अमित सिंह- संपादक कड़वा सत्य
मुजफ्फरपुर, बिहार में नौ वर्षीय दलित बच्ची के साथ बलात्कार और क्रूर हमले के बाद उसकी मौत ने राज्य की कानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर सवाल उठाए हैं। यह घटना न केवल एक परिवार के लिए त्रासदी है बल्कि बिहार की प्रशासनिक क्षमताओं की पोल खोलने वाली साबित हुई है। यह मामला दर्शाता है कि राज्य में सुरक्षा, न्याय और चिकित्सा सेवाओं की स्थिति कितनी गंभीर है। सरकार और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस घटना के बाद कोई ठोस सुधार होगा या फिर यह भी अन्य घटनाओं की तरह राजनीति की भेंट चढ़ जाएगी?
घटना के विवरण से स्पष्ट होता है कि अपराधी ने बच्ची को नाश्ते का लालच देकर एक सुनसान जगह पर ले जाकर बलात्कार किया और फिर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया। जब उसकी मां उसे खून से लथपथ और अर्धनग्न अवस्था में मिली, तो उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। पहले श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (SKMCH), मुजफ्फरपुर में उसका इलाज हुआ, लेकिन हालत बिगड़ने पर उसे पटना मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (PMCH) रेफर किया गया। परिजनों का आरोप है कि PMCH में बच्ची को इलाज के लिए छह घंटे तक इंतजार करना पड़ा और अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई। हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने इन आरोपों का खंडन किया है। यह घटनाक्रम बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत सामने लाने के लिए पर्याप्त है।
इस घटना से राज्य में कानून-व्यवस्था की कमजोरी का भी पर्दाफाश हुआ है। अपराध का तरीका दर्शाता है कि अपराधी को कानून का कोई भय नहीं था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। 2022 में राज्य में बलात्कार के 3,342 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 1,124 मामले नाबालिगों के खिलाफ थे। दलित समुदाय के खिलाफ अपराधों की संख्या भी चिंताजनक है, जिसमें 2022 में 7,409 मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़े कानून-व्यवस्था की दयनीय स्थिति को दर्शाते हैं।
राजनीतिक स्तर पर इस घटना ने तीखी प्रतिक्रिया पैदा की है। विपक्ष ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस ने सरकार की उदासीनता को इसका प्रमुख कारण बताया है। RJD ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सरकार की असफलताओं को उजागर किया, जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि यदि समय पर इलाज मिला होता, तो बच्ची की जान बच सकती थी। तमिलनाडु यूथ कांग्रेस ने भी सरकार पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या दलित होना अपराध है। इस मामले को लेकर बिहार कांग्रेस ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें बिहार कांग्रेस प्रमुख ने सरकार को बच्ची की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया।
वहीं, केंद्र सरकार के मंत्री नित्यानंद राय ने सरकार का बचाव किया और दावा किया कि बिहार में कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाया और पूर्ववर्ती लालू-राबड़ी शासन को अपराधियों का संरक्षण देने वाला बताया। यह बयान केवल राजनीतिक जवाबदेही से बचने की कोशिश प्रतीत होता है, क्योंकि वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है।
इस घटना से राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की अव्यवस्था भी उजागर हुई है। बिहार का स्वास्थ्य बजट और बुनियादी ढांचा राष्ट्रीय औसत से पीछे है। 2023-24 के लिए बिहार का स्वास्थ्य बजट राज्य के कुल बजट का लगभग 6% था, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन 12-15% की सिफारिश करता है। PMCH जैसे बड़े अस्पतालों में बेड की कमी और चिकित्सकों की अपर्याप्त संख्या आम समस्या है। 2023 में प्रकाशित एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में प्रति 10,000 लोगों पर केवल 3.5 अस्पताल बेड उपलब्ध हैं, जो राष्ट्रीय औसत 5.5 से काफी कम है। इस घटना में छह घंटे की देरी का आरोप स्वास्थ्य सेवाओं की इस कमी को उजागर करता है।
इस त्रासदी के सामाजिक आयाम भी महत्वपूर्ण हैं। यह घटना दलित समुदाय के प्रति समाज और प्रशासन के रवैये पर सवाल उठाती है। विपक्ष के आरोपों के अनुसार, बच्ची की जातिगत पृष्ठभूमि ने उसके इलाज में देरी का कारण बनाया हो सकता है। NCRB के आंकड़े भी दलितों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि दर्शाते हैं, जो सामाजिक असमानता और भेदभाव को उजागर करता है।
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि बिहार में कानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है। सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए—
1. ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस गश्त बढ़ाई जाए और बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, की सुरक्षा के लिए विशेष योजनाएं लागू की जाएं।
2. अस्पतालों में आपातकालीन सेवाओं को मजबूत करने के लिए अधिक बेड, चिकित्सक और उपकरणों की आवश्यकता है।
3. मरीजों के साथ भेदभाव रोकने के लिए प्रशिक्षण और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
4. दलित समुदाय के प्रति भेदभाव को कम करने के लिए सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं।
5. इस मामले में त्वरित जांच और दोषी को कड़ी सजा सुनिश्चित की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगे।
मुजफ्फरपुर की इस घटना ने बिहार में प्रशासनिक विफलताओं को उजागर किया है। बच्ची की मौत केवल एक परिवार की निजी त्रासदी नहीं, बल्कि एक व्यवस्थागत समस्या की ओर संकेत करती है। सरकार को तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने होंगे, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी ताकि हर बच्ची को सुरक्षा और सम्मान मिल सके।