लव कुमार मिश्र
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दावा किया था बस्तर में माओवादी उग्रवादियों का मार्च 2026 तक सफाया हो जाएगा। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक आर एल एस यादव ने 24 साल पहले घोषणा की थी “रूस से कम्युनिज्म खत्म हो गया है, अब छत्तीसगढ़ से भी माओवाद समाप्त हो जाएगा।”
लेकिन इस डेड लाइन के बहुत पहले ही छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में नक्सलवाद का सफाया हो गया है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संवाद में बताया दो दिन में ही ३०३ कट्टर नक्सलाइट ने हथियार डाल दिए हैं,छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री विष्णुदेव साय के चरण में २१० माओवादी नेताओं ने और महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस के सामने ९८ जिसमें सर्वोच्च कमांडर भूपति जिस पर एक करोड़ रुपए का ईनाम था बिना शर्त के समर्पण कर दिया
नक्सलाइट जिसमें ११० महिलाएं भी शामिल थे ने अत्यंत आधुनिक हथियार(१५३) जिसमें एके ४७, इंसास रायफल भी थे डाल दिए।
सबसे सफलता की बात थी कि यह दुनिया में पहली घटना है,जहां आर्म्ड रेजिस्टेंस रेजिस्टेंस नहीं हुआ और विशाल पैमाने पर समर्पण हुआ है
इसके पीछे सुरक्षा बलों द्वारा पिछले दो साल में ४७७ माओवादियों को एनकाउंटर में मार गिराना और जंगलों में इनके माद में जाकर इनको ध्वस्त किया जाना है।
अब पशुपति( नेपाल) से तिरुपति ( आंध्र प्रदेश) में नक्सलाइट कॉरिडोर खत्म हो चुका है।नक्सलाइट की एक भी मांग नहीं मानी गई और गढ़ चिरौली तथा जगदलपुर में मास सरेंडर हो गया
जो माओवादी भारत के संविधान पर विश्वास नहीं करते थे,उस दिन भारत के संविधान की प्रति और गुलाब का फूल लेकर हथियार डाले।भारत सरकार के २०२५ में शुरू सरेंडर नीति जिसे पुनर्वास से पुनर्जीवन ( पुनः मार्गेंमम) कहा गया ने माओवादियों को समर्पण के लिए आकर्षित किया।
मैं छत्तीसगढ़ में एक अति उग्रवाद और आतंकग्रस्त राज्य जम्मू कश्मीर से स्थानांतरित होकर माओवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ स्थानांतरित हुआ था। उस वक्त और आज के बस्तर में काफी बदलाव आया है। बस्तर जिला अब कई टुकड़ों में विभाजित है, जो प्रखंड थे, इसअब जिला बन गए हैं।
आज से बीस साल पहले राज्य पुलिस, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स और पंजाब पुलिस के 32,000 ऑफिसर और जवान बस्तर में पोस्टेड थे। सूरज ढलने के बाद कोई नागरिक या पुलिसकर्मी भी सड़क पर नजर नहीं आते थे। बाजार भी दिन के समय ही खुलते थे। आम चुनाव में साथ 8 प्रतिशत मतदान होते रहे।
मुझे कई बार कोंटा, सुकमा, बीजापुर जाने का मौका मिला। प्रेस का स्टिकर लगा कर ही घूम सकते थे। एक बार में बीजापुर जो उस समय एक ब्लॉक था गया, in एक प्रखंड अधिकारी को मार दिया गया था। एक छोटे से नाले के पास जब पहुंचे, तब एक मोटर साइकिल पर स्वर दो युवक आए और आने का कारण पूछा। उन्होंने मुझे बताया आप के आने की खबर दादा ने जगदलपुर से ही दी थी,आप लौट जाइए। पता चला ये नक्सलाइट्स के मैसेंजर थे। उन्होंने बताया “हमलोग के पास दिल्ली और मुंबई से प्रकाशित सभी मैगजीन और अखबार आते हैं, आप क्या लिखते हैं,हमलोग नोट कर लेते है।”
बस्तर के नक्सलाइट्स के पास जंगल में ही कई प्रिंटिंग प्रेस भी थे, जहां से उनके प्रेस रिलीज जारी होते थे।
हमलोग उनके निर्देश का अनुसरण करते हुए दंतेवाड़ा लौट आए और अगले दिन सुबह छत्तीसगढ़-उड़ीसा के मलकानगिरी सीमा स्थित साबरी नदी में स्नान किया।जब बीजू पटनायक उड़ीसा के मुख्यमंत्री थे, ने कोरापुट को विभाजित कर मलकानगिरी जिला बनाया था और 1986 बैच के युवा अधिकारी गगन कुमार ढल को पहला डीएम बनाया था। विपक्षी नेताओं ने विधान सभा में आरोप लगाया कि कलेक्टर माओवादियों का समर्थक है। इसका जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, “यस, ही इज रिफ्लेक्टिंग माय विल”
कोंडागांव से कोंटा तक किसी भी जगह मुझे पुलिस जिप्सी नहीं दिखी। उस समय दंतेवाड़ा में मोहम्मद वजीर अंसारी जो 1984 बैच के आरक्षी महानिरीक्षक थे, भी बिना यूनिफार्म, बेकान लाइट और बिना सायरन वाली टाटा सूमो पर घूमते। गाड़ी के आगे भी पुलिस का झंडा नहीं, बल्कि दंतेवाशरी देवी का लाल पीला पटका ही रहता था। पुलिस के अधिकारी और जवान भी कोट की जगह चादर ओढ़ कर रहते थे।
पुलिस थाने भी काफी सुरक्षित रहते। ऊंचे टावर पर सशस्त्र जवान रहते। थाने के चारो तरफ कंटीले तार रहते, जिसपर रंग बिरंगे दारू की बोतल लटकी रहती।
अंसारी जी ने बताया कि “पुलिस पर बहुत हमले हो रहे थे। पुलिसवाले पेट्रोलिंग में मारे जा रहे थे इसलिए टैक्टिकल स्ट्रेटजी के कारण पुलिस यूनिफार्म का उपयोग करना भी वर्जित था। रोड ओपनिंग पार्टी पर भी आक्रमण होता था। जिप की जगह मोटर साइकिल और फिर पैदल पेट्रोलिंग होता था।
बस्तर और दंतेवाड़ा के बीच हाइवे पर स्थित “हाइली फोर्टीफाइड” गीदम पुलिस स्टेशन को दिन दहाड़े नक्सलाइट दस्ते ने लूट लिया था। थानेदार को मारकर हथियार अपने साथ ले गए। राजनांदगांव के जिला आरक्षी अधीक्षक श्री चौबे को भी 19 अन्य कर्मियों के साथ मार दिया गया था। वे यूनिफार्म में थे। अभी भी थाने अति सुरक्षित हैं। नारायणपुर से अंतागढ़ तक के सभी थानों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है, अबू जमाद जिसे माओवादियों ने मुक्त क्षेत्र घोषित कर रखा था, अब बस्तर पुलिस के कब्जे में है।
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