपाध्यक्ष बना लिये गये हैं और उसका अनुमोदन आज तक विकास आयुक्त से नहीं कराया गया है।
ऐसी स्थिति में भारत सरकार किसी भी पल इस एसोसिएशन की मान्यता खत्म कर सकती है ! एसोसिएशन की कोई भी बैठक संविधान के दायरे में रहकर संवैधानिक तरीके से नहीं की जाती है बल्कि मनमाने ढंग से इसे चलाया जा रहा है। सभी सदस्यों से न तो प्रवेश शुल्क और न ही सदस्यता शुल्क समान तरीके से लिया जा रहा है। अध्यक्ष और महासचिव बनने की होड़ लगी हुई है। एसोसिएशन विरोधी गतिविधियों पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
एम एस एम ई मंत्रालय में यह एसोसिएशन तो मटमैला हो ही चुका है, आई ए एस और आई ई एस कैडर की राह पर आई ई डी एस भी अलबेला कैडर बन चुका है। कोलकाता के एम एस एम ई डी एफ ओ में ईमानदार और कर्मठ अधिकारी को झूठे आरोपों से तंग किया जा रहा है और बेईमानी के आरोपों से घिरे ग़लत अधिकारी को बचाया जा रहा है ! दिल्ली में विकास आयुक्त कार्यालय में प्रमोशन की फाइल पर भी चर्चा महीनों में खत्म नहीं हो रही है और सहायक निदेशकों की पदोन्नति के मामले को जानबूझकर लटकाया जा रहा है ताकि बिना पदोन्नति के आई ई डी एस अधिकारी रिटायर हो जाएं। सीधी भर्ती भी अस्थाई भर्ती की तरह विवाद के दायरे में शामिल होने वाली है। लगभग हर महीने कोई न कोई अधिकारी इस कैडर में बिना प्रमोशन के रिटायर हो रहा है। नवंबर में भी यदि प्रमोशन नहीं मिला तो कुछ अधिकारी बिना प्रमोशन के रिटायर होने की लंबी सूची में शामिल हो कर उपेक्षा का नया इतिहास रचेंगे।







