दिल्ली की हवा उस सुबह कुछ अलग थी। राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में जब व्लादिमीर पुतिन का स्वागत हुआ, तो यह दृश्य केवल कूटनीति का औपचारिक मंचन नहीं था—यह दो देशों के बीच दशकों से चले आ रहे विश्वास की पुनर्पुष्टि थी। मोदी की मुस्कान, लंबा हैंडशेक, और फिर दोनों नेताओं का एक ही गाड़ी में साथ बैठकर आगे बढ़ना—यह सब संकेत दे रहा था कि यह रिश्ता केवल दस्तावेज़ों में नहीं, बल्कि राजनीतिक सहजता और व्यक्तिगत विश्वास में भी गहराई से बसा है।
इस मुलाकात का केंद्र परमाणु ऊर्जा रहा, और यह संयोग नहीं है। पुतिन का यह कहना कि छह में से दो रिएक्टर यूनिट ग्रिड से जुड़ चुके हैं और चार निर्माणाधीन हैं, भारत–रूस ऊर्जा सहयोग की ठोस जमीन को उजागर करता है। स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर, फ्लोटिंग न्यूक्लियर प्लांट और औद्योगिक–कृषि उपयोगों पर सहयोग की दिशा में बढ़ना यह बताता है कि ऊर्जा अब केवल बिजली का सवाल नहीं, बल्कि भविष्य की अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा और जलवायु रणनीति का आधार बन चुकी है। मोदी का यह कहना कि परमाणु सहयोग “हमारी साझा स्वच्छ ऊर्जा प्राथमिकताओं को साकार करने में महत्वपूर्ण है,” इस साझेदारी को एक दीर्घकालिक रणनीतिक ढांचे में स्थापित करता है।
लेकिन इस मुलाकात की असली कहानी ऊर्जा से कहीं आगे जाती है। भारत और रूस के बीच माइग्रेशन, मोबिलिटी, पोर्ट्स, शिपिंग, फूड सेफ्टी और हेल्थ पर हुए समझौते यह संकेत देते हैं कि दोनों देश अपने संबंधों को बहुआयामी बना रहे हैं। विशेष रूप से वह ढांचा जो भारतीय श्रमिकों को रूस में काम करने के अवसरों को आसान बनाएगा—यह भारत के लिए रोजगार, कौशल निर्यात और वैश्विक वर्कफोर्स रणनीति का नया अध्याय खोल सकता है। रूस में निर्माण, ऊर्जा, कृषि और तकनीकी क्षेत्रों में बढ़ती मांग भारत के लिए अवसरों का विस्तृत परिदृश्य तैयार करती है।
मोदी द्वारा रूस के नागरिकों के लिए 30-दिवसीय मुफ्त ई-टूरिस्ट वीज़ा और 30-दिवसीय ग्रुप वीज़ा की घोषणा सांस्कृतिक कूटनीति का एक सशक्त संकेत है। भारत और रूस के बीच दशकों से चले आ रहे सांस्कृतिक संबंध—सिनेमा, साहित्य, कला और शिक्षा—अब एक नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं। यह पहल दोनों देशों के लोगों को एक-दूसरे के और करीब लाने का माध्यम बनेगी। आज जब दुनिया ध्रुवीकरण के दौर से गुजर रही है, ऐसे में सांस्कृतिक पुल बनाना किसी भी रणनीतिक साझेदारी को मानवीय आधार देता है।
यूक्रेन युद्ध पर भारत की स्थिति एक बार फिर स्पष्ट रूप से सामने आई। मोदी ने कहा कि भारत ने शुरुआत से ही शांति की वकालत की है और हर प्रयास का स्वागत करता है। यह बयान भारत की विदेश नीति में संतुलन, स्वायत्तता और नैतिकता के तीनों स्तंभों को दर्शाता है। पुतिन का यह कहना कि वे अमेरिका सहित कुछ साझेदारों के साथ शांतिपूर्ण समाधान पर काम कर रहे हैं, यह संकेत देता है कि भारत की कूटनीतिक भूमिका को रूस भी गंभीरता से देखता है। भारत की यह स्थिति उसे वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार शक्ति और संभावित मध्यस्थ के रूप में स्थापित करती है।
राजघाट पर पुतिन द्वारा महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देना और यह लिखना कि गांधी ने “पूरी दुनिया में शांति के लिए अमूल्य योगदान दिया,” यह भारत की नैतिक विरासत के प्रति सम्मान का प्रतीक है। यह दृश्य बताता है कि कूटनीति केवल समझौतों का खेल नहीं, बल्कि स्मृतियों, मूल्यों और प्रतीकों का भी संसार है।
इन सभी घटनाओं को एक साथ देखें तो भारत–रूस संबंधों का एक नया स्वरूप उभरता है—जहाँ ऊर्जा सहयोग भविष्य की अर्थव्यवस्था का आधार बन रहा है, आर्थिक समझौते व्यापार और श्रमिक गतिशीलता को नई दिशा दे रहे हैं, सांस्कृतिक पहल लोगों के बीच विश्वास और निकटता बढ़ा रही है, और वैश्विक शांति प्रयासों में भारत की भूमिका उसे एक विश्वसनीय आवाज के रूप में स्थापित कर रही है।
यह मुलाकात यह संदेश देती है कि साझेदारी तब मजबूत होती है जब वह केवल रणनीति नहीं, बल्कि विश्वास, सम्मान और साझा भविष्य की आकांक्षा पर आधारित हो। भारत और रूस का यह नया अध्याय आने वाले वर्षों में ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक अवसरों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और वैश्विक शांति प्रयासों में अपनी छाप छोड़ता दिखाई देगा।









