ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई के अचानक सार्वजनिक जीवन से गायब हो जाने की अफ़वाहों ने ना केवल देश के भीतर चिंता की लहर दौड़ा दी, बल्कि पश्चिमी मीडिया में एक नई बहस को जन्म दिया। जब पूरा विश्व यह सोच रहा था कि क्या ईरान की सत्ता संरचना संकट में है, तभी ख़ामेनेई ने एकाएक X (पूर्व में ट्विटर) पर सामने आकर अपनी “डिजिटल मौजूदगी” का परिचय देते हुए सारे कयासों पर ब्रेक लगा दिया।
यह घटना केवल एक नेता की मौन भंग करने की कहानी नहीं है, यह उस विचारधारा की झलक है जिसमें सत्ता अब हथियारों और भाषणों से नहीं, बल्कि सोशल मीडिया की पोस्टों से चलती है। ख़ामेनेई ने अपनी एक के बाद एक पोस्ट के ज़रिए न केवल अमेरिका और इज़राइल पर तीखा हमला बोला, बल्कि ईरान की जनता को यह संदेश भी दिया कि नेतृत्व अब भी ज़िंदा है, सक्रिय है — भले ही पर्दे के पीछे से।
उनकी पहली पोस्ट में सीधा संदेश था:
“इस्लामी गणराज्य ने अमेरिका के चेहरे पर जोरदार तमाचा मारा है।”
यह सिर्फ़ एक वाक्य नहीं था, बल्कि वह आग थी जिसने फिर से ईरानी आत्मगौरव को हवा दी। उन्होंने अल-उदीद एयरबेस पर ईरानी हमले को “जीत” बताया और ज़ायनिस्ट शासन (इज़राइल) की हार का दावा किया।
लेकिन सवाल सिर्फ़ पोस्ट का नहीं है — सवाल यह है कि क्यों एक पूरी सत्ता संरचना, जिसकी जड़ें धर्म, क्रांति और जनता के समर्थन में हैं, आज खुद को बचाने के लिए भूमिगत हो गई है? क्या यह किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा है या फिर वाकई कोई गंभीर आंतरिक खतरा मंडरा रहा है?
रिपोर्टों के अनुसार, ख़ामेनेई को एक विशेष गुप्त बंकर में स्थानांतरित किया गया है और उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अब इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के सबसे विशेष ‘वली-ए-अम्र’ यूनिट के पास है। किसी भी प्रकार की डिजिटल गतिविधि को सीमित किया गया है जिससे कोई सायबर या ड्रोन आधारित हमला न हो सके।
इसी बीच, तेहरान की सड़कों पर महिलाएं ख़ामेनेई की तस्वीरें हाथ में लिए अमेरिका और इज़राइल के विरोध में प्रदर्शन कर रही हैं। यह दृश्य दिखाता है कि भले ही नेतृत्व दृष्टिगोचर न हो, उसकी पकड़ अभी भी मजबूत है।
लेकिन इसी के साथ एक और पहलू खुलकर सामने आता है — गंभीर सैन्य टकराव और देश के भीतर अशांति के बीच एक लीडर की चुप्पी क्या दर्शाती है? क्या सत्ता संरचना स्थिर है, या उसके स्तंभ हिलने लगे हैं?
पश्चिमी मीडिया में यह भी बताया गया कि ख़ुद ईरान की सत्ता के शीर्ष अधिकारी उनसे सीधे संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। रॉयटर्स और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं रिपोर्ट कर रही हैं कि उनकी उत्तराधिकारी समिति ने अपनी गतिविधियाँ तेज़ कर दी हैं।
अब प्रश्न उठता है — अगर यह मात्र सुरक्षा का कदम है तो इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी? अमेरिका और इज़राइल की सीधी बमबारी, तीन परमाणु ठिकानों का नष्ट हो जाना, और फिर ईरान का प्रतिशोधात्मक हमला — यह दिखाता है कि यह सिर्फ़ कूटनीतिक बयानबाजी का दौर नहीं है, यह असली युद्ध की छाया है।
ख़ामेनेई के ट्वीट्स यह जताते हैं कि युद्ध अब केवल हथियारों से नहीं, शब्दों से भी लड़ा जा रहा है। उनके अनुसार:
“अगर कोई भी दुश्मन आगे बढ़ा, तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।”
यह चेतावनी सिर्फ़ इज़राइल या अमेरिका को नहीं, पूरी दुनिया को थी कि ईरान अब पहले जैसा नहीं रहा।
लेकिन साथ ही यह भी विचारणीय है कि क्या एक राष्ट्र का नेतृत्व केवल डिजिटल उपस्थिति से संभव है? जब जनता अस्पतालों में घायल है, जब हज़ारों की संख्या में लोग विस्थापित हो रहे हैं, जब परमाणु वैज्ञानिक मारे जा रहे हैं — तो क्या एक नेता की केवल ऑनलाइन मौजूदगी पर्याप्त है?
तेहरान के वरिष्ठ अधिकारी मेहदी फ़ज़ाएली जब सार्वजनिक टेलीविज़न पर ख़ामेनेई की स्थिति के सवाल पर केवल “दुआ करो” कहते हैं, तो यह लोकतांत्रिक पारदर्शिता नहीं, बल्कि भय की स्थिति का संकेत है।
ईरान की जनता, जो दशकों से प्रतिबंधों, युद्ध और आर्थिक संकटों का सामना करती आ रही है, अब भी अपने सर्वोच्च नेता की एक झलक की राह देख रही है।
यदि ख़ामेनेई जीवित और स्वस्थ हैं, जैसा उनके ट्वीट्स से प्रतीत होता है, तो उनका सार्वजनिक जीवन में पुनः प्रकट होना ईरान की स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है। वरना ये संदेश दुनियाभर में यह संकेत देंगे कि ईरान की सत्ता संरचना अब पहले जैसी नहीं रही।
यह दौर बदलते नेतृत्व का है — जहाँ “डिजिटल मौजूदगी” को “राजनैतिक मौजूदगी” माना जाने लगा है। लेकिन जब ज़मीन पर मिसाइलें गिर रही हों, तब नेता का सशरीर उपस्थित रहना ज़्यादा जरूरी होता है। ख़ामेनेई के X पोस्ट ने कुछ समय के लिए अफ़वाहों पर विराम लगाया है, लेकिन सवाल वही है: क्या सिर्फ़ ट्वीट्स से एक देश को संभाला जा सकता है?