अमित पांडेय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने 23 मिनट लंबे संबोधन में जहां ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के लिए देश की सेना और अर्धसैनिक बलों की प्रशंसा की, वहीं अमेरिका द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच कराई गई कथित सीज़फायर डील पर पूरी तरह चुप्पी साध ली। मोदी ने साफ़ तौर पर कहा कि जब तक पाकिस्तान आतंक और आतंकवादियों को समर्थन देता रहेगा, तब तक उससे कोई बातचीत नहीं होगी, लेकिन अमेरिका के दावे पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की।
प्रधानमंत्री का यह संबोधन सत्तारूढ़ दल की ओर से मीडिया में चलाए जा रहे बड़े पैमाने के ‘नैरेटिव बिल्डिंग’ अभियान का हिस्सा माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य सरकार की सकारात्मक छवि को बढ़ावा देना है।
हिंदी में दिए गए अपने भाषण में मोदी ने अमेरिका के उस बयान को भी खारिज करने की कोशिश की जिसमें यह दावा किया गया था कि भारत और पाकिस्तान किसी तटस्थ स्थान पर बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं। पीएम ने दो टूक कहा, “आतंक और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते, खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।”
उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का पूरा ब्यौरा पेश किया और बताया कि कैसे भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान की सैन्य चौकियों और आतंकी ठिकानों को सफलतापूर्वक ध्वस्त किया। यह स्पष्टीकरण विपक्ष के उस आरोप को खारिज करने का प्रयास भी माना गया कि भारत ने पाकिस्तान से बातचीत के लिए सहमति दे दी है।
हालांकि, प्रधानमंत्री ने ट्रंप के उस दावे का कोई खंडन नहीं किया जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि उनकी मध्यस्थता से ही भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात को टाला गया और न्यूक्लियर संघर्ष से दुनिया को बचाया गया।
मोदी की चुप्पी इसलिए भी राजनीतिक रूप से असहज मानी जा रही है क्योंकि एक अहम अमेरिका-भारत व्यापार समझौता अधर में लटका हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार, मोदी फिलहाल ट्रंप से सीधा टकराव मोल नहीं लेना चाहते। इसके बावजूद देश में राष्ट्रवाद के बढ़ते माहौल और सत्ताधारी दल की ताकत के प्रदर्शन की ज़रूरत को देखते हुए, सरकार की छवि निर्माण टीम पूरी ताकत से यह बताने में लगी है कि भारत वाशिंगटन के निर्देशों पर नहीं चलता।
भले ही मोदी और ट्रंप दोनों ही मजबूत इगो वाले नेता माने जाते हैं, लेकिन अभी तक मोदी ने इस पूरे घटनाक्रम पर एक शब्द भी नहीं कहा है। सूत्रों का कहना है कि भारत वाशिंगटन को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकता क्योंकि इसके पीछे कई रणनीतिक और कारोबारी हित, विशेष रूप से अडानी समूह से जुड़े मुद्दे भी जुड़े हुए हैं।
विपक्ष के लिए ट्रंप की टिप्पणी कोई साधारण राजनयिक चूक नहीं है, बल्कि भारत की संप्रभुता पर सीधा सवाल है। विपक्ष मांग कर रहा है कि इस पूरे मामले पर प्रधानमंत्री संसद में स्पष्टीकरण दें।
इससे पहले मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अब आतंक के खिलाफ भारत की स्थायी नीति बन चुकी है। उन्होंने तीनों सेनाओं, खुफिया एजेंसियों और वैज्ञानिकों की सराहना की जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ सटीक और प्रभावी कार्रवाई को अंजाम दिया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत ने केवल अपनी जवाबी कार्रवाई फिलहाल रोकी है, लेकिन पाकिस्तान की हर हरकत पर हमारी नजर बनी हुई है। प्रधानमंत्री ने कहा, “हमने केवल अपनी सैन्य प्रतिक्रिया को अस्थायी रूप से रोका है। आने वाले दिनों में पाकिस्तान की नीयत और नीति की परख की जाएगी।”
प्रधानमंत्री के इस संबोधन के बावजूद, विपक्ष का हमला रुकने वाला नहीं है। ट्रंप के कथित सीज़फायर दावे पर उनकी चुप्पी को लेकर विपक्ष उन्हें लगातार घेरता रहेगा और यह मुद्दा आने वाले समय में और गर्मा सकता है।
(लेखक, जो कि समाचीन विषयों के गहन अध्येता, युवा चिंतक व राष्ट्रीय-आंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक हैं, रणनीति, रक्षा और तकनीकी नीतियों पर विशेष पकड़ रखते हैं।)