“मेक इंडिया ग्रेट अगेन” सिर्फ़ नारा बनकर रह गया? चीन पर बढ़ती निर्भरता, MSME की बदहाली और किसानों की हालत के बीच आत्मनिर्भरता के दावों की पड़ताल करता है यह लेख। पढ़ें आंकड़ों के साथ सच्चाई।
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ की शुरुआत करते हुए देश को यह भरोसा दिलाया था कि भारत अब न केवल वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनेगा, बल्कि आत्मनिर्भरता की ओर तेज़ी से बढ़ेगा। समय के साथ यह नारा ‘आत्मनिर्भर भारत’ और हाल में ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ (MIGA) में तब्दील हुआ — हर चुनावी मंच से जनता को यह यक़ीन दिलाया गया कि भारत अब केवल एक बाज़ार नहीं, बल्कि दुनिया का उत्पादन केंद्र बनेगा।
लेकिन 2025 में खड़े होकर जब हम पीछे देखते हैं, तो आंकड़े किसी और ही सच्चाई की ओर इशारा करते हैं। चीन से आयात दोगुना से भी ज्यादा हो चुका है, जबकि निर्यात लगभग ठहर गया है। सवाल यह उठता है — क्या ‘मेक इन इंडिया’ सिर्फ़ एक चुनावी नारा था?
चीन पर बढ़ती निर्भरता: आत्मनिर्भरता पर गहरा सवाल
2014 में भारत ने चीन से $58.23 अरब का आयात किया था और केवल $13.43 अरब का निर्यात, जिससे व्यापार घाटा $44.8 अरब रहा। 2024 में यही आयात $126.96 अरब तक पहुँच गया, जबकि निर्यात मात्र $14.9 अरब हुआ — यानि घाटा $112.1 अरब। रुपए में बात करें तो भारत हर साल चीन को ₹7 लाख करोड़ से ज़्यादा दे रहा है और बदले में केवल ₹1.42 लाख करोड़ कमा रहा है।
यह खाई केवल संख्या नहीं, बल्कि एक सोच को दर्शाती है — आत्मनिर्भर भारत का आदर्श आज भी चीन के इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, रसायन और दवाओं पर आधारित है। मोबाइल फ़ोन भले ही भारत में असेंबल हो रहे हैं, लेकिन चिप, बैटरी, स्क्रीन और प्रोसेसर आज भी चीन से आते हैं।
वैश्विक व्यापार विशेषज्ञ अजय श्रीवास्तव कहते हैं, “हम निर्माण नहीं कर रहे, सिर्फ असेंबल कर रहे हैं। यही कारण है कि हमारी आत्मनिर्भरता दिखावटी और सतही बन कर रह गई है।”
विनिर्माण और MSME: चुनावी वादों की हकीकत
‘मेक इन इंडिया’ का लक्ष्य था कि विनिर्माण को GDP का 25% हिस्सा बनाया जाए और 10 करोड़ नौकरियाँ सृजित हों। 2025 तक न तो यह लक्ष्य पूरा हुआ और न ही इस दिशा में ठोस प्रगति। वर्तमान में विनिर्माण का हिस्सा केवल 17.7% है और MSME क्षेत्र आज भी वित्तीय कठिनाइयों, बेरोज़गारी और बाजार की असमानताओं से जूझ रहा है।
GST और COVID-19 की मार के बाद MSME क्षेत्र अब तक उभर नहीं पाया है। CII की रिपोर्ट के अनुसार, 2024–25 में 30% से अधिक MSMEs 50% क्षमता से भी कम पर काम कर रहे हैं और हर पाँच में से एक बंद होने की कगार पर है।
विनिर्माण क्षेत्र पर टिप्पणी करते हुए अर्थशास्त्री आर. नागराज कहते हैं, “सरकार ने मोबाइल और रक्षा जैसे पूंजी-प्रधान क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है, लेकिन रोज़गार देने वाले श्रमिक-प्रधान MSME को नीति-निर्माण में हाशिए पर रखा गया है।”
कृषि: आत्मनिर्भरता के बाहर खड़ा भारत का किसान
भारत की 42% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है, जो GDP में लगभग 16% योगदान देती है। इसके बावजूद किसान आज भी संकट में हैं। 2025 की पहली तिमाही में केवल मराठवाड़ा क्षेत्र में 269 किसानों ने आत्महत्या की — जो पिछले साल से 32% अधिक है।
सरकार ने कृषि के लिए ₹1.7 लाख करोड़ की बजट घोषणा की, लेकिन ज़मीनी हालात नहीं बदले। सिंचाई कवरेज 55% से नीचे है, आयातित खादों की महँगाई बढ़ती जा रही है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी किसानों को नहीं मिल पा रहा।
स्वाभिमानी किसान संघ के नेता राजू शेट्टी कहते हैं, “हम वहीं के वहीं हैं। आत्मनिर्भरता का प्रचार मंच पर ज़ोरदार है, लेकिन खेत में किसान आज भी कर्ज़ और हताशा में डूबा हुआ है।”
व्यापार घाटा देश की आंतरिक असंतुलन की सबसे सीधी तस्वीर है। 2014 में व्यापार घाटा $141.82 अरब था, जो 2025 में $261.1 अरब हो गया। यह दिखाता है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब भी खपत-आधारित है, न कि उत्पादन-आधारित।
2025 में भारत के प्रमुख व्यापारिक आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं:
• चीन: आयात $113.45 अरब, निर्यात $14.25 अरब → घाटा $99.2 अरब
• अमेरिका: आयात $45.33 अरब, निर्यात $86.51 अरब → अधिशेष $41.18 अरब
• UAE: आयात $63.42 अरब, निर्यात $36.64 अरब → घाटा $26.78 अरब
• रूस: आयात $51.30 अरब, निर्यात $4.20 अरब → घाटा $47.10 अरब
यह स्पष्ट है कि भारत केवल अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष में है, बाकी सभी बड़े देशों से आयात अधिक है।
नारे बनाम ज़मीनी सच्चाई
प्रधानमंत्री मोदी ने 2020 में कहा था — “स्थानीय उत्पादन, स्थानीय आपूर्ति और स्थानीय बाज़ार अब राष्ट्र निर्माण की रीढ़ होंगे।” 2024 में ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ के शुभारंभ पर उन्होंने कहा — “भारत केवल दुनिया का बाज़ार नहीं, बल्कि उत्पादन केंद्र बनेगा।”
लेकिन क्या यह सपना हकीकत में बदला? क्या भारत ने वैश्विक उत्पादन में अपनी जगह बनाई? आंकड़े कहते हैं — नहीं।
‘मेक इन इंडिया’, ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ जैसे नारों ने जनमानस में आशा जगाई थी। लेकिन 10 वर्षों में यह स्पष्ट हो चुका है कि बिना ठोस नीति, बुनियादी ढांचे, और कृषि व MSME को केंद्र में रखे, यह नारे सिर्फ़ सियासी मंचों तक ही सीमित रह जाते हैं।
भारत को अब नारे नहीं, नीति चाहिए। ऐसा विकास चाहिए जो सिर्फ GDP नहीं, बल्कि गाँव, खेत, और कारीगर को भी आगे बढ़ाए।