लेखक: श्लोक ठाकुर
संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर 2025 से शुरू हो गया है, जो 19 दिसंबर तक चलेगा। सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को सीधा लेकिन साफ संदेश दिया—“यहां ड्रामा नहीं, डिलीवरी होनी चाहिए। नारे नहीं, नीति पर बात होनी चाहिए और वह आपकी नीयत में दिखनी चाहिए।” उनका साफ कहना था कि संसद को देश के विकास और नीतिगत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी और हंगामे पर।
सत्र शुरू हुआ और वही हुआ जो विपक्ष की आदत बन गई है। लोकसभा में SIR को लेकर खूब बवाल हुआ और सदन एक दिन के लिए स्थगित कर दी गई। अब आशंका है कि विपक्ष संसद में लगातार व्यवधान खड़ा करेगा, क्योंकि विपक्ष अपनी पुरानी परिपाटी पर चल रहा है। पिछले सत्र में जिस तरीके से SIR का मुद्दा लेकर पूरा सदन वॉशआउट कर दिया गया था, उसी तरह का असर इस सत्र में भी देखने को मिल रहा है।
संसद में हंगामा और कार्यवाही रुकना दुनिया भर की संसदों में होता है, लेकिन लगातार संसद में गतिरोध पैदा करना और पहले बैठकों में सहमति बनाने के बाद भी समस्याएं खड़ी करना भारत के विपक्ष का आचरण बन गया है। विपक्ष का यह पैटर्न बहुत पुराना है। सर्वदलीय बैठक में सहयोग की बात कहने के बाद भी विपक्ष संसद की कार्यवाही को बाधित करने की पटकथा पहले ही लिख चुका होता है।
विपक्ष ने पिछले मानसून सत्र में बिहार में चुनाव आयोग की प्रक्रिया, ऑपरेशन सिंदूर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान को मुद्दा बनाकर गतिरोध जारी रखा था। जुलाई–अगस्त 2024 के मानसून सत्र में लोकसभा सिर्फ 29% और राज्यसभा मात्र 34% समय ही चल सकी। 2024 के शीतकालीन सत्र में उत्पादकता गिरकर लोकसभा 52% और राज्यसभा 39% रह गई। 18वीं लोकसभा के मानसून सत्र में कुल 419 सवाल शामिल किए गए थे, लेकिन लगातार विपक्ष के हंगामे के बीच सिर्फ 55 सवालों का ही जवाब दिया जा सका।
बजट सत्र 2023 को बर्बाद करने के लिए कांग्रेस और विपक्ष ने अडानी के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट को मुद्दा बनाया और पूरा सत्र बर्बाद कर दिया। 2023 के शीत सत्र से पहले एप्पल फोन की नोटिफिकेशन पर विपक्ष ने बवाल मचाया था, लेकिन एप्पल की सफाई ने विपक्ष की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
2021 के मानसून सत्र से पहले पेगासस स्पाइवेयर की स्टोरी को लेकर बवाल मचाया गया और दावा किया गया कि सरकार स्नूपिंग में लिप्त है। यह कहानी बाद में झूठी निकली, लेकिन संसद का सत्र बर्बाद हो गया।
2021 में राहुल गांधी ने राफेल विमान खरीद में कथित घोटाले का मामला उठाया। विदेशी मीडिया में कुछ रिपोर्ट आने के बाद यह मुद्दा संसद में उछाला गया। इसको लेकर संसद सत्र हंगामे से भर गया। राफेल मामले में हवा-हवाई दावे न संसद में टिक पाए और न ही सुप्रीम कोर्ट में, लेकिन संसद का समय बर्बाद होता गया।
एक अनुमान के मुताबिक संसद का एक मिनट चलाने पर लगभग 2.5 लाख रुपये का खर्च होता है। इसमें सांसदों की तनख्वाह, बिजली-पानी के बिल समेत अन्य खर्च शामिल होते हैं। यदि आज भी प्रति मिनट 2.5 लाख रुपये का खर्च माना जाए तो इस शीतकालीन सत्र पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च होंगे, जो जनता का पैसा है।
जहां विपक्ष लगातार ड्रामा करता रहा, वहीं मोदी सरकार ने इतने व्यवधानों के बावजूद डिलीवरी पर ध्यान दिया है। मोदी सरकार के 11 वर्षों में संसद में कई बड़े बदलाव हुए हैं। रेल बजट और आम बजट को मिला दिया गया, नया संसद भवन बना और ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023’ पारित हुआ। सरकार ने कई पुराने कानूनों को हटाया और संसद को कागज रहित बनाने पर भी जोर दिया।
मोदी सरकार ने अब तक 421 बिल पास किए हैं और 1576 पुराने व निरर्थक कानूनों को निरस्त किया गया है।
19 दिसंबर तक चलने वाले इस शीतकालीन सत्र में विधायी कार्यों के तहत कुल 13 बिल सूचीबद्ध हैं, जिनमें परमाणु ऊर्जा विधेयक, उच्च शिक्षा आयोग, राष्ट्रीय राजमार्ग संशोधन विधेयक, कॉर्पोरेट नियम संशोधन विधेयक, सिक्योरिटीज मार्केट्स कोड, मणिपुर GST संशोधन, दिवालियापन संहिता संशोधन, आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन विधेयक, बीमा नियम संशोधन विधेयक, केंद्रीय उत्पाद शुल्क संशोधन, हेल्थ सिक्योरिटी और नेशनल सिक्योरिटी सेस तथा जन विश्वास संशोधन विधेयक शामिल हैं।
लोकतंत्र में विपक्ष की असली ताकत उसकी रचनात्मकता, तर्क और जनता की वास्तविक आवाज़ उठाने की क्षमता में होती है, लेकिन जब हर मुद्दे पर हंगामा किया जाए और हर सत्र को लड़ाई का मैदान बना दिया जाए, तो यह लोकतांत्रिक संस्कृति को कमजोर करता है। विपक्ष का काम सरकार को जवाबदेह बनाना है, न कि सदन को बंधक बनाना।
आज स्थिति यह है कि संसद को एक रंगमंच बना दिया गया है, जहां ढेर सारे किरदार उतार दिए जाते हैं। संसद में हंगामा खूब होता है, लेकिन जिस काम के लिए संसद बुलाई जाती है, वह देशहित का कार्य अटक जाता है। जनप्रतिनिधि नीति बनाने और अपने क्षेत्र की आवाज़ उठाने के लिए चुनकर आते हैं, लेकिन चर्चा की जगह विपक्ष सिर्फ ड्रामा करता नजर आ रहा है। अब संसद का हर सत्र हंगामे के लिए जाना जाने लगा है, इसलिए संसद को सुचारू रूप से चलाने के लिए नए तौर-तरीके अपनाने की जरूरत है।






