अमित पांडे: संपादक
भारतीय लोकतंत्र में बहस, तर्क और असहमति की हमेशा से एक जीवंत परंपरा रही है। यही लोकतंत्र की ताकत रही है कि यहाँ विभिन्न विचारधाराओं को खुलकर सामने आने का अवसर मिला। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह परंपरा लगातार कमजोर हो रही है। विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए सत्ता पक्ष के नेताओं और प्रवक्ताओं द्वारा जिस तरह की भाषा और धमकियों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है, वह गहरी चिंता का विषय है। ताज़ा उदाहरण भाजपा प्रवक्ता प्रिंटु महादेव का है, जिन्होंने एक लाइव टीवी बहस में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को खुलेआम गोली मारने की धमकी दी। यह बयान न केवल राजनीतिक शिष्टाचार की सीमाएँ लांघता है बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर सीधा प्रहार है।
कांग्रेस ने इस घटना को बेहद गंभीरता से लिया है। पार्टी महासचिव और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के करीबी सहयोगी के.सी. वेणुगोपाल ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा कि यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि उस लोकतांत्रिक भावना पर वार है, जिसका प्रतिनिधित्व राहुल गांधी करते हैं। उन्होंने इसे “भयानक और सिहरन पैदा करने वाला” बयान करार दिया और सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की।
पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस घटना का ऐतिहासिक संदर्भ जोड़ते हुए कहा कि जब-जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) विचारधारा की लड़ाई हारता है, तब-तब उसके अनुयायी हिंसा का सहारा लेते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि महात्मा गांधी की हत्या भी इसी मानसिकता का परिणाम थी। उनके शब्द थे: “हर बार जब आरएसएस भारत की विचारधारा को हराने में असफल रहता है, तब एक गोडसे गांधी की हत्या करता है। अब जब भाजपा वैचारिक लड़ाई हार रही है, उसके प्रवक्ता और नेता राहुल गांधी को मारने की धमकी दे रहे हैं।” इस टिप्पणी ने स्पष्ट कर दिया कि यह मामला केवल एक व्यक्ति की भाषा नहीं, बल्कि विचारधारात्मक संघर्ष का हिस्सा है।
प्रिंटु महादेव का यह बयान आकस्मिक प्रतिक्रिया नहीं था। उन्होंने राहुल गांधी को मिली धमकी को इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्याओं से जोड़ते हुए कहा कि “राहुल गांधी के सीने में गोली मारी जाएगी।” यह टिप्पणी केवल असंवेदनशील नहीं, बल्कि खतरनाक संकेत भी है। यह दर्शाता है कि भाजपा का आधिकारिक प्रवक्ता विपक्ष के शीर्ष नेता के खिलाफ हिंसक भाषा का इस्तेमाल कर सकता है और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से अब तक कोई सार्वजनिक निंदा सामने नहीं आई है।
केरल पुलिस ने कांग्रेस की शिकायत पर महादेव के खिलाफ मामला दर्ज किया है। पेरामंगलम थाने में दायर एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता की धारा 192 (दंगा भड़काने की मंशा से उकसाना), धारा 353 (शांति भंग करने की मंशा से अपमान) और धारा 351(2) (आपराधिक धमकी) शामिल हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल एफआईआर दर्ज कर देना पर्याप्त है? जब सत्ता पक्ष का प्रवक्ता खुले मंच पर विपक्ष के नेता को मारने की धमकी दे, तो क्या भाजपा नेतृत्व को तुरंत उसे पार्टी से बाहर नहीं करना चाहिए था? चुप्पी इस बात का संकेत देती है कि भाजपा इस तरह की भाषा को अप्रत्यक्ष रूप से मान्यता दे रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रवृत्ति बताती है कि जब सत्ता में बैठे लोग वैचारिक रूप से कमजोर पड़ते हैं और बहस में हारने लगते हैं, तो वे हिंसा और धमकियों का सहारा लेते हैं। राहुल गांधी ने पिछले कुछ वर्षों में लगातार भाजपा और आरएसएस की विचारधारा को चुनौती दी है—‘भारत जोड़ो यात्रा’ से लेकर संसद और सड़कों पर किसानों, युवाओं और वंचित वर्गों की आवाज उठाने तक। यही कारण है कि उनकी आवाज से सत्ता पक्ष असहज है और अब उनके खिलाफ धमकियों का सहारा लिया जा रहा है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि विचारों को कभी भी गोलियों और धमकियों से दबाया नहीं जा सका। महात्मा गांधी की हत्या के बावजूद उनका विचार आज भी दुनिया को राह दिखा रहा है। उसी तरह, राहुल गांधी को मिली धमकी दरअसल उनके संघर्ष की प्रासंगिकता और ताकत का प्रमाण है। जो नेता जनता के मुद्दों को लेकर लगातार सत्ताधारी दल को घेर रहा है, उसे डराने के लिए अब भाषा और धमकी का सहारा लिया जा रहा है।
कांग्रेस ने सही कहा है कि यह केवल राहुल गांधी की लड़ाई नहीं है, बल्कि पूरे लोकतंत्र की लड़ाई है। यदि आज इस तरह की प्रवृत्ति को नहीं रोका गया तो कल विपक्ष के किसी भी नेता को धमकाना और चुप कराना सामान्य बात बन जाएगी। यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक स्थिति होगी। लोकतंत्र में असहमति और बहस की जगह होनी चाहिए, न कि हिंसक भाषा और धमकियों की।
भारत को यह तय करना होगा कि वह बहस और तर्क की परंपरा को मजबूत करेगा या डर और हिंसा की राजनीति को सामान्य होने देगा। भाजपा यदि वास्तव में लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करती है तो उसे तुरंत इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए और अपने प्रवक्ता को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए। अन्यथा यह उसकी वैचारिक कमजोरी और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उदासीनता का सबूत माना जाएगा।
आज राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि वे डरने वाले नहीं हैं। लेकिन सवाल केवल उनकी सुरक्षा का नहीं है। सवाल यह है कि क्या भारत का लोकतंत्र इतना कमजोर हो चुका है कि वह अपने विपक्षी नेता को भी सुरक्षित नहीं रख सकता? लोकतंत्र की असली ताकत विपक्ष की आवाज में है। उस आवाज को धमकियों से दबाने की कोशिश भारत की आत्मा पर हमला है।
इसलिए ज़रूरत है कि केवल कांग्रेस ही नहीं, बल्कि सभी लोकतांत्रिक शक्तियाँ इस प्रवृत्ति का विरोध करें। क्योंकि यह लड़ाई केवल राहुल गांधी की नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की लड़ाई है।