America Pentagon Nuclear Testing: दुनिया के कई देशों के बीच इस समय तनाव जारी है और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उनके बीच दोस्ती कराने के दावे कर रहे हैं। इसी बीच एक और बात सामने आई है। ट्रंप ने गुरुवार, 30 अक्टूबर को रक्षा मंत्रालय से कहा कि वे न्यूक्लियर टेस्टिंग दोबारा शुरू करें। ट्रंप को ये फैसला ऐसे समय में आया है जब रूस के नेता व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन को लेकर उनकी पीस डील लगभग खराब हो गई। ऐसे में सवाल ये उठता है कि 3 दशक बाद यूएस का दोबारा परमाणु परीक्षण शुरू करना क्या किसी खतरे का संकेत हो सकता है?
ट्रंप ने दिए निर्देश
ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया साइट पर लिखा कि दूसरे देशों के टेस्टिंग प्रोग्राम को देखते हुए मैंने डिपार्टमेंट ऑफ वॉर को निर्देश दिया कि वो हमारे परमाणु हथियारों की टेस्टिंग तुरंत शुरू करें, ताकि हम बराबरी पर रहें। उन्होंने ये भी कहा कि फिलहाल अमेरिका के पास दुनिया में सबसे ज्यादा न्यूक्स हैं, लेकिन चीन अगले 5 साल में हमारी बराबरी कर सकता है। इसके साथ ही सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्यों तीन दशक तक यूएस ने इसे रोक के रखा था।
क्या होती है परमाणु टेस्टिंग?
परमाणु टेस्टिंग का मतलब है, परमाणु हथियार का प्रयोग करके उसकी ताकत, असर और तकनीक को परखना कि वो कितनी असरदार है। जब कोई देश ये देखना चाहे कि उसका परमाणु हथियार ठीक से काम करेगा या नहीं और कितनी तबाही मचा सकता है तो वह उसका टेस्ट करता है। पुराने समय में देश खुले इलाकों, समुद्र या रेगिस्तान में टेस्ट करते थे, जैसे अमेरिका ने नेवादा और प्रशांत महासागर में किया था। फिर पता चला कि इससे रेडिएशन फैलकर इंसानों तक पहुंच सकता है तो अंडरग्राउंड टेस्ट शुरू हुए, लेकिन ये भी सेफ नहीं है।
कई देशों ने मिलकर लिया फैसला
इसे देखते हुए परमाणु टेस्ट की होड़ लग गई। साठ के दशक में सोवियत संघ और यूएस जमकर टेस्टिंग कर रहे थे। इससे कई द्वीपों और इलाकों में रेडिएशन फैलने लगा। हजारों लोग बीमार हुए, लेकिन एक खतरा और बड़ा था। हथियार होंगे तो आजमाने की इच्छा भी आएगी। ये वैसा ही है, जैसे बंदूक होने पर उसे चलाने के मौके तलाशना। इसी वजह से देशों ने तय किया कि ऐसे टेस्ट बंद करने चाहिए।
 
			

 
							




