भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत उसकी बहुलता, संवाद की परंपरा और सत्ता–विपक्ष के बीच सम्मानजनक संतुलन रही है। लेकिन हाल के दिनों में यह संतुलन लगातार टूटता हुआ दिख रहा है। राहुल गांधी द्वारा लगाया गया आरोप—कि मोदी सरकार विदेशी नेताओं को विपक्ष के नेता से मिलने नहीं देती—सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि उस गहरी बेचैनी का संकेत है जो हमारे लोकतांत्रिक ढाँचे में धीरे-धीरे घर करती जा रही है। यह मुद्दा किसी एक व्यक्ति या पार्टी का नहीं, बल्कि उस राजनीतिक संस्कृति का है जिसने दशकों तक भारत को एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में स्थापित किया।
राहुल गांधी का कहना है कि अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के समय में यह परंपरा निर्विघ्न चलती रही। विदेशी नेता प्रधानमंत्री से मिलने के साथ-साथ विपक्ष के नेता से भी मिलते थे, ताकि भारत के राजनीतिक परिदृश्य की व्यापक समझ उन्हें मिल सके। यह परंपरा इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह दुनिया को यह संदेश देती थी कि भारत में सत्ता बदलती रहती है, लेकिन राष्ट्र की नीति और दृष्टि बहस, संवाद और विविध विचारों से मिलकर बनती है। लेकिन अब, राहुल के अनुसार, सरकार यह सुनिश्चित करती है कि विदेशी नेता उनसे न मिलें—चाहे वे भारत आएँ या वे विदेश जाएँ। यह आरोप सिर्फ एक राजनीतिक शिकायत नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के सिकुड़ते दायरे की ओर इशारा है।
प्रश्न यह है कि क्या सरकार वास्तव में इतनी असुरक्षित है कि वह विपक्ष की आवाज़ को अंतरराष्ट्रीय मंचों से दूर रखना चाहती है? या फिर यह एक सोची-समझी रणनीति है जिसमें सत्ता पक्ष यह तय करना चाहता है कि भारत की ‘आधिकारिक कथा’ वही होगी जो सरकार पेश करेगी? लोकतंत्र में विपक्ष सिर्फ आलोचक नहीं होता, वह राष्ट्र की वैकल्पिक दृष्टि का वाहक होता है। यदि विदेशी नेता सिर्फ सरकार की बात सुनेंगे, तो भारत की राजनीतिक विविधता का प्रतिनिधित्व अधूरा रह जाएगा।
प्रियंका गांधी का यह कहना कि सरकार “अन्य आवाज़ों को उठने नहीं देना चाहती”, इस बहस को और तीखा बनाता है। लोकतंत्र में असहमति कोई खतरा नहीं, बल्कि एक सुरक्षा कवच है। लेकिन यदि असहमति को ही खतरा मान लिया जाए, तो लोकतंत्र का मूल ढाँचा कमजोर होने लगता है। यह चिंता सिर्फ कांग्रेस की नहीं, बल्कि उन सभी नागरिकों की होनी चाहिए जो मानते हैं कि भारत की ताकत उसकी बहुलता में है।
शशि थरूर का यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि सरकार को इस मुद्दे पर जवाब देना चाहिए। क्योंकि यह सिर्फ प्रोटोकॉल का मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक परिपक्वता का सवाल है। जब विदेशी नेता भारत आते हैं, तो वे सिर्फ सरकार से नहीं, बल्कि भारत से मिलते हैं—और भारत सरकार नहीं, बल्कि 140 करोड़ लोगों का देश है, जिसमें सत्ता और विपक्ष दोनों शामिल हैं। यदि सरकार यह तय करने लगे कि कौन भारत का प्रतिनिधित्व करेगा और कौन नहीं, तो यह लोकतांत्रिक संतुलन को कमजोर करता है।
यह बहस ऐसे समय में उठी है जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ रहे हैं। भारत–रूस संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरे रहे हैं—1955 की बुल्गानिन–ख्रुश्चेव यात्रा से लेकर आज तक। यह संबंध सिर्फ सरकारों के बीच नहीं, बल्कि राष्ट्रों के बीच बने हैं। ऐसे में विपक्ष को इस संवाद से दूर रखना न केवल परंपरा के खिलाफ है, बल्कि उस व्यापक राष्ट्रीय हित के भी विपरीत है जो बहु-आयामी संवाद से ही मजबूत होता है।
यह भी सच है कि वैश्विक राजनीति आज पहले से कहीं अधिक जटिल है। अमेरिका के दबाव, रूस–यूक्रेन युद्ध, ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा सहयोग—इन सबके बीच भारत को संतुलन साधना है। लेकिन संतुलन साधने का अर्थ यह नहीं कि आंतरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर कर दिया जाए। बल्कि ऐसे समय में तो और अधिक खुलापन, अधिक संवाद और अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता होती है।
यदि सरकार वास्तव में आत्मविश्वासी है, तो उसे विपक्ष की उपस्थिति से डरने की आवश्यकता नहीं। बल्कि यह दिखाना चाहिए कि भारत एक ऐसा लोकतंत्र है जहाँ सत्ता और विपक्ष दोनों मिलकर राष्ट्र की छवि को मजबूत करते हैं। लेकिन यदि सरकार यह मानती है कि विपक्ष की आवाज़ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसके लिए चुनौती बन सकती है, तो यह लोकतंत्र की नहीं, सत्ता की असुरक्षा का संकेत है।
अंततः सवाल यह नहीं कि राहुल गांधी से कौन मिला या नहीं मिला। सवाल यह है कि क्या भारत अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं को बचाए रखेगा या उन्हें राजनीतिक सुविधा के अनुसार बदल देगा। लोकतंत्र की खूबसूरती उसकी विविधता में है—और यदि विविधता को ही सीमित कर दिया जाए, तो लोकतंत्र सिर्फ एक औपचारिक ढाँचा बनकर रह जाएगा।
भारत की राजनीतिक संस्कृति हमेशा संवाद, बहस और असहमति के सम्मान पर आधारित रही है। यदि यह संस्कृति कमजोर होती है, तो नुकसान किसी एक दल का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र का होगा। इसलिए यह बहस सिर्फ आज की नहीं, बल्कि आने वाले समय में भारत के लोकतांत्रिक भविष्य की दिशा तय करने वाली है।










