हरेन्द्र प्रताप की विशेष रिपोर्ट
चित्रकूट, 30 दिसंबर। साल 2025 भारत में भारतीय संस्कृति की जड़ों को मजबूत करने के लिए किये जा रहे प्रयासों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा। लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती और वंदे मातरम् गीत के सृजन की 150 वीं जयंती से जुड़े समारोहों ने भारतीय संस्कृति के महत्व को फिर से रेखांकित किया है। ऐसी स्थिति में भारतीय भाषाओं पर भी ध्यान जाना स्वाभाविक है। आगामी दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस से पहले महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा समिति, भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय भारतीय भाषा परिवार व्याख्यान एवं परिचर्चा ने वर्ष 2025 का अविस्मरणीय ढंग से समापन किया। इसकी गूंज आ रहे नववर्ष 2026 में जनवरी माह में भी विशेष रूप से सुनाई पड़ेगी। जनवरी में जहां दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले में भारतीय भाषाओं का उद्घोष सुनाई देगा, वहीं 10 जनवरी को पूरी दुनिया में भारत की राजभाषा हिन्दी के बढ़ते दायरे का दर्शन होगा।
ग्रामोदय विश्वविद्यालय में संपन्न भारतीय भाषा परिचर्चा ने बीत रहे वर्ष में अपनी भाषाओं को बचाने एवं संवारने के उत्तरदायित्व की याद प्रभावी ढंग से दिलाई। विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर आलोक चौबे ने इस अवसर पर स्मरण कराया कि भारतीय भाषाएं आम आदमी की समझ को विकसित करती हैं, आपसी प्रेम बढ़ाती हैं और लोगों को आपस में जोड़ने का काम करती हैं।
उन्होंने आह्वान किया कि विद्यार्थियों को अपनी मातृभाषा के साथ – साथ एक अन्य भारतीय भाषा का भी अध्ययन करना चाहिए तथा भाषा के नाम पर हुई गलती को लेकर हमें आत्मचिंतन कर इस दिशा में सुधार करना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलगुरु ने कहा कि भारतीय भाषा विद्यार्थियों की प्रगति में सकारात्मक योगदान दें और इसी दृष्टि से इस गौरवशाली उद्देश्य को आत्मसात कर शैक्षणिक गतिविधियों को संचालित करना चाहिए। प्रोफेसर चौबे ने स्पष्ट किया कि मातृभाषा में ही बच्चों की फर्स्ट हैंड अंडरस्टैंडिंग होती है। हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के महत्व को साझा करते हुए उन्होंने जोधपुर आईआई टी में हुए प्रयोग का उदाहरण दिया और बताया कि वहां इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम के द्वितीय वर्ष में ब्रांच चयन में हिंदी भाषा को लेकर एक प्रयोग किया गया, जिसके फलस्वरूप हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों ने अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों से अधिक अंक अर्जित किए।
मुख्य अतिथि प्रोफेसर योगेंद्र प्रताप सिंह, हिंदी एवं भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने कहा कि हम अपनी भारतीय ज्ञान – परंपरा का यदि आवाहन करें तो पाते हैं कि भारतीय भाषा परिवार एकता का परिवार है। संस्कृत शुद्ध वैज्ञानिक भाषा है और भारतीय भाषाओं की जननी के रूप में सर्वमान्य है।
मुख्य वक्ता एवं कला संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर नंदलाल मिश्रा ने कहा कि भाषा से हम विचारों का परस्पर आदान – प्रदान करते हैं। उन्होंने मनोवैज्ञानिक ढंग से भाषा को परिभाषित किया।
इस अवसर पर कार्यक्रम में भारतीय भाषा परिवार को एक करने की दृष्टि से प्रकाशित दो पुस्तकों का विमोचन अतिथियों ने किया।
कार्यक्रम संयोजक और हिंदी विभागाध्यक्ष
प्रोफेसर ललित कुमार सिंह ने कार्यक्रम की पृष्ठभूमि, इसके औचित्य एवं उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय भाषा परिवार भारत की बहुरंगी संस्कृति का जीवंत प्रमाण है। भाषा केवल संप्रेषण का साधन ही नहीं बल्कि हमारी पहचान, इतिहास एवं सांस्कृतिक चेतना का संवाहक भी है। भारतीय भाषा समिति ने नई सोच के साथ भारत को जोड़ने के लिए अनूठी पहल की है।
कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन राजनीति विज्ञान की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नीलम चौरे ने किया।
इस मौके पर प्रोफेसर कपिल देव मिश्रा, प्रोफेसर प्रज्ञा मिश्रा, प्रोफेसर अजय आर. चौरे, प्रोफेसर सुनीता सिंह, प्रोफेसर कमलेश कुमार थापक, प्रोफेसर घनश्याम गुप्ता, प्रोफेसर वाई. के. सिंह, प्रोफेसर त्रिभुवन सिंह एवं डॉ जयप्रकाश तिवारी सहित ग्रामोदय विश्वविद्यालय के शिक्षक, कर्मचारी और छात्र-छात्राओं ने भी सहभागिता की।







