बिहार में मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित कई योजनायें चलाई जा रही हैं उन्हीं में से एक है मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य योजना। इसके तहत सातवीं से 12वीं कक्षा तक की प्रत्येक स्कूली लड़कियों को सेनेटरी नैपकिन खरीदने के लिये सालाना पैसे दिये जाते हैं। इस योजना के तहत पहले छात्राओं को 150 रुपये दिये जाते थे, जिसे बढ़ाकर अब अब सालाना 300 रुपये कर दिया गया है। गौरतलब है कि स्वच्छता के प्रति जागरुकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने फरवरी, 2015 में सरकारी स्कूलों में लड़कियों के बीच सेनेटरी नैपकिन के वितरण की घोषणा की गई जिसके बाद लड़कियां आसानी से स्कूल की दिनचर्या को अच्छे ढंग से निभाने लगीं और साथ ही लड़कियों के ड्रॉप आउट दर में भी कमी आई है।
वर्ष 2023 में बक्सर जिले के चौसा प्रखंड में 60 लाख रुपये की लागत से राज्य के पहले ‘मायरा’ जैविक सेनेटरी पैड उत्पादन इकाई की स्थापना की गई है। इसका संचालन जननी जीविका महिला समूह से जुड़ी महिलाएं कर रही हैं। इसके शुरू होने से बक्सर जिले में सेनेटरी पैड की उपलब्धता आसान हुई है। साथ ही इस इकाई से जुड़कर काम करने वाली जीविका दीदियां स्वावलंबी बनकर सफलता की कहानी लिख रही हैं। जीविका दीदियां अपनी मेहनत की बदौलत इस जैविक सेनेटरी पैड यूनिट के उत्पादन क्षमता को लगतार बढ़ा रही हैं। राज्य के इस पहले सैनेटरी पैड यूनिट में 8 मशीनें लगी हैं। इस यूनिट में 18 ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिला है। जीविका दीदियों द्वारा निर्मित इस सेनेटरी पैड की खासियत यह है कि उपयोग के बाद मिट्टी के संपर्क में आने से यह गल कर मिट्टी हो जायेगा। इससे वातावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाये गये जागरूकता अभियान के कारण बिहार की महिलाओं में मेस्ट्रूअल हाइजीन के प्रति जागरुकता काफी बढ़ी है। महिलाओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बिहार के कई सरकारी अस्पतालों में भी सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन लगाई गई है, ताकि इलाज के लिये आने वाली महिलाओं को आसानी से सेनेटरी पैड उपलब्ध हो सके। सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए आनेवाली महिलाओं को मात्र 2 रुपये में सेनेटरी पैड उपलब्ध कराया जा रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार सेनेटरी पैड सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों की सुरक्षा के लिये बनाया गया था। सेनेटरी पैड्स को बनाते समय यह विशेष ध्यान रखा गया था कि यह आसानी से खून को सोख सके। साथ ही एक इस्तेमाल के बाद इसे आसानी से नष्ट किया जा सके। रिपोर्ट के अनुसार इससे पहले कोई भी सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करता था। फ्रांस में जब सैनिकों के लिये इसे बनाया गया तो यहां काम करनेवाली नर्सों ने पीरियड्स के दौरान भी इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। युद्ध में इस्तेमाल किये गये पैड्स के आधार पर वर्ष 1886 में जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी ने ‘लिस्टर्स टॉवल्स‘ और वर्ष 1888 में कॉटेक्स नामक कंपनी ने ‘सेनेटरी टॉवल्स फॉर लेडीज नाम से सेनेटरी पैड बनाना शुरू किया। उस सयम ये पैड इतने महंगे थे कि आम महिलायें इसे नहीं खरीद सकती थीं। लिहाजा अमीर घरों की महिलायें ही इसका इस्तेमाल करती थीं। समय के साथ सेनेटरी नैपकिन के रूप में कई बदलाव हुए और आम महिलाओं के लिये भी यह धीरे-धीरे उपलब्ध होने लगे। आज सेनेटरी पैड्स का इस्तेमाल ग्रामीण महिलायें भी करने लगी हैं। सेनेटरी पैड्स की उपलब्धता बढ़ने से महिलाओं के जीवन शैली में सुधार आया है।
महिलाओं का मासिक धर्म एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। इस दौरान महिलाओं को साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता है अन्यथा संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार ने महिलाओं के लिये सेनेटरी पैड्स की उपलब्धता को सुगम बना दिया है। आज के समय में भी सेनेटरी पैड्स के मामले में समाज में झिझक है। महिलाओं के पीरियड्स को लेकर भी समाज में हीन भावना है। आज भी पीरियड्स के दौरान महिलायें पूजा-पाठ नहीं करती या मंदिरों में नहीं जाती हैं। इसे ध्यान में रखकर सेनेटरी पैड पर पैड मैन फिल्म भी बन चुकी है। इस फिल्म में सेनेटरी पैड के महत्व को बताया गया है।