अमित पांडे: संपादक
भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस की दुबई एयर शो में हुई दुर्घटना ने न केवल एक बहादुर पायलट की जान ले ली बल्कि देश की रक्षा प्रतिष्ठा और निर्यात प्रयासों पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। यह घटना उस समय हुई जब भारत सरकार लगातार यह संदेश दे रही थी कि स्वदेशी रक्षा उत्पादन और निर्यात ही भविष्य की दिशा है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस तरह की दुर्घटना केवल तकनीकी विफलता नहीं बल्कि राष्ट्रीय छवि पर भी आघात है।
तेजस विमान का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। 2001 में पहली उड़ान भरने के बाद यह विमान लंबे समय तक परीक्षणों और सुधारों से गुजरा। इसे भारतीय वायुसेना में शामिल करना आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया। लेकिन मार्च 2024 में राजस्थान के जैसलमेर में हुई पहली दुर्घटना और अब दुबई एयर शो में दूसरी दुर्घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या तेजस वास्तव में उतना ही भरोसेमंद है जितना दावा किया जाता है।
दुर्घटना के बाद भारतीय वायुसेना और रक्षा मंत्रालय ने तुरंत जांच की घोषणा की है। यह स्वाभाविक है कि तकनीकी कारणों का पता लगाया जाए और सुधार किए जाएं। लेकिन केवल तकनीकी जांच से बात पूरी नहीं होती। जब कोई विमान अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन में दुर्घटनाग्रस्त होता है तो यह भारत की रक्षा कूटनीति और निर्यात रणनीति पर भी असर डालता है। दुबई एयर शो जैसे प्रतिष्ठित मंच पर तेजस की दुर्घटना उन संभावित खरीदार देशों के विश्वास को कमजोर कर सकती है जो भारतीय रक्षा उत्पादों में निवेश करने पर विचार कर रहे थे।
यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि दुर्घटनाएं किसी भी देश के विमानों के साथ होती हैं। अमेरिका के एफ-16, रूस के मिग और फ्रांस के मिराज जैसे विमानों ने भी कई बार दुर्घटनाएं झेली हैं। लेकिन अंतर यह है कि उन देशों ने दुर्घटनाओं के बावजूद अपने विमानों की विश्वसनीयता और बाजार को बनाए रखा। भारत को भी यही करना होगा। केवल दुर्घटना को स्वीकार कर लेना और शोक संदेश जारी करना पर्याप्त नहीं है। यह समय है जब सरकार और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को पारदर्शिता दिखानी होगी, तकनीकी खामियों को सार्वजनिक करना होगा और यह भरोसा दिलाना होगा कि तेजस सुरक्षित है।
दुर्घटना का एक और पहलू है—पायलट की शहादत। एक बहादुर वायुसेना अधिकारी ने देश के गौरव के लिए अपनी जान गंवाई। यह केवल एक तकनीकी विफलता नहीं बल्कि मानवीय त्रासदी भी है। ऐसे समय में सरकार और सेना को यह सुनिश्चित करना होगा कि पायलटों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता बने। यदि विमान प्रदर्शन के दौरान जोखिमपूर्ण है तो उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उड़ाने से पहले सौ बार परखा जाना चाहिए।
मोदी सरकार ने रक्षा निर्यात को 2025 तक 5 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। तेजस को इस रणनीति का केंद्र माना गया था। लेकिन दुबई एयर शो की दुर्घटना इस लक्ष्य को कमजोर कर सकती है। यह तर्क दिया जा सकता है कि एक दुर्घटना से पूरी रणनीति नहीं बदलती, लेकिन यह भी सच है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में विश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी है। यदि खरीदार देशों को लगे कि भारत अपने विमानों की सुरक्षा और विश्वसनीयता पर पर्याप्त ध्यान नहीं देता तो वे अन्य विकल्पों की ओर मुड़ सकते हैं।
इस घटना को केवल नकारात्मक दृष्टि से देखना भी उचित नहीं होगा। यह भारत के लिए आत्ममंथन का अवसर है। यदि तेजस में तकनीकी खामियां हैं तो उन्हें दूर करना होगा। यदि प्रशिक्षण और प्रदर्शन में सुधार की आवश्यकता है तो उसे तुरंत लागू करना होगा। भारत को यह दिखाना होगा कि वह केवल स्वदेशी उत्पादन का दावा नहीं करता बल्कि गुणवत्ता और सुरक्षा में भी विश्वस्तरीय है।
अंततः यह दुर्घटना भारत के लिए एक चेतावनी है। स्वदेशी रक्षा उत्पादन का सपना तभी सफल होगा जब वह तकनीकी रूप से मजबूत, सुरक्षित और विश्वसनीय हो। तेजस भारत का गौरव है, लेकिन उसे चुनौती भी है। यदि हम इस चुनौती का सामना ईमानदारी और दृढ़ता से करते हैं तो तेजस न केवल भारतीय वायुसेना का अभिन्न हिस्सा बनेगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी जगह बनाएगा। लेकिन यदि हम केवल शोक संदेशों और औपचारिक जांचों तक सीमित रह गए तो यह दुर्घटना भारत की रक्षा छवि को लंबे समय तक नुकसान पहुंचा सकती है।







