बिहार की राजनीति एक बार फिर चुनावी तापमान से तप रही है, और इस बार केंद्र में है शिक्षा, रोजगार और विकास का मुद्दा। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने मुज़फ्फरपुर की रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि पिछले 20 वर्षों में बिहार को केवल ठहराव और पलायन मिला है। राहुल गांधी ने जनता से सवाल किया—“बताइए, नीतीश कुमार ने बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए क्या किया? क्या आप ऐसा बिहार चाहते हैं जहाँ कुछ न मिले?”
यह सवाल केवल चुनावी मंच से नहीं, बल्कि बिहार की आत्मा से जुड़ा हुआ है। पिछले दो दशकों में नीतीश कुमार ने खुद को ‘अत्यंत पिछड़ा’ कहकर राजनीतिक सहानुभूति तो अर्जित की, लेकिन बिहार के सामाजिक ढांचे में वास्तविक सुधार नहीं ला सके। राज्य अब भी शिक्षा की गुणवत्ता, स्वास्थ्य सुविधाओं और औद्योगिक विकास में पिछड़ा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है, जबकि उच्च शिक्षा में दाखिला दर देश में सबसे नीचे है।
राहुल गांधी ने अपने भाषण में आरोप लगाया कि नीतीश कुमार केवल चेहरा हैं, असली नियंत्रण भाजपा के हाथों में है। उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार की सरकार कुछ लोगों द्वारा चलाई जा रही है जो पिछड़ों और दलितों की आवाज़ दबा रही है।” यह आरोप राजनीतिक तौर पर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बिहार की राजनीति जातिगत समीकरणों पर टिकी है, और राहुल गांधी के इस बयान ने सामाजिक न्याय के विमर्श को फिर से केंद्र में ला दिया है।
उन्होंने संसद में जाति जनगणना की मांग को दोहराते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी इस पर चुप रहे क्योंकि भाजपा सामाजिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। राहुल गांधी का यह बयान न सिर्फ राजनीतिक तर्क था, बल्कि यह बिहार के उस सामाजिक ताने-बाने पर चोट था जहाँ आरक्षण और प्रतिनिधित्व अब भी वोट की धुरी बने हुए हैं।
आर्थिक दृष्टि से भी बिहार की स्थिति चिंताजनक है। उद्योगों की कमी और निवेश के अभाव ने युवाओं को पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। तेजस्वी यादव ने सही कहा कि “हमारा लक्ष्य बिहार को अपराध, भ्रष्टाचार और पलायन से मुक्त बनाना है।” आंकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 40 लाख बिहारवासी रोज़गार की तलाश में अन्य राज्यों में जाते हैं। यह संख्या बताती है कि राज्य सरकार की नीतियाँ किस हद तक असफल रही हैं।
राहुल गांधी ने आर्थिक सवाल को चीन के उदाहरण से जोड़ा। उन्होंने कहा, “मोबाइल, कपड़े, सब कुछ ‘मेड इन चाइना’ है। हम चाहते हैं कि यह सब ‘मेड इन बिहार’ हो ताकि हमारे युवाओं को रोजगार मिले।” यह बात केवल राजनीतिक नारा नहीं बल्कि एक विकास दृष्टिकोण है—जहाँ स्थानीय उत्पादन और स्वावलंबन को प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन इस दिशा में वास्तविक परिवर्तन के लिए केवल वादे नहीं, बल्कि ठोस औद्योगिक नीति, निवेश प्रोत्साहन और कुशलता विकास कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
तेजस्वी यादव ने कहा कि महागठबंधन की सरकार बनने पर 20 दिनों के भीतर हर परिवार को कम से कम एक सरकारी नौकरी देने का कानून लाया जाएगा। यह घोषणा जनता के लिए आकर्षक है, पर यह तभी सार्थक होगी जब प्रशासनिक पारदर्शिता और राजकोषीय क्षमता पर ध्यान दिया जाए। बिहार का राजस्व आधार अभी इतना मजबूत नहीं कि वह इतनी बड़ी योजना को बिना संरचनात्मक सुधार के लागू कर सके।
फिर भी, यह चुनाव इस बात पर तय होगा कि जनता किसे अपने भविष्य की गारंटी मानती है—20 साल की स्थिरता लेकिन ठहराव वाले शासन को या एक नए गठबंधन को जो बदलाव का दावा कर रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यह जोड़ी अगर जनता के दिल में यह भरोसा जगा सके कि वे बिहार के युवाओं के लिए रोज़गार, शिक्षा और सम्मानजनक जीवन ला सकते हैं, तो यह चुनाव राज्य की दिशा बदल सकता है।
बिहार की जंग इस बार सत्ता की नहीं, भरोसे की है। यह चुनाव यह तय करेगा कि क्या बिहार आगे बढ़ेगा या फिर वहीँ खड़ा रहेगा जहाँ बीते दो दशकों से है—उम्मीद और हकीकत के बीच झूलता हुआ।












