मंजरी की खोजी रिपोर्ट
नई दिल्ली, 10 सितंबर। भारत सरकार के एम एस एम ई मंत्रालय ने एक दिलचस्प पत्रिका प्रकाशित की है। इसका नाम है - एम एस एम ई पत्रिका। यह पत्रिका मासिक है या त्रैमासिक अथवा वार्षिक? यह बहुत खोजबीन के बाद भी पता नहीं चल रहा है लेकिन जो अब तक पता चला है, वह पत्रकारिता की दुनिया का सनसनीखेज तथ्य बन कर सामने आया है।
यह स्पष्ट है कि इस पत्रिका को प्रकाशित करने के क्रम में नियमों को ताक पर रख दिया गया है और पत्रिका के विमोचन के दौरान राष्ट्रपति को पहले तथा बाद में और पत्रिका के लक्षित समूह को गुमराह किया गया है। ऐसा जानबूझकर किया गया है या पत्रिका से जुड़े भारतीय आर्थिक सेवा के संबंधित अधिकारियों ( संपादक एवं उप संपादक ) की अज्ञानता से ऐसा हुआ है, यह अभी शोध का विषय है।
सूत्रों के अनुसार, सरकारी कार्यालय से 26 जून, 2025 को जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि ” राष्ट्रपति एम एस एम ई पत्रिका का विमोचन करेंगी, जो एक इन-हाउस पत्रिका है जो एम एस एम ई क्षेत्र से संबंधित मुद्दों और अवसरों पर उपयोगी जानकारी और समझ प्रदान करेगी और एम एस एम ई के बीच अनुभव साझा करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करेगी “।
इससे इस बात की पुष्टि होती है कि घरेलू पत्रिका का ही विमोचन राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के कर कमलों से कराया गया। लेकिन प्रकाशित एवं मुद्रित हो चुकी पत्रिका से जुड़े तथ्य कुछ और ही कहानी कह रहे हैं ! सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के विकास आयुक्त कार्यालय को पत्रिका में विकास आयुक्त आयोग बना दिया गया है।
भारत सरकार का यह संगठन वास्तव में कार्यालय से आयोग कब बन गया, यह रिकार्ड पर बताने के लिए कोई तैयार नहीं है ! फिर दूसरा तथ्य यह है कि पत्रिका में मूल्य मुद्रित है सौ रुपए ! लेकिन इसमें कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि सौ रुपए कहां जमा करना है जो वित्तीय अनियमितता का आधार तैयार कर रहा है। जानकार बताते हैं कि घरेलू पत्रिका का कोई मूल्य नहीं होता है और वह आंतरिक वितरण के लिए होता है। ऐसी स्थिति में इस पत्रिका की एक प्रति को सौ रुपए में क्यों बेचा जा रहा है और विमोचन के पूर्व यह बात राष्ट्रपति कार्यालय को क्यों नहीं बतायी गई और बेवजह इस पूरे प्रकरण में राष्ट्रपति के पद की गरिमा पर क्यों आघात किया गया ?
कथित घरेलू पत्रिका अचानक बन गई समूल्य प्रकाशन !
एम एस एम ई विकास संगठन की इस पत्रिका में मुद्रित अन्य तथ्य और भी विवादास्पद हैं ! इसमें पत्रिका का आर एन आई नंबर मुद्रित है जो किसी घरेलू पत्रिका में आम तौर पर नहीं होता है। हां, यदि सरकार ने प्रकाशन एवं मुद्रण के नियम में कोई संशोधन कर दिया है तो फिर इस पत्रकार को इसकी कोई जानकारी नहीं है। लेकिन पत्रिका में मुद्रित अगला तथ्य और भी चौंकाने वाला है। इसमें मुद्रित आर एन आई नंबर से पता चलता है कि यह पत्रिका 1976 से पंजीकृत है यानि यह एक पुरानी पत्रिका है ! इसका मतलब यह है कि यह तथ्य भी राष्ट्रपति कार्यालय से छुपाया गया और राष्ट्रपति से एक पुरानी पत्रिका का विमोचन कराया गया !
यह पत्रिका सरकारी लापरवाही की अद्भुत मिसाल है ! भारत सरकार में इन कामों के लिए संघ लोक सेवा आयोग से चयनित भारतीय सूचना सेवा की एक सुगठित व्यवस्था है जिससे इस पत्रिका के संपादन एवं प्रकाशन के दौरान कोई ज्ञान नहीं लिया गया प्रतीत होता है। यही कारण है कि इसमें सह संपादक को उप संपादक से कनिष्ठ दर्शाया गया है जबकि उप संपादक पूरी संपादकीय टीम में सबसे जूनियर होता है !
प्रधानमंत्री पद की किरकिरी !
सूत्रों के अनुसार, पत्रिका के आंतरिक कवर पृष्ठ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पुरानी तस्वीर में नया कैप्शन लगाने एवं उसमें तथ्यात्मक गलती करने के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है ! पत्रिका के अनुसार, यह तस्वीर 20 सितंबर, 2025 की है जबकि 2025 का 20 सितंबर अभी भी दस दिन दूर है ! यह अकल्पनीय एवं अक्षम्य लापरवाही है जिससे प्रधानमंत्री पद की किरकिरी हो रही है !