हंसराज कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में आज स्वर्गीय श्री नरेंद्र जैन (नंदा जी) की 18वीं पुण्यतिथि के अवसर पर कैंपस कॉर्नर द्वारा एक गरिमामय श्रद्धांजलि सभा और उनके लेखों के संकलन पर आधारित पुस्तक “समर गाथा” पर पुस्तक परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य स्व. नरेंद्र जैन के वैचारिक योगदान, राष्ट्रीय दृष्टि और सांस्कृतिक मूल्यों को नई पीढ़ी तक पहुँचाना रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर रमा जी ने की।
मुख्य अतिथि के रूप में श्यामा प्रसाद मुखर्जी फाउंडेशन के निदेशक श्री बिनय सिंह जी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय छात्रा प्रमुख दीदी मनु शर्मा कटारिया जी, रामजस कॉलेज के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. प्रशांत अरवे जी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री श्री राम गुप्ता जी, और कैंपस कॉर्नर की संपादक डॉ. अंकिता चौहान जी व डॉ. महेंद्र प्रजापति जी उपस्थित रहे।

कार्यक्रम के प्रथम वक्ता के रूप में डॉ. प्रशांत अरवे ने ऐतिहासिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए “समर गाथा” के विविध प्रसंगों के माध्यम से भारतीय शौर्य की परंपरा पर प्रकाश डाला। उन्होंने विशेष रूप से स्वतंत्रता सेनानी वीर विनायक दामोदर सावरकर के संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसे अन्य महानायकों ने भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वैसे ही वीर सावरकर के योगदान को भी समान सम्मान मिलना चाहिए। उन्होंने गुमनामी के अंधेरे में छिपे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
मनु शर्मा कटारिया जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि “समर गाथा” स्व. नरेंद्र जैन द्वारा रचित विचारों का सशक्त संकलन है, जिसका संपादन डॉ. पियूष जैन ने किया है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में इस पुस्तक की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसमें इतिहास के कई प्रसंगों की नवीन व्याख्या के साथ राष्ट्रीय चरित्र और मूल्य स्पष्ट रूप से सामने आते हैं। उन्होंने युवा पीढ़ी से आह्वान किया कि वे इस पुस्तक के विचारों को आत्मसात कर सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में सकारात्मक भूमिका निभाएं।

अपने संस्मरणों को साझा करते हुए श्री बिनय सिंह जी ने स्व. नरेंद्र जैन के व्यक्तित्व और उनके पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन के अनुभवों को भावुकता के साथ याद किया। उन्होंने बताया कि आज के समय में जब विवाह संस्था और परिवार पर अनेक प्रकार के संकट खड़े किए जा रहे हैं, ऐसे में डॉ. पियूष जैन द्वारा अपने पिता के लेखों का संकलन कर “समर गाथा” के रूप में समाज के सामने रखना परिवार और संस्कारों को बचाने की एक सार्थक पहल है। उन्होंने कहा कि “मां का भाव इस सृष्टि से परे है” और ऐसे भावनात्मक एवं मूल्यनिष्ठ लेख आज के समाज को दिशा देने वाले हैं। कार्यक्रम के अंत में प्राचार्या प्रो. रमा जी ने स्व. नरेंद्र जैन के जीवन मूल्यों, उनकी सरलता, समर्पण और वैचारिक प्रतिबद्धता को नमन करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन छात्रों में राष्ट्रभाव, कर्तव्यबोध और सांस्कृतिक जड़ों के प्रति सम्मान पैदा करते हैं।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में शोधार्थी, विद्यार्थी, अध्यापकगण तथा स्व. नरेंद्र जैन जी के परिवार से जुड़े हुए परिजन उपस्थित रहे। सभी ने दो मिनट का मौन रखकर नंदा जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और “समर गाथा” के चयनित अंशों का वाचन कर उनके विचारों को याद किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन कैंपस कॉर्नर की ओर से किया गया और यह संकल्प लिया गया कि स्व. नरेंद्र जैन जैसे चिंतकों की वैचारिक विरासत को निरंतर संवाद, लेखन और शोध के माध्यम से अगली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाता रहेगा।







