भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के प्रमुख भुवनेश कुमार ने सोमवार को साफ कहा कि आधार नागरिकता का सबूत नहीं है. उन्होंने बताया कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह बच्चा हो या विदेशी नागरिक, अगर उसने भारत में कम से कम 182 दिन बिताए हों तो वह आधार के लिए आवेदन कर सकता है.
आधार कार्ड है फाउंडेशनल आईडी
कुमार ने एक इंटरव्यू में समझाया कि आधार को अन्य पहचान पत्रों से अलग क्यों माना जाता है. उनके मुताबिक, ड्राइविंग लाइसेंस या पासपोर्ट जैसे आईडी केवल डेमोग्राफिक डिटेल्स यानी नाम, उम्र, फोटो आदि के आधार पर बनते हैं. लेकिन इनसे यह गारंटी नहीं मिलती कि यह पहचान पूरी तरह यूनिक है. वहीं, आधार को ‘फाउंडेशनल आईडी’ कहा जाता है, क्योंकि इसमें 13 बायोमैट्रिक डिटेल्स 10 फिंगरप्रिंट, 2 आईरिस स्कैन और फेस शामिल होते हैं. इन डिटेल्स को सेंट्रल आइडेंटिटी डाटा रिपॉजिटरी (CIDR) से मिलान करके ही नया आधार नंबर जारी किया जाता है. इस तरह किसी भी तरह की डुप्लीकेसी या फर्जीवाड़े की संभावना खत्म हो जाती है.
आधार नंबर से पक्की नहीं होती है पहचान
उन्होंने कहा कि आधार नंबर तभी मायने रखता है जब उसकी ऑथेंटिकेशन या ऑफलाइन वेरिफिकेशन की जाए. सिर्फ नंबर बताने से पहचान पक्की नहीं होती. आधार कार्ड के पीछे मौजूद QR कोड को UIDAI के स्कैनर ऐप से पढ़कर असली या नकली होने की जांच की जा सकती है. इसमें फोटो, नाम, जन्मतिथि, पता और जेंडर जैसी जानकारी मौजूद रहती है और यह प्रक्रिया इंटरनेट के बिना भी काम करती है.
आधार नागरिकता सबूत नहीं
भुवनेश कुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार एक्ट के तहत यह नागरिकता का सबूत नहीं है. नेपाल, भूटान, ओसीआई कार्डधारक जैसे विदेशी भी 182 दिन भारत में रहने के बाद आधार बनवा सकते हैं. वहीं, एनआरआई को 182 दिन का नियम लागू नहीं होता क्योंकि उनके पास भारतीय पासपोर्ट पहले से होता है.
कोर्ट ने क्या कहा?
यह बयान ऐसे समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार सुबह बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच अहम निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि आधार कार्ड को मतदाता सूची के लिए पहचान के 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता दी जाए. हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि इसकी प्रामाणिकता की जांच का अधिकार चुनाव आयोग के पास रहेगा.