अगस्त 2025: उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर पुराने दुश्मनों के संभावित आमने-सामने की ओर बढ़ रही है। कभी मऊ की राजनीति में बेताज बादशाह रहे मुख्तार अंसारी की विरासत अब टूटती-बिखरती नज़र आ रही है। उनके बड़े बेटे अब्बास अंसारी पहले ही जेल में बंद हैं और अब छोटे बेटे उमर अंसारी की गिरफ्तारी ने अंसारी खानदान के सियासी भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
रविवार की रात, लखनऊ के वीआईपी इलाके दारुलशफा स्थित विधायक निवास से पुलिस ने उमर अंसारी को गिरफ्तार कर लिया। आरोप है कि उन्होंने एक अदालती याचिका में अपनी मां अफसा अंसारी के फर्जी हस्ताक्षर किए थे। यह याचिका गैंगस्टर एक्ट के तहत जब्त की गई संपत्ति को छुड़वाने के लिए कोर्ट में दायर की गई थी। पुलिस का दावा है कि इस मामले में उमर ने फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर न्यायालय को गुमराह करने की कोशिश की।
पहली बार, उमर पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की बजाय भारत की नई न्याय संहिता (BNS) की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है—जिसमें धारा 319(2), 318(4), 338, 336(3) और 340(2) शामिल हैं। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इन धाराओं में तुरंत जमानत मिलना कठिन है और दोष साबित होने पर पांच साल तक की सजा संभव है।
अंसारी खानदान पर संकट और राजनीतिक खालीपन
उमर की गिरफ्तारी से पहले ही परिवार पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। मुख्तार अंसारी की पत्नी अफसा अंसारी फरार हैं और पुलिस ने उनके ऊपर ₹50,000 का इनाम घोषित कर रखा है। वहीं अब्बास अंसारी को दो साल की सजा मिल चुकी है, जिससे उनकी विधानसभा सदस्यता भी रद्द हो चुकी है।
ऐसे में मऊ की खाली हुई सीट के लिए उमर अंसारी को प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा थी। लेकिन गिरफ्तारी ने अंसारी परिवार की इस योजना को ध्वस्त कर दिया है। सवाल उठ रहा है कि क्या पूर्वांचल की राजनीति में दशकों तक दबदबा रखने वाला यह राजनीतिक परिवार अब पूरी तरह हाशिए पर चला जाएगा?
बृजेश सिंह की संभावित वापसी
मुख्तार अंसारी के चिर-प्रतिद्वंद्वी रहे बृजेश सिंह अब मऊ में अपनी सियासी वापसी की तैयारी में दिख रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि वे उपचुनाव में प्रत्याशी बन सकते हैं। सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने सार्वजनिक मंच से बृजेश सिंह के साथ अच्छे संबंधों की बात भी कही है, जिससे अटकलों को और बल मिला है।
मऊ की सदर सीट एक मुस्लिम बहुल इलाका है, जहां से अब तक भारतीय जनता पार्टी ने कभी जीत दर्ज नहीं की है। लेकिन यदि सुभासपा को यह सीट मिलती है और बृजेश सिंह मैदान में उतरते हैं, तो मुकाबला बेहद दिलचस्प हो सकता है—जिसमें सियासत, दुश्मनी और रणनीति तीनों का मिश्रण देखने को मिलेगा।
नई राजनीति, नया मऊ
मुख्तार अंसारी के निधन, अब्बास की अयोग्यता और उमर की गिरफ्तारी ने उस राजनीतिक विरासत को धुंधला कर दिया है, जिसने मऊ की राजनीति को वर्षों तक प्रभावित किया। अब उस विरासत की जगह लेने के लिए नए चेहरे और नए समीकरण तैयार हो रहे हैं।
बृजेश सिंह की संभावित एंट्री इस बदलाव की शुरुआत हो सकती है, जो केवल एक उपचुनाव नहीं बल्कि पूर्वांचल की सियासत में नई बिसात बिछाने का संकेत भी हो सकता है। मऊ की जनता एक बार फिर दो ध्रुवों के बीच फंसी दिख रही है—जहां अतीत का अपराध और वर्तमान की राजनीति मिलकर भविष्य की दिशा तय करेंगे।