अमित पांडेय
राजनीतिक हलकों में चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस सांसद शशि थरूर जल्द ही भगवा खेमे का दामन थाम सकते हैं। वजह? हाल ही में हुए “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद वे नरेंद्र मोदी सरकार के अनौपचारिक प्रवक्ता जैसे व्यवहार करते नजर आए हैं।
सोमवार शाम पीएम मोदी के राष्ट्र को संबोधन में अमेरिका की भूमिका का जिक्र नहीं हुआ, लेकिन थरूर ने पत्रकार करण थापर के साथ बातचीत में खुलकर इस मुद्दे पर बात की। इससे अफवाहों को और हवा मिली।
थरूर ने जोर देकर कहा कि भारत किसी भी दबाव में पाकिस्तान से बातचीत नहीं करेगा। उन्होंने अमेरिका और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को आड़े हाथों लिया और कहा कि “हम अपनी विदेश नीति की पूरी नींव को नहीं बदल सकते। बंदूक की नोंक पर बातचीत नहीं होगी।”
यह बात न तो मोदी ने कही, न किसी मंत्री ने और न ही विदेश मंत्रालय के किसी प्रवक्ता ने। लेकिन थरूर ने खुलकर वही बात कह दी, जिससे मोदी सरकार बचती दिखी।
ट्रंप ने दावा किया था कि उन्होंने भारत-पाक के बीच सीजफायर कराया। लेकिन थरूर ने कहा, “अगर अमेरिका ने दोनों पक्षों से बात की, तो वह मध्यस्थता नहीं होती। भारत कभी यह नहीं कहेगा कि हमारी तरफ से पाकिस्तान को यह बात पहुंचा दीजिए।”
थरूर, जो विदेश मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं, सरकार में होते हुए भी नहीं हैं, फिर भी उन्होंने जो बयान दिए वो चौंकाने वाले थे, खासकर जब कांग्रेस इस मुद्दे पर चुप थी।
मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत परमाणु धमकी के आगे नहीं झुकेगा, लेकिन ट्रंप की ‘शांति की भूमिका’ पर उन्होंने कुछ नहीं कहा।
थरूर के बयान ऐसे समय आए जब कांग्रेस नेतृत्व और केरल कांग्रेस से उनकी दूरी की खबरें आम हैं। वे पहले भी कई बार पार्टी लाइन से हटकर बयान देते रहे हैं — जैसे F-35 विमान खरीद या नेहरू की पंचायत नीति पर सवाल।
मोदी के साथ एक मंच पर नजर आना और मोदी द्वारा यह कहना कि “थरूर की मौजूदगी से कुछ लोगों की नींद उड़ गई होगी,” इस बात को और हवा देता है कि थरूर किसी नई दिशा में सोच रहे हैं।
जब उनसे पूछा गया कि क्या वे बीजेपी में जाएंगे, तो उन्होंने कहा: “हर पार्टी की अपनी विचारधारा होती है। अगर आप उसे अपना नहीं सकते, तो जाना सही नहीं है। लेकिन स्वतंत्र रहने का विकल्प हमेशा खुला रहता है।”
क्या “स्वतंत्र” रहना कांग्रेस छोड़ बीजेपी में जाने की राह का एक पड़ाव है? जवाब भविष्य के गर्भ में है, लेकिन संकेत जरूर मिल रहे हैं।
(लेखक, समाचीन विषयों के गहन अध्येता, युवा चिंतक व राष्ट्रीय-आंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक हैं, रणनीति, रक्षा और तकनीकी नीतियों पर विशेष पकड़ रखते हैं।)