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रायपुर की मशरूम यूनिट से 120 बाल मजदूर मुक्त, अमानवीय हालात का खुलासा

News Desk by News Desk
November 19, 2025
in देश
रायपुर की मशरूम यूनिट से 120 बाल मजदूर मुक्त, अमानवीय हालात का खुलासा
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रायपुर की मशरूम यूनिट से अमानवीय स्थितियों में काम कर रहे 120 बाल मजदूरों को मुक्त कराया

बाल मजदूरी व ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, महिला एवं बाल विकास विभाग, पुलिस व गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन (एवीए) ने संयुक्त रूप से रायपुर की एक मशरूम प्रसंस्करण यूनिट पर छापे में 120 बच्चे मुक्त कराए। चार घंटे तक चली इस कार्रवाई में 14 से 17 साल की उम्र की 80 लड़कियां और 40 लड़के बाल श्रम से मुक्त कराए गए जहां उन्हें बेहद अमानवीय हालात में रखा और काम कराया जाता था। ये बच्चे मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और असम के जनजातीय इलाकों के थे। स्थानीय एजेंट इन बच्चों को ट्रैफिकिंग के जरिए उनके गृह राज्यों से लाए और यहां काम पर लगा दिया। इनमें से कुछ बच्चे जो अब 17 साल के हैं, उन्हें 6 साल पहले यहां लाया गया था और तब से यहां कैद जैसी हालत में रखकर खटाया जा रहा था।

एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन (एवीए) ने इस मशरूम फैक्टरी में लगभग बंधुआ मजदूरी जैसी हालत में इन बच्चों से बेहद अमानवीय और शोषणकारी स्थिति में काम लेने के बाबत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की थी। एवीए ने कहा कि इन बच्चों का गंभीर रूप से शोषण हो रहा है, उनकी आवाजाही पर पाबंदी है और उन्हें इस तरह डरा-धमका कर रखा जाता है जो मानव दुर्व्यापार (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) और बंधुआ मजदूरी के समान है। मुक्त कराए गए बच्चों ने कहा कि उन्हें फैक्टरी में ही बने छोटे और अंधियारे कमरे में रखा जाता था, उनसे 12-15 घंटे काम कराया जाता था और रात को शायद ही कभी खाना दिया जाता था।

चिट्ठी पर तुरंत कार्रवाई करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने रायपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को सूचित किया जिन्होंने डीएसपी नंदिनी ठाकुर के नेतृत्व में एक टीम गठित कर तत्काल छापे की कार्रवाई की। बच्चों को तत्काल सुरक्षा में लेते हुए उनकी काउंसलिंग की गई और कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई। एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए 451 जिलों में काम कर रहे नागरिक समाज संगठनों के देश के सबसे बड़े नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) का सहयोगी संगठन है। देश भर में फैले 250 नागरिक समाज संगठनों के अपने इस मजबूत नेटवर्क के जरिए जेआरसी कानूनी हस्तक्षेपों और बच्चों को मुक्त कराने के अभियानों की अगुआई करता है।

विभिन्न एजेंसियों की इस त्वरित कार्रवाई की सराहना करते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, “कल्पना ही की जा सकती है कि हाड़ कंपा देने वाली ठंड में 12-15 घंटे काम करने वाले एक बच्चे की क्या हालत होगी? यह ट्रैफिकिंग जैसे संगठित अपराध का सबसे घिनौना चेहरा है और विकसित भारत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा। मैं रायपुर की इस मशरूम प्रसंस्करण यूनिट से ट्रैफिकिंग के शिकार इन बच्चों को मुक्त कराने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, स्थानीय पुलिस और एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन को बधाई देता हूं। सरकार को इस मामले के त्वरित निपटारे और और इन बच्चों का पुनर्वास सुनिश्चित करने की दिशा में तत्काल कदम उठाना चाहिए। साथ ही, वे अफसर जो इस यूनिट में इतने बड़े पैमाने पर बाल व बंधुआ मजदूरी का पता लगाने में विफल रहे, उनकी जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए।”

उन्होंने कहा, “हमारा काम अभी शुरू हुआ है। कानून और उसके पीछे जो मंशा है, उसे जमीनी वास्तविकता में बदलना चाहिए। निर्णायक तरीके से जांच, अभियोजन और जवाबदेही हमारी साझा जिम्मेदारी है।”
मोजो मशरूम प्रसंस्करण इकाई न्यूनतम तापमान में मशरूम उत्पादन के लिए जानी जाती है, जहां बड़े मशीनरी उपकरण और पतले रॉड वाली तीन- मंजिला जालियां मशरूम पैकेट रखने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। बच्चों को इन जालियों पर चढ़ाया जाता था और बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उन पर मशरूम पैकेट टांगने को कहा जाता था। इसके अलावा, इस प्रक्रिया में इस्तेमाल की जाने वाली मिट्टी में फॉर्मलिन जैसे खतरनाक रसायन मिलाए जाते थे, जो सांस के जरिए शरीर में जाने से कैंसर पैदा कर सकता है। लंबे समय तक या उच्च मात्रा में फार्मलिन के संपर्क से गले में सूजन के कारण या फेफड़ों में रासायनिक जलन से मृत्यु तक हो सकती है।

ऐसे प्रतिष्ठानों के सरगनाओं के नेटवर्क को ध्वस्त करने की जरूरत बताते हुए एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन के वरिष्ठ निदेशक मनीष शर्मा ने कहा, “इकाई में मौजूद बच्चे भूखे थे, जख्मी थे, उदास और डरे हुए थे। वहां मौजूद खतरों को देखकर हम स्तब्ध रह गए। लेकिन यह बचाव सिर्फ एक अस्थायी जीत है। यह तीन महीनों में उसी प्रतिष्ठान पर दूसरी छापेमारी है और यह तथ्य स्थापित करता है कि इकाई के मालिकों की इसमें एक स्पष्ट और खतरनाक भूमिका है। इसके बावजूद एफआईआर में प्रासंगिक धाराएं शामिल नहीं की गईं। जब तक कानून उन लोगों पर प्रहार नहीं करता जो इन फैक्टरियों को चलाते हैं और बच्चों के शोषण और उनके खिलाफ अपराध से मुनाफा कमाते हैं, तब तक बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग का खात्मा नहीं हो सकता।”
उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो, छत्तीसगढ़ के महिला एवं बाल विकास अधिकारी संजय निराला और रायपुर की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की प्रमुख डीएसपी नंदिनी ठाकुर की भी सराहना की, जिन्होंने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी।

Tags: anti human trafficking RaipurAVA rescue operationbonded labour Raipurchild rights violationchild trafficking Chhattisgarhinhuman labour conditions IndiaNHRC action RaipurRaipur child labour rescueRaipur mushroom unit raidRaipur police child labour case
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