नई दिल्ली, 6 अगस्त 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि 2019 के बाद यह उनकी पहली चीन यात्रा होगी। ऐसे वक्त में जब वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं, भारत की यह पहल उसकी स्वतंत्र विदेश नीति के संदेश के रूप में देखी जा रही है।
वैश्विक समीकरणों के बीच भारत की कूटनीतिक चाल
यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका समेत पश्चिमी देश BRICS देशों, खासकर रूस और चीन पर आर्थिक दबाव बना रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में BRICS देशों की आलोचना की थी, जिसमें रूस से तेल खरीद और अमेरिकी डॉलर की जगह अन्य मुद्राओं के इस्तेमाल पर सवाल उठाए गए। ऐसे में मोदी का चीन दौरा यह संकेत दे सकता है कि भारत वैश्विक मंचों पर अपनी स्वायत्त विदेश नीति को और मजबूत करने के प्रयास में है।
पहले SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत ने जताया था विरोध
जून 2025 में चिंगदाओ में हुई SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत ने अपनी कूटनीतिक ताकत दिखाई थी, जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक विवादित दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। दस्तावेज़ में न तो हालिया पहलगाम आतंकी हमले का कोई ज़िक्र था, न ही आतंकवाद की स्पष्ट निंदा। इसके बजाय उसमें बलूचिस्तान का जिक्र था, जिसे भारत के खिलाफ परोक्ष रूप से इस्तेमाल करने की कोशिश मानी गई।
इस कूटनीतिक टकराव के चलते उस बैठक में कोई संयुक्त बयान जारी नहीं हो सका। सूत्रों के अनुसार, चीन और पाकिस्तान आतंकवाद जैसे मुद्दों को दस्तावेज़ से हटाने की कोशिश कर रहे थे, जिससे भारत ने कड़ा ऐतराज जताया।
SCO समिट में भारत की भूमिका पर रहेगी दुनिया की नजर
भारत का SCO में कूटनीतिक संतुलन साधना इस बार सबसे बड़ी चुनौती होगी। रूस, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की मौजूदगी में भारत को अपनी संप्रभुता, आतंकवाद के खिलाफ रुख और स्वतंत्र विदेश नीति को स्पष्ट रूप से सामने लाना होगा। ऐसे में पीएम मोदी की यह यात्रा केवल एक सम्मेलन तक सीमित नहीं, बल्कि आने वाले वैश्विक समीकरणों की दिशा तय करने वाली मानी जा रही है।