हरेन्द्र प्रताप
दिसंबर माह पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नाम रहा जबकि पूरा साल यानि 2025 भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के नाम रहा। दोनों ऐतिहासिक योगदान के लिए ख्यात, दृढ़ निर्णयों के लिए विख्यात और दोनों सृजनशील, दोनों रचनाकार ! दोनों में “अटल” के गुण और दोनों में “नरेन्द्र” के गुण ! दोनों अद्वितीय और अतुलनीय ! दोनों विश्व में अपने – अपने समय में सर्वाधिक चर्चित ! दोनों के समय में भारत अनेक अवसरों पर साहसिक फैसले लेने के मामलों में आत्मनिर्भर ! दोनों का रोजगार सृजन में तेज गति से योगदान ! दोनों के समय में आतंकवादियों और आतंकपरस्तियों को मुंहतोड़ जवाब ! दोनों का युवाओं, मातृशक्ति, किसान और जवान पर विशेष ध्यान ! दोनों के समय में राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक जागरण का पुनर्घोष ! अंदर और बाहर के उपद्रवियों पर दोनों की नकेल !
इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी के भौतिक रूप से नहीं रहने पर भी पूरा दिसंबर अटलमय दिख रहा और ट्रंप, पुतिन और इस्राइल के प्रभाव वाले वर्ष 2025 में भी भारत समेत विश्व का बड़ा भूभाग मोदीमय दिखा। पारंपरिक रूप से दो ध्रुवों वाला विश्व इस साल चीन, ब्राजील और भारत के साहसिक निर्णयों से आधुनिक युग में बहुध्रुवीय बन गया !
अटल बिहारी वाजपेयी को वास्तविक अर्थों में अटल और नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को नरेन्द्र बनाने में अमेरिका और पाकिस्तान का बाहर से विशेष योगदान है जबकि देश के अंदर इसका श्रेय भटकाव का शिकार हो चुके विपक्ष को जाता है और बाकी दोनों महान हस्तियों की अपनी – अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और सतत मेहनती सोच को व्यक्तिगत रूप से जाता है। सफल परमाणु परीक्षण और करगिल विजय ने अटल बिहारी वाजपेयी को अमर प्रधानमंत्री बना दिया। सर्जिकल स्ट्राइक, कोविड विजय और आत्मनिर्भर भारत अभियान ने नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को अद्वितीय प्रधानमंत्री बना दिया !
दोनों के शासनकाल की कुछेक समान खामियां भी रही हैं जिनका खामियाजा आम जनमानस को आज भी भुगतना पड़ रहा है। दोनों की सरकार भारतीय नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, गुटबाजी, अपारदर्शी व्यवहार, भेदभावपूर्ण नियुक्ति और लापरवाही युक्त आचरण रोकने में विफल रही है। दोनों अपने – अपने समय के सुस्त मंत्रियों, कुलपतियों, अक्षम नौकरशाहों को समय पर हटाने में विफल रहे हैं। दोनों की सरकार अपनी योजनाओं और कार्यक्रमों की सूचना लक्षित समूह तक प्रभावी ढंग से पहुंचाने में सफल नहीं रही हैं। दोनों के समय में लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को जनता के प्रति अधिक जागरूक, संवेदनशील और जवाबदेह बनाने के लिए किसी ठोस पहल का अभाव दिखा है। एक छोटा सा उदाहरण ही काफी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सत्ता से बाहर हुए आम आदमी पार्टी को अनेक महीने गुजर गए हैं लेकिन आम नागरिकों के लिए दिल्ली परिवहन सेवा यानि डी टी सी का प्रबंधन पहले से कहीं अधिक कुप्रबंधन का शिकार हो गया है और दैनिक यात्रियों को समय पर सार्वजनिक बस नहीं मिल पा रही है ! इसका परिणाम यह है कि आम नागरिक बहुत जल्द फिर से आम आदमी पार्टी की व्यवस्था की तारीफ कर रहे हैं। मतलब सरकारी स्तर पर करने के लिए बहुत कुछ शेष है।
वैसे, अटल जी और नरेन्द्र जी में कुछेक मौलिक अंतर भी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी पराधीन भारत में पैदा हुए। इसलिए वे अधिक संतुलन बना कर चलते थे। विपक्ष में पक्ष और पक्ष में विपक्ष का भी वे विशेष ध्यान रखते थे। विपक्ष में रह कर भी वे सरकार की मुखिया श्रीमती इंदिरा गांधी की समय – समय पर तारीफ कर देते थे। वे पराधीन मानसिकता और स्वाधीन मानसिकता वालों के बीच गज़ब का तालमेल बिठा लेते थे और पक्ष में ही रह कर पक्ष के ही मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री को भी नहीं बख्शते थे।
नरेन्द्र दामोदरदास मोदी स्वतंत्र भारत में पैदा हुए। इसलिए वे स्वभाव से अधिक आजाद रहे हैं। भारत समेत पूरी दुनिया उनके निर्भीक निर्णयों से वाकिफ रही है। साल 2025 को भी ऑपरेशन सिंदूर और टैरिफ मामले से इसका प्रमाण मिल चुका है। वे प्रयोगधर्मी और नवाचारी हैं। ” मन की बात ” उनका बड़ा प्रयोग है और ” विकसित भारत ” की संकल्पना अकल्पनीय प्रयोग !
इस बार के दिसंबर और विशेष कर 25 दिसंबर का दिवस अधिक अटलमय शायद इसलिए भी दिख रहा है क्योंकि यह वर्ष अटल बिहारी वाजपेयी जन्म शताब्दी वर्ष भी रहा। पिछले दिसंबर से इस दिसंबर तक अटल जी की स्मृति में कोई न कोई महत्वपूर्ण आयोजन इस दौरान हर महीने आयोजित किया जाता रहा। यह सिलसिला 2025 के दिसंबर में भव्य रूप में दिखाई दिया। 24 दिसंबर को दिल्ली में अटल जी की स्मृति में संस्कृत – मैथिली – भोजपुरी कवि संगोष्ठी का आयोजन तथा 25 दिसंबर को अटल कैंटीन का उद्घाटन खास आदमी से लेकर आम आदमी तक के बीच में अटल जी की स्मृतियों को चिरस्थाई बनाने का प्रयास रहा। इस बीच अटल जी के नाम से अनेक योजनाओं, कार्यक्रमों, पुरस्कारों और अन्य आयोजनों की झड़ी लगी रही। सरकारी तथा गैर-सरकारी और केंद्र तथा राज्य स्तर पर भी विविध आयोजन होते रहे। अक्टूबर में प्रयागराज में हिंदुस्तानी एकेडमी में आयोजित संगोष्ठी भी अटल जी पर ही केंद्रित रही।
दरअसल अटल जी का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों विराट रहा। राजनीति में यदि वे नहीं आते तो भी आज हम-आप उन्हें एक प्रखर कवि तथा संपादक और ओजस्वी वक्ता के रूप में याद कर रहे होते।
हां, यह सही है कि नेहरू – इंदिरा काल में अन्य लोगों के लिए जयंती तथा पुण्य तिथि और शताब्दी समारोहों का जो संकुचन या अघोषित आरक्षण कर दिया गया था, उसका अटल-मोदी युग में भव्य विस्तारीकरण कर दिया गया। यही कारण है कि लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, नरसिम्हा राव जैसी हस्तियों की स्मृतियां सुस्थापित हो रही हैं और आजादी का अमृत महोत्सव, वंदेमातरम् के सृजन का 150 वां साल और भगवान बिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती का ऐतिहासिक वर्ष दिव्य रूप में राष्ट्रीय स्तर पर नजर आ रहा है।
यही नहीं बल्कि गुरु तेग बहादुर जी महाराज की 350वीं शहादत दिवस और लोकमाता अहिल्याबाई की 300वीं जयंती पर विभिन्न समारोहों का आयोजन भी अधिक राष्ट्रीय नजर आया। आपातकाल के 50 वर्ष और संविधान के विधान बनने के 75 वर्ष से जुड़े आयोजन भी इस साल स्मरणीय रहे। इसी कड़ी में सन् 2047 में भारत की आजादी की शताब्दी को भारत को विकसित राष्ट्र के रूप में तैयार करने का लक्ष्य सामने लाकर उसे हर स्तर पर स्वीकार्य बना देना अद्भुत नेतृत्व के कौशल का परिचायक है।
आंतरिक हिंसा को नियंत्रित करने के लिए नक्सलियों और असामाजिक तत्वों के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान इस साल अधिक प्रभावी रहा ! घुसपैठियों को वापस लौटाने और उनके खिलाफ दीर्घकालिक नीति तैयार करने की योजना ने सरकार को प्रतिष्ठित किया।
वैसे , इस साल सबसे स्मरणीय रही भारत की विश्व स्तरीय डिप्लोमैसी जो ऑपरेशन सिंदूर से लेकर टैरिफ टेरर तक भारत को वैश्विक मीडिया में चर्चित करती रही। इसका दिलचस्प पहलू यह रहा कि जहां विश्व स्तर पर भारत के राजनयिक रिश्तों को नया विस्तार मिला, वहीं देश के अंदर अनेक विपक्षी नेता भी केंद्र सरकार के सुर में सुर मिलाते नजर आये। मतदाताओं की पहचान वैसे तो चुनाव आयोग की पहल है लेकिन इसका भी श्रेय मोदी सरकार को ही जाता है। वहीं बिहार चुनाव में हुई ऐतिहासिक विजय का श्रेय नरेन्द्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व और गृहमंत्री अमित शाह की आधुनिक चाणक्य नीति को जाता है। देश भर में जनसंख्या की डिजिटल गणना का ऐलान भविष्य में देश की राजनीति को तय करने का नया आधार तय कर सकता है। भारत की नजर बांग्लादेश के आंतरिक उथल-पुथल के परिणाम पर भी केंद्रित है जिसके बारे में निर्णायक कदम कभी भी उठाये जा सकते हैं।
वास्तव में यह साल भारत को विश्व की एक आत्मनिर्भर मौलिक शक्ति की पहचान दिलाने में निर्णायक रहा। और, वर्ष 2025 के मोदीमय होने का भारत के लिए यह सबसे सुखद परिणाम है !








