24 जुलाई को संसद भवन परिसर में एक असाधारण दृश्य देखने को मिला, जब विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक के सांसदों ने चुनाव आयोग द्वारा बिहार में चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। संसद के मानसून सत्र के पहले दिन से ही विपक्ष इस मुद्दे को उठाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जब उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो उन्होंने संसद परिसर में ही विरोध का रास्ता चुना।
इस विरोध प्रदर्शन की खास बात यह रही कि इसमें कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी भी शामिल हुईं। उनके साथ प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, डीएमके की कनिमोझी, आरजेडी के मनोज झा, टीएमसी के कल्याण बनर्जी, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने भी भाग लिया। सभी ने हाथों में बैनर लिए थे जिन पर लिखा था—“SIR: Stealing Indian Rights” और “SIR: Subverting Indian Republic”। यह नारे इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि विपक्ष इस अभियान को लोकतंत्र के मूल अधिकारों पर हमला मानता है।
विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग का यह अभियान मतदाता सूची से नाम हटाने की एक साजिश है, जिससे विशेष रूप से वंचित और हाशिए पर खड़े समुदायों को मतदान के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर भाजपा के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया और कहा कि यह संस्था अब निष्पक्ष नहीं रही। उन्होंने यह भी कहा कि SIR के नाम पर वोटों की चोरी की जा रही है और जो लोग इस साजिश को उजागर कर रहे हैं, उनके खिलाफ ही एफआईआर दर्ज की जा रही है।
सोनिया गांधी ने प्रदर्शन के दौरान एक बड़ा बैनर पकड़ा हुआ था जिस पर लिखा था—“SIR – Attack on Democracy”। यह दृश्य न केवल प्रतीकात्मक था, बल्कि यह दर्शाता है कि विपक्ष इस मुद्दे को लेकर कितनी गंभीरता से चिंतित है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह अभियान पारदर्शिता से कोसों दूर है और इसका उद्देश्य मतदाता सूची को साफ करना नहीं, बल्कि उसे राजनीतिक लाभ के लिए बदलना है।
विपक्ष का यह भी कहना है कि बिहार में यह अभियान ऐसे समय में चलाया जा रहा है जब वहां विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में यह संदेह पैदा करता है कि कहीं यह मतदाता सूची में हेरफेर कर चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की कोशिश तो नहीं है। विपक्षी दलों का दावा है कि इस अभियान के तहत लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं, खासकर उन लोगों के जो गरीब, दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों से आते हैं।
इस मुद्दे पर संसद में चर्चा की मांग की जा रही है, लेकिन सरकार की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया है। विपक्ष का कहना है कि जब तक इस अभियान को रोका नहीं जाता और संसद में इस पर खुली बहस नहीं होती, तब तक वे अपना विरोध जारी रखेंगे। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि अगर चुनाव आयोग इस अभियान को नहीं रोकता, तो वे इसे देशव्यापी आंदोलन में बदल देंगे।
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में भी इस अभियान को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह अभियान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को खतरे में डालता है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा है कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को दस्तावेज के रूप में क्यों नहीं स्वीकार किया जा रहा है। हालांकि आयोग का कहना है कि ये दस्तावेज नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं।
इस पूरे विवाद ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्ष का कहना है कि अगर आयोग वास्तव में मतदाता सूची को साफ करना चाहता है, तो उसे सभी राजनीतिक दलों को विश्वास में लेना चाहिए और पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी चाहिए। लेकिन जिस तरह से यह अभियान चलाया जा रहा है, उससे यह संदेह पैदा होता है कि कहीं यह लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश तो नहीं है।
बिहार में पहले ही कई इलाकों से शिकायतें आ रही हैं कि लोगों को फॉर्म भरने में कठिनाई हो रही है, दस्तावेजों की मांग बहुत जटिल है और कई लोग जो वर्षों से वोट डालते आ रहे हैं, अब सूची से बाहर हो सकते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह अभियान वास्तव में मतदाता सूची को सुधारने के लिए है या फिर यह एक राजनीतिक हथकंडा है?
INDIA ब्लॉक के सांसदों का यह प्रदर्शन केवल एक विरोध नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक चेतावनी है। अगर मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही, तो यह देश के चुनावी तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े करेगा। और अगर वंचित समुदायों को मतदान के अधिकार से वंचित किया गया, तो यह संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
इसलिए यह जरूरी है कि संसद में इस मुद्दे पर खुली बहस हो, चुनाव आयोग अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए और सभी नागरिकों को उनके मताधिकार की गारंटी दी जाए। लोकतंत्र की ताकत उसके नागरिकों में है, और अगर नागरिकों के अधिकारों को ही छीना जाएगा, तो लोकतंत्र केवल एक दिखावा बनकर रह जाएगा।