हरेन्द्र प्रताप की विशेष रिपोर्ट
नई दिल्ली, 9 दिसंबर। भारत सरकार के शिक्षा विभाग के अधीन लंबे समय से विवादास्पद चल रहे संस्थान के विवादास्पद निदेशक सुनील बाबूराव कुलकर्णी की माननीय तरीके से विदाई की तैयारी आरंभ हो गई है ! नये निदेशक के पद के लिए विज्ञापन जारी किया जा रहा है।
श्री कुलकर्णी के बारे में ” इलेस्ट्रेटड डेली न्यूज़ ” और ” कड़वा सत्य ” ने पिछले दिनों विशेष समाचार प्रकाशित किया था। साथ ही इन दोनों डिजिटल मीडिया में डॉ. बापूराव देसाई की पुरानी पुस्तक ” विश्वभाषा हिंदी अनुसंधानात्मक निबंध ” में जिन माननीय की ” खूबियों ” का व्यापक वर्णन किया गया है, वे प्रस्थान मुद्रा को अब धारण कर चुके कोई और नहीं बल्कि केंद्रीय हिंदी संस्थान के वर्तमान निदेशक हैं।
श्री कुलकर्णी जैसे लोग यदि निदेशक या प्रोफेसर या सहायक प्रोफेसर बनने में सफल हो जाते हैं तो इसमें उनका कोई दोष नहीं है। दोष उस व्यवस्था का है जो उन्हें न सिर्फ पदासीन करता है बल्कि माननीय भी बना देता है और पूरा शिक्षा जगत मूकदर्शक बना रह जाता है ! यह भी तब जब डॉ. बापूराव देसाई को इस तरह के व्यक्तित्व पर एक पूरा अध्याय लिखना पड़ जाता है और चौथे स्तंभ को ऐसे विषयों को भी व्यापक कवरेज देना पड़ जाता है तथा संबंधित प्रभावित लोगों को दर्जनों शिकायत करनी पड़ जाती है लेकिन तब भी ” कुंभकर्ण ” की नींद नहीं टूटती है ! और, जब नींद टूटती है तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ! ऐसी स्थिति में योग्य व्यक्ति केंद्रीय हिंदी संस्थान का नाम सुनकर ही घबरा जाता है !
डॉ. देसाई अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि यह सच है कि उस तथाकथित विकलांग लेक्चरर को मैंने उसके विभाग में रहते हुए हिन्दी में पढ़ाई, लिखाई, बेवफाई तथा अशुद्ध लेखन पर 10 -12 मेमो दिये थे जो विश्वविद्यालय प्रशासन में मौजूद हैं।
तथ्य यह है कि जो व्यक्ति हिन्दी में एक पैरा शुद्ध नहीं लिख पाता है और कभी भी समय पर क्लास में उपस्थित नहीं रहता है, वह सहायक प्रोफेसर या प्रोफेसर अथवा निदेशक कैसे बना दिया जाता है ?
नये निदेशक की खोज की खबर से केंद्रीय हिंदी संस्थान से जुड़े संवेदनशील लोगों को राहत महसूस हो रही है लेकिन साथ ही यह भी दुविधा है कि अगले निदेशक का चयन योग्यता के आधार पर होगा या ” सेटिंग ” के रास्ते से ! यह भी सोचिए कि उनका क्या होगा जहां वर्तमान माननीय फिर कोई नया अमानवीय इतिहास रचेंगे !






