नई दिल्ली। भारत की न्यायिक व्यवस्था में बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामलों को लेकर पहली बार एक अहम और सकारात्मक बदलाव दर्ज किया गया है। साल 2025 में देश ने पहली बार ऐसे हालात देखे, जब पोक्सो (POCSO) मामलों का निपटान, दर्ज हुए मामलों से ज्यादा रहा। एक नई स्टडी के मुताबिक 2025 में जहां 80,320 पोक्सो मामले दर्ज किए गए, वहीं 87,754 मामलों का निपटारा हुआ। इसका मतलब यह है कि देश का डिस्पोज़ल रेट 109 प्रतिशत तक पहुंच गया है, यानी जितने मामले आए, उससे ज्यादा निपटाए गए। यह खुलासा “Pendency to Protection: Achieving the Tipping Point to Justice for Child Victims of Sexual Abuse” रिपोर्ट में हुआ है, जिसे Centre for Legal Action and Behaviour Change (C-LAB) for Children, इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की एक पहल, ने तैयार किया है।
‘तारीख पे तारीख’ से आगे बढ़ती व्यवस्था
रिपोर्ट के मुताबिक 2023 तक देश में पोक्सो मामलों का लंबित आंकड़ा 2,62,089 तक पहुंच गया था और न्यायिक व्यवस्था को अक्सर ‘तारीख पे तारीख’ की छवि से जोड़ा जाता रहा है। लेकिन 2025 में दर्ज मामलों से ज्यादा निपटान होने के बाद सिस्टम एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है, जिसे रिपोर्ट ने “टिपिंग पॉइंट” करार दिया है। यानी अब न्यायिक व्यवस्था केवल लंबित मामलों को संभालने तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्हें सक्रिय रूप से कम करने की दिशा में बढ़ रही है।
24 राज्यों में 100% से ज्यादा निपटान
रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पोक्सो मामलों का डिस्पोज़ल रेट 100 प्रतिशत से अधिक रहा। इनमें से सात राज्यों/यूटी में यह दर 150 प्रतिशत से ऊपर दर्ज की गई, जबकि सात राज्यों में 121 से 150 प्रतिशत और 10 राज्यों में 100 से 120 प्रतिशत के बीच रही। इसका अर्थ यह है कि इन राज्यों ने न केवल 2025 के नए मामलों का निपटान किया, बल्कि पिछले वर्षों के कुछ लंबित मामलों को भी क्लियर किया।
फिर भी चिंता की वजहें बरकरार
हालांकि रिपोर्ट कई सकारात्मक संकेत देती है, लेकिन इसमें कुछ गंभीर चिंताओं की ओर भी इशारा किया गया है। आंकड़ों के अनुसार, करीब आधे लंबित पोक्सो मामले ऐसे हैं जो दो साल से ज्यादा समय से अदालतों में अटके हुए हैं। सजा (conviction) की दरों में भी लगातार उतार-चढ़ाव बना हुआ है और राज्यों के बीच भारी असमानता दिखती है। रिपोर्ट बताती है कि पांच साल से ज्यादा समय से लंबित मामलों में अकेले उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 37 प्रतिशत है, जबकि महाराष्ट्र 24 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल 11 प्रतिशत के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। ये तीनों राज्य मिलकर ऐसे मामलों का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा बनाते हैं।
600 अतिरिक्त e-POCSO कोर्ट की जरूरत
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अगर देश में 600 अतिरिक्त e-POCSO कोर्ट स्थापित किए जाएं, तो अगले चार साल में पोक्सो मामलों का पूरा बैकलॉग खत्म किया जा सकता है। इसके लिए करीब 1,977 करोड़ रुपये के बजट की जरूरत बताई गई है, जिसे निर्भया फंड से भी पूरा किया जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में साल-दर-साल डिस्पोज़ल रेट 100 प्रतिशत से ऊपर बनाए रखना जरूरी होगा।
‘अब इरादे से असर की ओर बढ़ा सिस्टम’
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के डायरेक्टर (रिसर्च) पुरुजित प्रहराज ने कहा कि भारत अब बच्चों के यौन शोषण के मामलों में एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। उनके मुताबिक, जब सिस्टम दर्ज होने वाले मामलों से ज्यादा का निपटान करने लगता है, तो यह सिर्फ इरादे नहीं, बल्कि असर दिखाने की शुरुआत होती है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक चलने वाले केस बच्चों के मानसिक आघात को और गहरा करते हैं, इसलिए इस रफ्तार को बनाए रखना बेहद जरूरी है।
AI और टेक्नोलॉजी पर भी जोर
रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि न्यायिक प्रक्रिया को और तेज करने के लिए AI-आधारित लीगल रिसर्च टूल्स और डॉक्यूमेंट मैनेजमेंट सिस्टम का इस्तेमाल बढ़ाया जाए। साथ ही जिन राज्यों में प्रदर्शन कमजोर है, वहां तकनीकी और प्रशासनिक सहायता देने और सजा व बरी होने की दरों की बारीकी से निगरानी करने की भी सिफारिश की गई है।
किन आंकड़ों पर आधारित है रिपोर्ट
यह रिपोर्ट 2 दिसंबर 2025 तक उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित है, जिन्हें नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG), नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) और संसद में पूछे गए सवालों के जवाबों से संकलित और विश्लेषित किया गया है।







