अमित पांडे: संपादक
नेशनल हेराल्ड मामला भारतीय राजनीति में लगभग एक दशक से अधिक समय से विवाद और टकराव का केंद्र बना हुआ है। यह केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच उस राजनीतिक संघर्ष का प्रतीक है जिसमें आरोप, प्रत्यारोप, जांच एजेंसियों की भूमिका और न्यायिक प्रक्रियाओं की व्याख्या—सब कुछ दांव पर लगा दिखाई देता है। हालिया घटनाक्रम ने एक बार फिर इस बहस को तेज कर दिया है कि क्या यह मामला वास्तविक वित्तीय अनियमितताओं की जांच है या फिर राजनीतिक प्रतिशोध का औजार।
दिल्ली की एक अदालत द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ED) की अभियोजन शिकायत पर संज्ञान लेने से इनकार करने के बाद कांग्रेस ने इसे केंद्र सरकार की “हार” और “सत्य की जीत” बताया। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के लिए “चेहरे पर तमाचा” कहा। दूसरी ओर, भाजपा ने इसे “तकनीकी आधार पर दिया गया आदेश” बताते हुए कांग्रेस के दावों को भ्रामक करार दिया। भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने गांधी परिवार को “सबसे भ्रष्ट राजनीतिक परिवार” बताते हुए कहा कि यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है और जांच एजेंसियां आगे भी कार्रवाई जारी रखेंगी।
नेशनल हेराल्ड अख़बार की स्थापना 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने की थी।
इसे एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) संचालित करता था। 2008 के बाद आर्थिक संकट के कारण AJL पर लगभग 90 करोड़ रुपये का कर्ज था, जिसे कांग्रेस पार्टी ने चुकाया। 2010 में Young Indian Pvt Ltd नामक कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 76% हिस्सेदारी थी। कांग्रेस ने AJL का कर्ज Young Indian को ट्रांसफर किया और बदले में AJL के 99% शेयर Young Indian को मिल गए। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 2012 में आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया “धोखाधड़ी” थी और Young Indian ने AJL की संपत्तियों पर अवैध कब्जा किया।
स्वामी की निजी शिकायत के आधार पर अदालत ने संज्ञान लिया और मामला आगे बढ़ा। बाद में ED ने भी मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया, लेकिन यह FIR पर आधारित नहीं था बल्कि स्वामी की शिकायत पर आधारित था। यही बिंदु हालिया अदालत के आदेश का केंद्र रहा—अदालत ने कहा कि PMLA के तहत कार्रवाई तभी संभव है जब कोई “निर्धारित अपराध” (scheduled offence) FIR के रूप में दर्ज हो। चूंकि मूल शिकायत निजी थी, इसलिए ED की अभियोजन शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता।
कांग्रेस का आरोप है कि यह पूरा मामला भाजपा की “वेंडेटा पॉलिटिक्स” का हिस्सा है। पार्टी का कहना है कि गांधी परिवार को निशाना बनाकर भाजपा विपक्ष को कमजोर करना चाहती है। कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि Young Indian एक “नॉन-प्रॉफिट कंपनी” है, जिसने AJL की संपत्तियों से कोई व्यावसायिक लाभ नहीं कमाया। उनका कहना है कि यह मामला केवल राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है।
भाजपा का दावा बिल्कुल उलट है। पार्टी का कहना है कि लगभग 2,000 करोड़ रुपये की संपत्तियों को “कागजी लेन-देन” के जरिए Young Indian को ट्रांसफर किया गया और यह “स्पष्ट वित्तीय अनियमितता” है। भाजपा नेताओं का कहना है कि अदालत का आदेश “क्लीन चिट” नहीं है, बल्कि केवल प्रक्रिया संबंधी टिप्पणी है, और अब जब दिल्ली पुलिस की EOW ने FIR दर्ज कर ली है, तो ED अपनी कार्रवाई नए आधार पर जारी रख सकती है।
इस मामले ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है—क्या जांच एजेंसियां राजनीतिक प्रभाव से मुक्त हैं? विपक्ष का आरोप है कि ED और CBI का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए किया जा रहा है। भाजपा का कहना है कि कानून अपना काम कर रहा है और भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई होना जरूरी है।
अदालत का हालिया आदेश तकनीकी रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह PMLA की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। लेकिन इससे राजनीतिक विवाद खत्म नहीं हुआ, बल्कि और तेज हो गया है। भाजपा अब उच्च अदालत में जाने की तैयारी में है और संकेत मिल रहे हैं कि ED अदालत के आदेश पर स्टे लेने की कोशिश करेगी ताकि जब्त की गई संपत्तियों को वापस न करना पड़े।
नेशनल हेराल्ड केस भारतीय राजनीति में उस गहरे अविश्वास का प्रतीक बन चुका है जो सत्ता और विपक्ष के बीच मौजूद है। कांग्रेस इसे प्रतिशोध मानती है, भाजपा इसे भ्रष्टाचार का मामला बताती है। अदालत का आदेश तकनीकी है, लेकिन राजनीतिक व्याख्याएं दोनों तरफ से तीखी हैं। इतिहास, कानून, राजनीति और संस्थागत विश्वसनीयता—सब इस मामले में उलझे हुए हैं।
एक बात स्पष्ट है: यह मामला न तो कानूनी रूप से खत्म हुआ है और न ही राजनीतिक रूप से। आने वाले महीनों में यह विवाद और गहराएगा, और भारतीय राजनीति में इसका प्रभाव लंबे समय तक महसूस किया जाएगा।






