लेखक: अमित पांडेय
ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने हाल ही में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की दो दिवसीय यात्रा के दौरान एक महत्वपूर्ण बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि ब्रिटेन और अमेरिका मिलकर भारत और पाकिस्तान के बीच “स्थायी संघर्षविराम”, “संवाद” और “विश्वास-निर्माण उपायों” को सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं। लैमी का यह बयान उस समय आया जब क्षेत्र में तनाव चरम पर है और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर यह दावा कर चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को युद्ध की कगार से वापस खींचा था। लैमी ने कहा कि ये दो पड़ोसी देश हाल के समय में आपस में संवाद नहीं कर पा रहे हैं और यह जरूरी है कि हम सुनिश्चित करें कि तनाव और अधिक न बढ़े तथा संघर्षविराम बना रहे।
लैमी ने इस बात पर भी बल दिया कि ब्रिटेन पाकिस्तान के साथ मिलकर आतंकवाद से निपटने के लिए काम करता रहेगा, जिसे उन्होंने “इस देश और क्षेत्र पर एक भयानक अभिशाप” बताया। उनके इस बयान के पीछे उद्देश्य क्षेत्र में शांति बनाए रखने की पहल और वैश्विक कूटनीति को मजबूती देना है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को चाहिए कि वे अपने जल-संबंधी दायित्वों को भी पूरा करें। यह टिप्पणी तब आई है जब भारत ने सिंधु जल संधि के तहत अपनी भागीदारी को “स्थगित” कर दिया है, जिससे पाकिस्तान में जल संकट की आशंका बढ़ गई है।
भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सिंधु जल संधि की समीक्षा और उसमें संशोधन भारत का अधिकार है, और यह देश की संप्रभुता से जुड़ा मसला है। भारत के अनुसार, यह कदम जम्मू-कश्मीर में बार-बार हो रहे सीमा पार आतंकवादी हमलों की प्रतिक्रिया में लिया गया है। वहीं पाकिस्तान ने भारत के इस निर्णय को युद्ध की कार्यवाही की तरह देखा है और कहा है कि अगर पानी की आपूर्ति में किसी प्रकार की बाधा आती है तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पाकिस्तान ने भारत के इस कदम के जवाब में सभी व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों को निलंबित कर दिया है और भारतीय विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा किए गए मध्यस्थता के दावों को भारत ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है। भारत का कहना है कि भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से नहीं बल्कि दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच द्विपक्षीय समझौते के माध्यम से हुआ था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जयसवाल ने साफ किया कि अमेरिका के साथ हुई चर्चाओं में व्यापार का कोई उल्लेख नहीं हुआ था और यह कहना कि अमेरिका ने व्यापार रोकने की धमकी देकर दोनों देशों के बीच संघर्षविराम करवाया, वास्तविकता से परे है। भारत का स्पष्ट रुख है कि जम्मू-कश्मीर से जुड़े सभी मुद्दे द्विपक्षीय हैं और उनमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका स्वीकार नहीं की जाएगी।
भारत की इस स्थिति को मजबूती उस समय मिली जब विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक संसदीय समिति के समक्ष यह जानकारी दी कि संघर्षविराम पूरी तरह से भारत और पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशकों (DGMO) के आपसी संवाद के माध्यम से हुआ था, न कि किसी अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के दावे भारतीय विदेश नीति की साख को कमजोर करने की कोशिश हैं।
इन घटनाओं के बीच यह साफ हो गया है कि भारत क्षेत्रीय मुद्दों पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता। भारत की नीति “शांति के लिए शक्ति” के सिद्धांत पर आधारित है, जहां एक ओर वह क्षेत्रीय स्थिरता का पक्षधर है तो दूसरी ओर अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करता।
ब्रिटेन और अमेरिका की सक्रियता यह दर्शाती है कि वैश्विक शक्तियां दक्षिण एशिया में स्थायित्व बनाए रखने को लेकर चिंतित हैं, विशेष रूप से तब जब दोनों देश परमाणु हथियारों से लैस हैं और उनका टकराव वैश्विक स्तर पर अस्थिरता पैदा कर सकता है। हालांकि भारत बार-बार यह दोहराता रहा है कि वह पाकिस्तान से किसी भी मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार है, बशर्ते आतंकवाद और सीमा पार हिंसा पूरी तरह समाप्त हो।
अंततः, यह स्पष्ट है कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की राह कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह संवाद के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने में सहायक भूमिका निभाए, न कि मध्यस्थता करने की कोशिश करे। भारत की नीति यथार्थवाद पर आधारित है, जो राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए क्षेत्रीय शांति का समर्थन करती है। यदि पाकिस्तान भी आतंकवाद को समाप्त कर एक जिम्मेदार पड़ोसी की भूमिका निभाता है, तो उपमहाद्वीप में स्थायित्व और विकास की नई संभावनाएं पैदा हो सकती हैं।
(लेखक, समाचीन विषयों के गहन अध्येता, युवा चिंतक व राष्ट्रीय-आंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक हैं, रणनीति, रक्षा और तकनीकी नीतियों पर विशेष पकड़ रखते हैं।)